काशी के बंगाली टोला स्थित दुर्गा बाड़ी में 253 साल पहले नवरात्र के मौके पर मां दुर्गे की प्रतिमा स्थापित की गई थी, जो अबतक मौजूद है. मिट्टी की ये प्रतिमा आज भी उसी तरह दिखती है.
शारदीय नवरात्र के मौके पर दुर्गा प्रतिमाएं पंडालों में स्थापित की जाती हैं, फिर उन्हें दशहरा के बाद विसर्जित कर दिया जाता है. लेकिन आप ये जानकर हैरान हो जाएंगे कि काशीमें एक ऐसी दुर्गा प्रतिमा है, जिसे पिछले 253 सालों से विसर्जित नहीं की गई है. आज भी ये मिट्टी की प्रतिमा वैसी ही दिखती है, जैसी 253 साल पहले दिखती थी.
काशी के गलियों में लघु भारत बसी हुई है. यहां हर धर्म और समुदाय के लोग रहते हैं. काशी के बंगाली टोला स्थित दुर्गा बाड़ी में 253 साल पहले नवरात्र के षष्टि यानी छठवें दिन मां दुर्गा की प्रतिमा एक बंगाली परिवार ने स्थापित की थी. नवमी तक धूमधाम से पूजा-पाठ हुआ लेकिन दशहरा के दिन जब विसर्जित करने के लिए प्रतिमा को उठाया गया, तो प्रतिमा हिली तक नहीं. दर्जनों लोगों ने लाख प्रयास किया लेकिन सारे प्रयास असफल हो गये. तब से आज तक ये प्रतिमा यू हीं स्थापित है.
प्रतिमा स्थापित करने वाले बंगाली परिवार के 5वीं पीढ़ी के मुखिया हेमंत बताते हैं कि 253 साल पहले जब दशहरे के दिन माता की प्रतिमा नहीं उठी तो दूसरे दिन विसर्जित करने की योजना बनाई गई. लेकिन उसी रात परिवार के मुखिया को रात में माता का सपना आया कि वो यहीं वास करेंगी. मात्र गुड़ और चने का भोग लगाकर वो माता को यहीं स्थापित करें. तब से मां यहीं स्थापित हैं.
253 साल बाद भी मां की प्रतिमा वैसी की वैसी ही हैं. सिर्फ हर साल कपड़े बदले जाते हैं. माता के प्रतिमा में लगी हुई मिट्टी और पुआल आजतक वैसा ही है. 8 से 10 साल के अंतराल पर प्रतिमा को कलर किया जाता है. हर साल नवरात्र के मौके पर दुर्गाबाड़ी को आमलोगों के खोल दिया जाता है.
माता के इस चमत्कार को पूरा बनारस नमस्कार करता है. बनारस में रहने वाला हर शख्स नवरात्र में यहां आकर माता का आशीर्वाद लेते हैं. कहा जाता है कि माता अपने यहां आने वाले हर भक्त की मुरादें पूरी करती हैं.