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India में AIDS का पहला केस, देश से निकलने का हुआ था आदेश

भारत में पहले एड्स केस की पुष्टि 1986 में हुई. डॉक्टर सुनीति सोलोमन ने चेन्नई के सेक्स वर्कर्स के बीच एड्स के पहले मरीजों की पहचान की. लेकिन एड्स जब भारत में दस्तक दे रहा था, तब इसको लेकर खौफ इस कदर था कि जब जबलपुर में 2 देशों के 6 विदेशी छात्रों को जांच के दौरान एचआईवी पॉजिटिव पाया गया, तब इन छात्रों को बाहर निकालने के लिए इनके देशों के उच्चायोग से बात की गई.

किस्सा जबलपुर और केरल का है. इन शहरों के कॉलेजों में मेडिकल टेस्ट के दौरान नतीजे बेहद चौकाने वाले आए. जबलपुर में छह छात्रों के ब्लड सैंपल में एड्स के रोगाणु पाए गए, ये छात्र अफ्रीकी देश केन्या से थे. केरल के क्विलोन में भी जिन 3 विदेशी छात्रों में एड्स के जीवाणु पाए गए, वो भी तंजानिया से थे. इन दोनों जगहों के छात्रों को यूनिवर्सिटी से बाहर निकाल दिया गया. क्विलोन के कलेक्टर ने तो छात्रों की इस्तेमाल की हुई चीजों को खत्म करने तक का आदेश दिया था.

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एड्स का ऐसा खौफ था कि मरीजों को पुलिस की निगरानी में शहर से बाहर ले जाया गया. छात्रों ने खुद को कमरे में बंद कर लिया. एड्स के एक रोगी ने तब परेशानी में अपनों से कहा था, ‘मेरा क्या होगा. बचूंगा या मर जाऊंगा.’ विदेशी छात्रों में इस बीमारी पाने के बाद हालात ऐसे थे कि रोगियों से ढंग से कोई बात नहीं करता था.

कहा तो जाता है कि एड्स के रोगी, जिन दुकानों से सिगरेट खरीदते थे, वहां से लोगों ने सामान खरीदना बंद कर दिया था. तब बाकी देशों के छात्रों की भी जांच कराई गई लेकिन केन्या के अलावा किसी को ये बीमारी नहीं थी. छात्राओं के बीच ये बीमारी नहीं पाई गई.