उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ का एक कस्बा है कुंडा. कहा जाता है कि कुंडा में होने वाले चुनाव ही नहीं, अपराध भी राजा भैया की मर्जी के बिना नहीं होते. हालांकि, राजा भैया इसे किविदंति भर मानते हैं, लेकिन इससे बिल्कुल इत्तफाक नहीं रखते. इसी कुंडा में साल 2013 में सीओ के पद पर तैनात रहे जियाउल हक की हत्याकांड के मामले में वह बुरी तरह फंसते जा रहे हैं. वैसे तो एक समय में राजा भैया के खिलाफ 50 से अधिक मुकदमे दर्ज हुए, लेकिन उन्होंने कभी भी इन मुकदमों को लेकर बयानबाजी नहीं की. हालांकि, जियाउल हक हत्याकांड में उनका नाम आया तो उन्होंने खुद ही सीबीआई जांच की मांग कर डाली. सीबीआई ने जांच भी की, लेकिन वो बेदाग निकले. इसके बाद उन्हें आरोपी बनाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में अपील की गई और सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को नए सिरे से जांच के लिए सीबीआई को आदेश दिए हैं. यानी जियाउल हक हत्याकांड मामले में राजा भैया की मुसीबत बढ़ सकती है.
जियाउल हक हत्याकांड की कहानी
आखिर क्या है जियाउल हक हत्याकांड की कहानी… आइए इसे समझने की कोशिश करते हैं. साल 2013 में दो मार्च की दोपहर का समय था. कुंडा विधानसभा क्षेत्र के गांव बेंती में ग्राम समाज की जमीन की पैमाइश होनी थी. इस पैमाइश के दौरान ग्राम प्रधान नन्हे सिंह यादव के साथ गांव के ही कुछ लोगों की झड़प हो गई. इसमें दूसरे पक्ष के लोगों ने नन्हें को गोली मार दी. मौके पर मौजूद पुलिस ने नन्हें सिंह के परिजनों के साथ मिलकर उन्हें अस्पताल पहुंचाया, जहां डॉक्टरों ने मृत घोषित कर दिया. इतने में रात के आठ बजे गए और पुलिस ने पोस्टमार्टम कराने के बजाय ग्राम प्रधान का शव अस्पताल में ही परिजनों को दे दिया.
थोड़ी देर बाद पुलिस को अपनी गलती का एहसास हुआ तो सीओ जियाउल हक, कोतवाल सर्वेश मिश्रा समेत अन्य पुलिस वाले शव लेने गांव पहुंच गए. लेकिन वहां पहले से जमा भीड़ आक्रोशित हो गई और पुलिस पर हमला कर दिया. संयोग से पुलिस वाले जिस गली में भागे, वह संकरी थी. इसमें आगे आगे सीओ और कोतवाल थे, वहीं बाकी पुलिस वाले उनके पीछे भाग रहे थे. जब पुलिस वाले गली के मुहाने पर पहुंचे तो देखा कि पहले से भीड़ उनका इंतजार कर रही थी. उन्हें देखकर पुलिस वाले पलट कर भागने लगे. ऐसे में सीओ और कोतवाल सबसे पीछे हो गए. वहीं जब भीड़ की ओर से गोली चली तो सीओ को लगी और वहीं गिर गए.
गली में घेर कर मार डाला
केस डायरी के मुताबिक प्रधान नन्हें सिंह के भाई सुरेश यादव ने सीओ जियाउल हक पर बंदूक के बट से वार किया. यह बंदूक लोडेड थी, इसलिए गोली चल गई और सुरेश के ही पेट में लगी. इससे उसकी मौके पर मौत हो गई. उसे गोली लगते देख नन्हें सिंह यादव के बेटे ने गोली चलाई, जिससे सीओ की मौत हुई. इस वारदात में 20 से अधिक लोग चश्मदीद गवाह थे. पुलिस ने इस मामले में कुल 4 एफआईआर दर्ज की थी. हालांकि इनमें किसी में भी राजा भैया का नाम नहीं था. वहीं जिन लोगों का नाम एफआईआर में था, उन्हें गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया.