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क्या गर्भ में पल रहे बच्चे के भी होते है अधिकार? जान‍िए कब और कौन करवा सकता है अबॉर्शन, क्‍या कहता है कानून

What is Abortion Law in India : सुप्रीम कोर्ट में आया एक अबॉर्शन मामला इन दिनों पूरे देशभर में चर्चा का विषय बना हुआ है। पहले कोर्ट ने महिला की याचिका पर 26 हफ्ते का गर्भ गिराने की इजाजत दी फिर इस पर रोक लगा दी।

सुप्रीम कोर्ट ने एक विवाहित महिला की 26 हफ्ते की गर्भावस्था को समाप्त करने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान टिप्पणी करते हुए कहा कि गर्भपात के लिए तय कानूनी मियाद पूरी हो चुकी है और गर्भ में बच्चा स्वस्थ हो, तो केवल परिवार के चाहने से बच्चे की धड़कन बंद कर देना सही नहीं है। गर्भ में पल रहे बच्चें के भी अधिकार होते हैं। आइए जानते हैं क‍ि भारत में गर्भपात और अजन्‍में बच्‍चे को लेकर क्‍या कानून हैं?

अजन्‍में बच्‍चे के अधिकार? मां की कोख में पल रहे बच्‍चे के पास भी जन्‍म से पहले अधिकार होते हैं। कानून के मुताबिक 24 हफ्ते गर्भ में रहने के बाद अजन्मे बच्चे के भी अधिकार बहाल हो जाते हैं। तथ्य यह है कि यह 24 हफ्ते से अधिक भ्रूण सिर्फ एक भ्रूण नहीं है। यह एक जीवित वाइबल भ्रूण है और यदि इसे जन्म दिया जाए तो यह बाहर भी जीवित रह सकता है। उसके भी कुछ कानून हैं।

– भारतीय दंड संहिता की धारा 312 (6) से 316(7) में अजन्मे बच्चे को अत्यधिक प्राथमिकता दी गई है। इन धाराओं के तहत, कोई भी व्यक्ति जो किसी बच्चे को जीवित पैदा होने से रोकता है या भ्रूण की मृत्यु का कारण बनता है, वह मामले के प्रकार के आधार पर उत्तरदायी होगा।

अजन्‍में बच्‍चे के अधिकार के सेक्‍शन (8) की धारा 6 में, अजन्‍में बच्‍चे यानी भ्रूण को “नाबालिग” की श्रेणी में रखा गया है।

अजन्मे बच्चे को संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम के तहत संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम की धारा 30 (3) किसी व्यक्ति को अपनी संपत्ति उस व्यक्ति को हस्तांतरित करने की अनुमति देती है जो मां के गर्भ में है। भले ही यह धारा भ्रूण यानी गर्भस्‍थ शिशु को जीवित व्यक्ति नहीं मानती है, लेकिन यह उसे संपत्ति के हस्तांतरण की अनुमति देती है।

सीआरपीसी की धारा 416 (4) के तहत जब किसी महिला का अपराध साबित होने के दौरान वह गर्भवती होती है, तो मामले के आधार पर मौत की सजा को या तो स्थगित कर दिया जाता है या आजीवन कारावास में बदल दिया जाता है। यह फैसला भ्रूण के जीवन को ध्यान में रखकर क‍िया जाता है।

क्‍या हैं गर्भपात कानून?
वर्तमान में मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (एमपीटी) अधिनियम के तहत अधिकतम 24 सप्ताह की प्रेग्‍नेंसी में ही अबॉर्शन की अनुमति दी गई है। पहले भारत में कुछ मामलों में 20 हफ्ते तक गर्भ गिराने की मंजूरी दथी। लेकिन साल 2021 में कानून में संसोधन कर इसके लिए समय सीमा बढ़ाकर 24 हफ्ते तक कर दी गई।

गर्भ को गिराने की अनुमति 0 से 20 हफ्ते तक उन महिलाओं को है जो मां बनने के लिए मानसिक तौर पर तैयार नहीं है। या फिर महिला ना चाहते हुए भी प्रेग्नेंट हो गई है। हालांकि, ऐसे मामलों में रजिस्टर्ड डॉक्टर की लिखित अनुमति आवश्यक होती है। 20 से 24 हफ्ते तक के गर्भ गिराने की अनुमति उन मामलों में दी जाती है जिसमें मां या बच्चे के मानसिक या शारीरिक स्वास्थ्य को किसी तरह के खतरा का अनुमान होता है। वहीं इस तरह के मामले में दो डॉक्टरों की लिखित अनुमति आवश्यक होती है।

इन विशेष कारणों में 20 से 24 हफ्ते का गर्भ गिराने की अनुमति
मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (एमपीटी) अधिनियम के तहत भारत में कुछ विशेष मामलों में 24 हफ्ते बाद भी गर्भ समाप्त करने की अनुमति है।

– अगर महिला किसी यौन उत्पीड़न का शिकार हुई है या फिर रेप के कारण वह प्रेग्नेंट हो गई है।

– अगर महिला माइनर गर्भवती हो, विकलांग हो, मानसिक रूप से बीमार हो।

– वे महिलाएं जिनकी वैवाहिक स्थिति गर्भावस्था के दौरान बदल गई हो (जैसे विधवा हो गई हो या फिर तलाक हो गया हो)

– इसके अलावा गर्भ में पल रहे बच्चे में कोई बड़ी मानसिक या शारीरिक समस्या हो ऐसे मामलों में भी गर्भपात के लिए 24 हफ्ते बाद भी अनुमति दी जा सकती है।

 

 

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