Ayodhya: हम बात कर रहे हैं अयोध्या जिला मुख्यालय से 42 किमी दूर मिल्कीपुर तहसील के गांव गहनाग स्थित गहनागदेव मंदिर की। वैसे तो सर्पदंश के शिकार लोग यहां सालभर आते हैं पर सावन महीने के सोमवार को यहां श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। नागपंचमी के अवसर पर यहां मेला लगता है, जिसमें पडोस के कई जिलों के श्रद्धालु नागदेवता को दूध और धान का लावा चढ़ाते हैं तथा नागों से अपनी रक्षा की प्रार्थना करते हैं। खास बात यह है कि बीते एक दशक में सांप काटने से आने वाले लगभग सात हजार मरीज ठीक हो चुके हैं। मंदिर के पुजारी राम बिहारी तिवारी बताते हैं कि गत वर्ष गहनाग बाबा की कृपा से ही ऐसा संभव हुआ है।
मंत्रोच्चार से होता है सांप का जहर ठीक
पुजारी राम बिहारी तिवारी श्रीमदभागवत के श्लोक का उद्धरण देते हुए कहते हैं कि’सर्पाय सर्पभद्रं ते गच्छ दूरमहाविष:। जन्मेजयस्य यज्ञान्ते आस्तीक वचने स्मर।’उनके अनुसार गह का अर्थ पकड़ना और नाग का अर्थ सांप से है। गहनाग का अर्थ सांपों के जहर को पकड़ना है। पौराणिक कथाओं के अनुसार जरात्कारु मुनि का विवाह वासुकी नाग की बहन के साथ हुआ था। कालांतर में उनको आस्तीक नामक पुत्र की प्राप्ति हुई। उनको ही गहनाग के नाम से जाना जाता है। जन्मेजय के नागयज्ञ में हुए समझौते के अनुसार वासुकी और गहनाग के नाम से बने मंत्रोच्चार से सांप का जहर ठीक हो जायेगा, अन्यथा काटे हुए सांप के फन के हजार टुकडे़ हो जाएंगे।
वैज्ञानिक पहलू पर भारी पड़ गया आस्था और विश्वास
लोगों के अटूट विश्वास और सर्पदंश से ठीक होने की इन घटनाओं के बारे में हमने भी सत्य उजागर करने की ठानी तो स्वयं ही उसमें डूबता चला गया। मैं अभी मंदिर के पुजारी से बात ही कर रहा था कि खेमापुर निवासिनी लीलावती अपने बच्चे को लेकर पहुंची, उनके बच्चे को सांप ने डस लिया था। बस पुजारी द्वारा अपने गई इलाज की प्रक्रिया को मैं करीब से समझने लगा।आँखों देखी को कैसे झुठलाता। फिर गहराई से इलाज के तरीके को समझा और पाया कि पुजारी द्वारा इलाज में एक सामान्य प्रक्रिया ही अपने जा रही थी। पास स्थित कुएं का जल, कुछ मंत्र और मंदिर की परिक्रमा। इसके उपरांत कुछ ही देर में सर्पदंश का शिकार व्यक्ति स्वयं को स्वस्थ महसूस करने लगा। अभी कुछ ही क्षण बीता था कि मानुडीह निवासी विनोद सिंह अपनी माता को लेकर पहुंच गए, उन्हें भी सांप ने डसा था। उनका भी इलाज पुजारी ने किया और चंद मिनट में मेरे सामने वह भी स्वस्थ हो गई।
इतना ही नहीं, कई लोग तो ऐसे भी सर्पदंश के शिकार को लेकर पहुंचते हैं जो बेहोशी की हालत में थे। उन मरीजों के इलाज में भी उसी प्रक्रिया को अंजाम दिया जा रहा था। एक बार मन में विचार आया कि पुजारी द्वारा कुएं के जिस जल का प्रयोग इलाज में किया जा रहा है, उसी में शायद कोई औषधीय गुण हो, पर जल्द ही मेरी इस सोच को भी झटका लगा, जब पुजारी ने बताया कि इलाज में हैंड पंप का पानी भी प्रयोग किया जाता है। कहा कि इस पूरे स्थान की ही यह महिमा है कि यदि सर्पदंश का शिकार व्यक्ति मंदिर क्षेत्र में जीवित अवस्था में आ गया तो उसकी सांप के जहर से मौत नहीं हो सकती। आखिरकार मैं भी इस गुत्थी को सुलझाने में खुद को असफल पाया और आँखों देखी और आस्था के आगे मैंने हार मान ली।
पंवार वंश के क्षत्रिय राजाओं के हैं कुलदेवता
सदियों से श्रावण मास की नागपंचमी को लगने वाला गहनाग मेला आज भी प्रासंगिक है। आस-पास के आधा दर्जन जिलों के श्रद्धालु बाबा गहनाग के मंदिर पर घर की सुख शांति के लिए मन्नतें मांगने आते हैं। मान्यता है कि यहां से सरसों और राई ले जाकर घर में छींटने से कभी सांप नहीं निकलता है। यह मंदिर मुगलकालीन लखोरी ईटों से पंवार वंश के क्षत्रिय राजाओं ने बनवाया था, जिनके ये कुलदेवता बताए जाते हैं। हालाँकि समय के साथ वह मंदिर ढह गया और स्थानीय लोगों ने अब नया मंदिर बनवा दिया हैं। कहा जाता है कि नागपंचमी के दिन यहां श्रद्वालुओं को नाग देवता स्वयं दर्शन देते हैं।
डॉक्टर का मत, इलाज ही एकमात्र उपाय
इस गुत्थी को सुलझाने की हमने एक और कोशिश की और इस बारे में किसी डॉक्टर से बात करने की ठानी। सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र बीकापुर में तैनात डॉ. संत कुमार मौर्य को हमने पूरी कहानी सुनाई और उनसे इस संबंध में राय मांगी। डॉ. संत ने हालांकि लोगों की आस्था के बारे में कुछ भी कहने से इंकार करते हुए कहा कि कई सांपों के जहर बेहद खतरनाक होता है, जो कई बार लोगों की जान ले लेता है। ऐसे मामलों में लोगों को तुरंत निकटतम स्वास्थ्य केंद्र जाना चाहिए। यदि समय से मरीज अस्पताल पहुंच जाता है तो उसकी जान बचाई जा सकती है।