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गजब : गोंडा में सात दवाओं से ही मरीजों का इलाज कर रहे डॉक्टर

स्वास्थ्य महकमे का भी गजब फंडा है। सिर्फ सात आयुर्वेदिक दवाओं से ही मरीज को चंगा कर रहा है। यह बात दीगर है कि इलाज के लिए 58 आयुर्वेदिक दवाओं की मांग हुई थी लेकिन आपूर्ति सिर्फ सात दवाओं की हुई। अस्पताल में गठिया, बयार, पैरालिसिस व मधुमेह जैसे रोगों के लिए दवा उपलब्ध नहीं है। सिर्फ बुखार, पेट दर्द, सर्दी-जुकाम व वायुनाशक की ही दवाएं मौजूद हैं।

जिले में आयुष के तहत एनएचएम से आयुर्वेदिक चिकित्सकों की नियुक्ति की गई है। एनएचएम से लगभग 12 आयुर्वेदिक चिकित्सक तैनात हैं। यही नहीं जिला अस्पताल परिसर में एक आयुष क्लीनिक भी संचालित की जा रही है। जिसमें जिलेभर के विभिन्न असाध्य रोगों के मरीज आते हैं। यहां सीएमओ के स्तर से दवाओं की खरीद की जाती है। 16 लाख रुपए हर वित्तीय वर्ष में दवाओं की खरीद के लिए आते हैं। दो वर्ष बाद दवा की खरीद की गई जिसमें मात्र सात आयुर्वेदिक दवाओं की ही आपूर्ति की गई।

इन दवाओं की हुई आपूर्ति : च्यवनप्राश, गिलोय चूर्ण, लवणभास्कर, बिलवादि चूर्ण, लौंगादिवटी, त्रिफलाचूर्ण व पंचगुण तेल।

आयुर्वेदिक चिकित्सकों ने मांगी थी यह दवाएं : असीर्ण कंटक, अर्धांगवातरिहा रस, कामिनी निद्रावण रस, गंधक रसायन, शुक्रवल्लभि रस, सर्पगन्धावटी, स्मृति सागर रस, अग्रिमुख चूर्ण, कामदेव चूर्ण, धातुपौष्टिक चूर्ण, लवण भाष्कर चूर्ण, हिंग्वाष्टकचूर्ण, अशोकारिष्ट, अश्वगंधा रस, कुमारी आसव, दशमूलारिष्ट, द्राक्षासव, खादिरारिष्ट, वासारिष्ट, विष्णु तेल, महानारायण तेल, भृंगराज तेल, सोमराजी तेल, वासाअवलेह, च्यवनप्राश, सुदर्शन चूर्ण, चित्रकार्यवटी, शंखवटी, महायोगराज, एकांगवीर रस, योगराज गुगुल, मूसली पाठ, सुपारी पाक, हरिद्राखण्ड, शंखपुष्पी, पेन बाम, मंजन, चंदनासव, लक्ष्मीविलास रस, महासुदर्शन वटी, विषगर्भ तेल, सैंधवादि तेल।

अस्पताल आते हैं इन रोगों के मरीज : सांस, बुखार, सर्दी, जुकाम, बीपी, गठिया, बयार, उलझन, घबराहट, सिर दर्द, नपुंसकता, सफेद दाग, चर्म रोग, खांसी, ब्रेन, मधुमेह रोग, पैरालिसिस व प्रदर रोग। इन रोगों के मरीज अस्पताल पहुंचते हैं।

प्रतिदिन 35 से 40 की होती है ओपीडी : जिला अस्पताल परिसर में स्थित आयुष क्लीनिक में आयुर्वेदिक चिकित्सक के पास 35 से 40 मरीज प्रतिदिन आते हैं। कई मरीज तो ऐसे होते हैं जो अंग्रेजी दवाओं से ठीक न होने पर आयुर्वेदिक पद्धति से इलाज का सहारा लेते हैं। ऐसे मरीज चर्म रोग, पैरालिसिस, सफेद दाग जैसे असाध्य रोगों से पीड़ित होते हैं।

बाहर से लिख रहे दवाएं : आयुष क्लीनिक पहुंचने वाले मरीजों को बाहर से दवाएं लिखी जा रही हैं। क्लीनिक में सभी दवाओं की उपलब्धता न होने के कारण असाध्य रोगों के मरीजों को बाहर से दवाएं लेनी पड़ रही हैं। कोरोना काल में आयुर्वेद पर लोगों का विश्वास बढ़ा है इसलिए आयुष क्लीनिक पर मरीजों की संख्या भी लगातार बढ़ती जा रही है।

इस मर्ज की दवा : अस्पताल में गिलोय चूर्ण, बुखार की दवा, लवण भाष्कर पाचन की दवा, बिलवादि चूर्ण पेट दर्द, लौंगादिवदी कफ और ठंडी की दवा, त्रिफलाचूर्ण पेट की दवा और पंचगुण तेल वायुनाशक ही उपलब्ध है।

आयुर्वेदिक चिकित्सक डॉ. ओमप्रकाश गुप्ता ने बताया कि अस्पताल आने वाले मरीजों व प्रतिदिन होने वाली ओपीडी को देखते हुए मुख्य चिकित्सा अधिकारी से 58 प्रकार की आयुर्वेदिक दवाओं की मांग की गई है। सभी दवाएं मिलने के बाद आयुर्वेदिक पद्धति से मरीजों का समुचित इलाज किया जा सकता है।
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मुख्य चिकित्साधिकारी डॉ. आरएस केसरी ने बताया कि जेम पोर्टल से दवाओं की खरीद की गई है। जो दवाएं जेम पोर्टल पर उपलब्ध थीं उनको खरीदकर स्वास्थ्य केन्द्रों व आयुष क्लीनिक पर पहुंचा दिया गया है। जेम पोर्टल पर जो आवश्यक दवाएं नहीं हैं उनकी खरीद भी आवश्यकता के अनुसार की जाएगी।