उत्तर प्रदेश में विधानसभा उपचुनाव हो रहे है। जिसमें से ज्यादा उम्मीदवार दागी है। जानकारी के मुताबिक 21 फीसदी 21 फीसदी उम्मीदवार दागी हैं। इसके अलावा 39 फीसदी प्रत्याशी करोड़पति हैं। इस बात की जानकारी इलेक्शन वॉच और एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म ने प्रत्याशियों का ब्यौरा जारी कर दी।
वही सबसे अमीर प्रत्याशी देवरिया सीट से सपा प्रत्याशी ब्रह्माशंकर त्रिपाठी हैं। इनके पास 31 करोड़ रुपये की संपत्ति है। वहीं मल्हनी के निर्दलीय उम्मीदवार धनंजय सिंह के ऊपर सबसे ज्यादा आपराधिक मुकदमे दर्ज हैं। इनके अलावा बसपा के 7 प्रत्याशियों में से 5, सपा के 6 में से 5 और कांग्रेस के 6 में से 1 प्रत्याशी दागी हैं। सात सीटों पर होने वाले उपचुनावों में कुल 88 उम्मीदवार हैं।
धनंजय सिंह की संपत्ति
वही अगर पूर्वांचल के बाहुबली नेता और बहुजन समाज पार्टी से सांसद रहे धनंजय सिंह के खिलाफ कुल 7 मामले दर्ज हैं। उनपर हत्या का भी आरोप है। रिपोर्ट के अनुसार इस बार यूपी उपचुनाव में कुल 18 प्रत्याशियों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं. इनमें भी 15 के खिलाफ गंभीर आपराधिक मामले हैं। बुलंदशहर से बसपा प्रत्याशी मोहम्मद युनुस के खिलाफ रेप का आरोप सहित 5 मुकदमे हैं। भाजपा के किसी भी उम्मीदवार के खिलाफ कोई भी केस दर्ज नहीं है।
एक उम्मीदवार अशिक्षित
करोड़पतियों की बात करें तो बसपा के सभी उम्मीदवार करोड़पति हैं। सपा के 5 जबकि बीजेपी के 4 उम्मीदवार करोड़पति हैं। सबसे ज्यादा धनी उम्मीदवार ब्रह्मशंकर त्रिपाठी की कुल संपति 31.49 करोड़ रुपये है। धनंजय सिंह यहां दूसरे नंबर पर हैं, उनके पास 23.07 करोड़ रुपये की संपत्ति है। 88 में से 47 उम्मीदवार ऐसे हैं, जो ग्रेजुएट या उससे अधिक पढ़े हैं। 26 उम्मीदवार पांचवीं से 12वीं पास के बीच के हैं।10 प्रत्याशी साक्षर हैं, जबकि एक प्रत्याशी ने खुद को अशिक्षित बताया है।
धनंजय सिंह की पढ़ाई
धनंजय ने जौनपुर के टीडी कॉलेज में छात्र राजनीति में कदम रखा। इसके बाद वह लखनऊ विश्वविद्यालय पहुंचा और जल्द ही लखनऊ की आपराधिक गतिविधियों में संलिप्त हो गया। हत्या, डकैती, लूट, रंगदारी, धमकी समेत कई आपराधिक मामले उस पर दर्ज हो गए थे। इसी दौरान धनंजय की मुलाकात बाहुबली छात्रनेता अभय सिंह से हुई थी।
धनंजय सिंह का राजनीतिक सफर
वही अगर धनंजय की पढ़ाई के बारे में बात करें तो 2002 में धनंजय ने रारी विधानसभा सीट से निर्दलीय चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। इसके बाद 2007 के चुनाव में उसने जेडीयू के टिकट पर चुनाव लड़ने का फैसला किया। इस बार भी धनंजय ने जीत का स्वाद चखा। 2009 में बीएसपी से वह लोकसभा पहुंचा लेकिन 2011 में मायावती ने उन्हें ‘पार्टी के ख़िलाफ़ काम करने’ की वजह से पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया। इसके बाद धनंजय फिर कभी खड़ा नहीं हो पाया। 2012 के विधानसभा चुनाव में उसने अपनी पूर्व पत्नी को चुनावी मैदान में उतारा, लेकिन वह हार गईं। 2014 के लोकसभा और 2017 के विधानसभा चुनाव में भी धनंजय को हार का मुंह देखना पड़ा।