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UP: 2024 से पहले पश्चिमी यूपी में फिर गरमाएगी “कास्ट पॉलिटिक्स”, ये हैं इसकी वजहें

Loksabha Election 2024: देश में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले पश्चिमी यूपी में एक बार फिर सियासत में गरमाहट दिखायी दे रही है। पश्चिमी यूपी के 27 लोकसभा क्षेत्रों में जाट, त्यागी, गुर्जर, ब्राह्मण, ठाकुर, पिछड़ा वर्ग और दलित सामूहिक रूप से लगभग 40 प्रतिशत वोट बैंक हैं, जो किसी भी पार्टी के लिए काफी मायने रखते हैं। इसी को ध्यान में रखते हुए अब राजनीतिक दलों ने अपने अपने प्रयास शुरू कर दिए हैं।

तमाम राजनीतिक दल इस महत्वपूर्ण वोट शेयर को सुरक्षित करने का प्रयास कर रहे हैं। पिछले दो महीनों में हुई महापंचायतों, रैलियों और सम्मेलनों सहित हाल की घटनाओं में विभिन्न जाति समूहों ने अपनी मांगें उठाई हैं। शुरुआत में गैर-राजनीतिक मंचों पर आयोजित की जाने वाली ये सभाएं, तेजी से समुदायों के लिए राजनीतिक प्रतिष्ठान से अपनी अपेक्षाएँ व्यक्त करने का मंच बन गई हैं।

इसका एक ज्वलंत उदाहरण जाट समुदाय की आरक्षण की नये सिरे से मांग है। 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले जाटों ने केंद्रीय स्तर पर आरक्षण की मांग को लेकर जोरदार आंदोलन चलाया था, भारतीय जनता पार्टी ने सत्ता में आने पर इस मांग को पूरा करने का वादा किया था। हालांकि एक दशक बाद भी मांग पर ध्यान नहीं दिया गया जिससे पश्चिमी यूपी के जाटों में आरक्षण की मांग फिर से शुरू हो गई।

जाट नेताओं का मानना है कि चुनावी एजेंडे की छाया पड़ने से पहले अपनी आरक्षण की मांग पर जोर देने का यह उपयुक्त अवसर है। रालोद ने विपक्षी दलों के साथ मिलकर जाटों का समर्थन जुटाने के लिए सितंबर में मेरठ में एक सम्मेलन आयोजित किया था। कुछ दिनों बाद, भाजपा समर्थित जाटों ने अपनी आरक्षण की मांग पर जोर देते हुए, मेरठ में ‘अंतर्राष्ट्रीय जाट संसद’ बुलाई। इस कार्यक्रम में केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान समेत देशभर से नेता शामिल हुए थे।

खापों के नेता और प्रमुख जाट हस्तियां सरकार के साथ चर्चा और संभावित प्रदर्शनों के लिए तैयारी कर रहे हैं। नवंबर में दिल्ली में एक राष्ट्रीय सम्मेलन के साथ, अमरोहा, अलीगढ़ और मथुरा में सम्मेलनों की योजना बनाई गई है। पश्चिमी यूपी में त्यागी समुदाय भी अपनी राजनीतिक मौजूदगी जताने के लिए लामबंद हो रहा है।

भाजपा के लंबे समय से समर्थक होने के बावजूद, त्यागी का दावा है कि उन्हें पार्टी के भीतर भेदभाव का सामना करना पड़ता है। त्यागी को बड़े पैमाने पर विधानसभा, नगरपालिका और पंचायत चुनावों में पार्टी टिकट प्राप्त करने के साथ-साथ क्षेत्रीय, महानगरीय और जिला इकाइयों में नियुक्तियों से बाहर रखा गया है। इस व्यवहार से निराश त्यागी ने हाल ही में महापंचायतें आयोजित की हैं और अपनी राजनीतिक पार्टी भी बनाई है।

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