Chandrayaan 3: सारी दुनिया की निगाहें चंद्रयान-3 पर टिकी थीं। इस सफलता के साथ ही भारत चांद के दक्षिणी ध्रुव पर लैंड करने वाला पहला देश बन गया है। और चांद पर सॉफ्ट लैंडिंग करने वाला चौथा देश बन गया है। इससे पहले रूस, चीन और अमेरिका ने चंद्रमा पर सॉफ़्ट लैंडिंग की है। लेकिन इन सबका काम भूमध्यरेखीय क्षेत्र में था। विक्रम लैंडर ने दक्षिणी ध्रुव के क़रीब सॉफ्ट लैंडिंग की है जो भारत के लिए बहुत गर्व की बात है।
दक्षिणी ध्रुव पर कैसे उतरा विक्रम लैंडर
हम बार – बार सॉफ्ट लैंडिंग शब्द का इस्तेमाल कर रहे हैं। लेकिन ये सॉफ़्ट लैंडिंग इतनी भी आराम से नहीं हुई है। विक्रम लैंडर दस किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चांद की सतह पर आकर बैठा है। अगर उसे छोड़ दिया जाए तो वह बहुत तेज रफ्तार से गिरेगा, जैसे चंद्रयान-2 का लैंडर चांद की सतह पर क्रैश कर गया था। लेकिन चंद्रयान-3 का विक्रम लैंडर इस तरह बनाया गया कि वह चांद की सतह पर जाकर मोहब्बत से बैठ जाए। और बाद में वह बेंगलुरु स्थित कमांड सेंटर के साथ बातचीत कर सके।
ये बहुत बड़ा और मुश्किल काम है। दुनिया में अब तक जितनी भी सॉफ़्ट लैंडिंग हुई हैं, उनमें से दो में से एक ही सॉफ्ट लैंडिंग सफल हुई है। इससे पहले भारत के चंद्रयान-2 का लैंडर क्रैश कर गया था। लेकिन इसके बाद चंद्रयान-3 के विक्रम लैंडर का चांद पर उतर जाना एक बड़ी उपलब्धि है। विक्रम का नाम भारत में स्पेस टेक्नोलॉजी के जनक विक्रम साराभाई के नाम पर दिया गया। ऐसे में ये उनके लिए भी बहुत खुशी का दिन होगा, वो जहां पर भी हैं।
विक्रम लैंडर की गति कैसे कम हुई?
चांद की सतह पर उतरने से पहले विक्रम लैंडर की रफ्तार कम करना भी एक चुनौती थी। इसके लिए चंद्रयान -3 के विक्रम लैंडर को 125*25 किलोमीटर की ऑर्बिट में रखा गया था। इसके बाद इसे डिऑर्बिट किया गया।
इसके बाद जब उसे चांद की सतह की ओर भेजा गया तब उसकी रफ्तार 6000 किलोमीटर प्रति घंटे से ज़्यादा थी।
इसके बाद कुछ ही मिनटों में जब उसे चांद की सतह पर सॉफ़्ट लैंड किया तो उसकी गति बेहद कम कर दी गयी।
ऐसा करने में विक्रम लैंडर पर लगे चार इंजनों का सहारा लिया गया। इसके बाद दो इंजनों की मदद से विक्रम को चांद की सतह पर उतार दिया गया।
अब बाहर कैसे आएगा प्रज्ञान रोवर
चंद्रयान – 3 का विक्रम लैंडर चंद्रमा की सतह पर पहुंच गया है। लेकिन अब इंतजार इसके रोवर प्रज्ञान के बाहर निकलने का है। लेकिन प्रज्ञान को विक्रम लैंड से बाहर निकलता हुआ देखने के लिए थोड़ा इंतजार करना होगा। विक्रम लैंडर के चांद की जमीन पर बैठने की वजह से जो धूल के कण उछले हैं, उन्हें अगले कुछ घंटों में वापस जमीन पर बैठने या विक्रम से दूर जाने का मौका दिया जाएगा। इसके बाद विक्रम लैंडर से एक रैंप खुलेगा जिसके सहारे प्रज्ञान चांद की जमीन पर चलना शुरू करेगा। प्रज्ञान रोवर और विक्रम लैंडर एक दूसरे से बातचीत कर सकते हैं।
विक्रम लैंडर चंद्रयान -2 के ऑर्बिटर और बंगलुरू स्थित कमांड सेंटर दोनों से बात कर सकता है। इसके बाद विज्ञान का काम शुरू होगा जो 14 दिनों तक जारी रहेगा। विक्रम और प्रज्ञान दोनों ही सौर ऊर्जा से संचालित हैं। इन्हें चांद की रोशनी वाली जगह पर ठीक से पहुंचाया गया है। क्योंकि अब 14 दिन तक रोशनी रहेगी तो प्रज्ञान और विक्रम काम कर सकेंगे।
कुछ समय में चांद की सतह से पहली तस्वीरें आएंगी जिनमें प्रज्ञान विक्रम की तस्वीरें लेगा और विक्रम प्रज्ञान की तस्वीरें लेगा। ये चांद की सतह से खींची गई इस तरह की पहली तस्वीरें होंगी। विक्रम और प्रज्ञान 4*2.5 किलोमीटर के उस क्षेत्र में काम करेगा जिसका नाम मैंने कलाम विहार दिया है।
क्योंकि भारत के पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम साहब ने ही कहा था कि भारत को चांद की सतह पर दक्षिणी ध्रुव के करीब अपना झंडा पहुंचाना चाहिए। ऐसे में खुशी का ये सारा खेल कलाम विहार से ही हो रहा है।
प्रज्ञान और विक्रम में कैसे बात होती है?
प्रज्ञान और विक्रम के बीच बातचीत का माध्यम रेडियो वेब्स हैं। ये इलेक्ट्रो मैग्नेटिक वेव होती हैं। इन्हें इस तरह बनाया गया है कि प्रज्ञान अपने लैंडर विक्रम से बात कर सके। प्रज्ञान सीधा बेंगलुरु स्थित कमांड सेंटर से बात नहीं कर सकता है। लेकिन विक्रम सीधे बेंगलुरु स्थित कमांड सेंटर से बात कर सकता है। हालांकि, चंद्रयान -3 के प्रोपेल्शन मॉड्यूल में कोई कम्युनिकेशन डिवाइस नहीं है। इस पूरी प्रक्रिया में चंद्रमा से धरती तक संदेश आने में सवा सेकेंड का वक़्त लगता है। और ये सारी प्रक्रिया ऑटोमेटेड ढंग से होती है।
अंतिम मिनटों में किसके हाथ में था कंट्रोल
आखिरी कुछ मिनट जब सबकी सांसें अटकी थीं, तब सारा काम कंप्यूटर ने किया। इसरो के वैज्ञानिकों ने सारी कमांड्स लोड कर दी थीं। कंप्यूटर ने इन सभी कमांड्स को ठीक ढंग से अंजाम दिया जिससे विक्रम लैंडर आराम से चांद की सतह पर पहुंच गया।