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सऊदी में मरे युवक की लाश 6 महीने बाद पहुंची सुल्तानपुर, अंतिम संस्कार से पहले खड़ा हुआ बवाल

रिपोर्ट- निसार अहमद

सुल्तानपुर: मौत के बाद भी किस्मत और बदकिस्मत मायने रखती है इसका जीता जागता उदाहरण सुल्तानपुर में देखने को मिला। जहां एक शख्स की मौत सऊदी अरब में 6 महीने पहले हो गई थी। किसी तरह लाश घर पहुंची तो अब उसे दफन करने को लेकर बवाल शुरू हो गया। गोसाईंगंज थाना क्षेत्र के भरथीपुर गांव निवासी दिलावर लगभग 6 महीने पहले सऊदी अरब के रियाद में जिले के एक व्यक्ति की हार्ट अटैक से मौत हो गई थी। चार साल पहले वह रोजी रोटी सिलसिले में सऊदी गया था। घर वालों की तमन्ना थी कि मृतक को वतन की मिट्टी में सुपुर्द-ए-खाक किया जाए। समाजसेवी अब्दुल हक के प्रयास से शुक्रवार की भोर मृतक का पार्थिव शरीर जब गांव पहुंचा तो अंतिम दर्शन के लिए लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा। शुक्रवार को जब दिलावर के शव को सुपुर्द-ए-खाक किया जा रहा था तभी गांव के कुछ लोगों ने अपनी भूमि बताते हुए मृतक के परिजनों को शव दफन करने से रोक दिया। मामला दो समुदाय के बीच का होने के चलते सूचना पर एसडीएम सदर रामजी व सीओ जयसिंहपुर दलवीर सिंह स्थानीय फोर्स के साथ मौके पर पहुंचे। अधिकारियों के हस्तक्षेप के बाद गांव के ही कब्रिस्तान में दिलावर को मिट्टी दी गई।

दिलावर की मां तकदीरुल निशा ने कादीपुर निवासी सामाजिक कार्यकर्ता अब्दुलहक के जरिए विदेश मंत्री को पत्र लिखकर बेटे का शव स्वदेश मंगवाने की गुहार लगाई। विदेश मंत्रालय ने मामले को गंभीरता से लेते हुए जेद्दा दूतावास (सऊदी अरब) को शव भेजवाने की प्रक्रिया शीघ्र पूरी करने के निर्देश दिए। लंबी जद्दोजहद के बाद शव भेजने की प्रक्रिया पूरी हुई, मगर कोरोना संक्रमण के चलते हवाई यात्रा पर लगी पाबंदियां दिलावर की बॉडी भारत भेजने में आड़े आने लगीं। गत दिनों सऊदी अरब से दिल्ली के बीच में हवाई यात्रा शुरू की गई तो अब्दुलहक ने जेद्दा एंबेसी के अधिकारियों से पुनः संपर्क किया। जिसके बाद 24 सितंबर को दिलावर का पार्थिव शरीर सऊदी एयरलाइंस से दिल्ली भेजा गया।

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दिल्ली में समाजसेवी अब्दुल हक के साथ पहले से मौजूद परिवार के सदस्य कागजी फोरम पूरा करने के बाद प्राइवेट वाहन से शव लेकर शुक्रवार की भोर पैतृक गांव पहुंचे। जहां 144 दिन बाद दिलावर के शव को सुपर्दे खाक किया गया। अब्दुलहक ने बताया कि जद्दा अंबेसी के अधिकारी डाक्टर अलीम, सहाबुद्दीन खान, मो. फैसल व केरला के रहने वाले सामाजिक कार्यकर्ता मो. उमर का पार्थिव शरीर भेजवाने में अहम योगदान रहा। उधर, मृतक की मां तकदीरूल निशा, पत्नी अफसाना व चार बच्चों का रो रोकर बुरा हाल है।