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Diwali 2020: जानें शुभ मुहूर्त, लक्ष्मी पूजन का सही तरीका और आरती…

इस पर्व का संबंध लक्ष्मी जी से है। दिवाली पर लक्ष्मी जी की पूजा की जाती है। लक्ष्मी जी को सुख समृद्धि का देवी कहा गया है साथ ही साथ इन्हें धन की देवी भी कहा गया है।

ग्रह और नक्षत्र की चाल पर इस बार दिवाली को बहुत ही खास बना रहे हैं। पंचांग के अनुसार 14 नवंबर को दिवाली का पर्व है। इस दिवाली पर लिया गया संकल्प, मनोकामना, विशेष कार्य और शुभ कार्य पूर्ण होने के प्रबल योगों का निर्माण हो रहा है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इस बार दिवाली पर देव गुरु बृहस्पति ग्रह धनु राशि में गोचर कर रहे हैं, धनु राशि बृहस्पति की अपनी राशि है। शनि देव मकर राशि में मौजूद रहेंगे। मकर राशि शनि की राशि कहलाती है। इसके अलावा शुक्र ग्रह कन्या राशि में रहेगा। विशेष बात ये हैं कि इस दिन पंचांग के अनुसार चंद्रमा और सूर्य तुला राशि में विराजमान रहेगा।

दिवाली पर ग्रहों की स्थिति

दिवाली पर ग्रहों की ऐसी स्थिति 499 सालों बाद बन रही है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार ग्रहों की ऐसी स्थिति इससे पहले 1521 में बनी थी। दिवाली के बाद 16 नवंबर को सूर्य का राशि परिवर्तन होने जा रहा है। 16 नवंबर को वृश्चिक संक्रांति है। इसके बाद यानि 20 नवंबर को गुरु का राशि परिवर्तन होने जा रहा है। गुरु शनि के साथ आने वाले हैं। इस दिन गुरु धनु राशि को छोड़कर मकर राशि में गोचर करेंगे। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार गुरु और शनि का योग शुभ फल प्राप्त करता है। शनि और गुरु का आपस में सम संबंध हैं। यानि ये एक दूसरे को हानि नहीं पहुंचाते हैं।

दीवाली की तिथि और शुभ मुहूर्त

दीवाली / लक्ष्‍मी पूजन की तिथि: 14 नवंबर 2020

अमावस्‍या तिथि प्रारंभ: 14 नवंबर 2020 को दोपहर 02 बजकर 17 मिनट से

अमावस्‍या तिथि समाप्‍त: 15 नवंबर 2020  को सुबह 10 बजकर 36 मिनट तक

लक्ष्‍मी पूजा मुहुर्त: 14 नवंबर 2020 को शाम 05 बजकर 28 मिनट से शाम 07 बजकर 24 मिनट तक

कुल अवधि: 01 घंटे 56 मिनट

दीवाली पूजन की सामग्री

लक्ष्मी-गणेश की प्रतिमा, लक्ष्मी जी को अर्पित किए जाने वाले वस्त्र, लाल कपड़ा, सप्तधान्य, गुलाल, लौंग, अगरबत्ती, हल्दी, अर्घ्य पात्र, फूलों की माला और खुले फूल, सुपारी, सिंदूर, इत्र, इलायची, कपूर, केसर, सीताफल, कमलगट्टे, कुशा, कुंकु, साबुत धनिया (जिसे धनतेरस पर खरीदा हो), खील-बताशे, गंगाजल, देसी घी, चंदन, चांदी का सिक्का, अक्षत, दही, दीपक, दूध, लौंग लगा पान, दूब घास, गेहूं, धूप बत्ती, मिठाई, पंचमेवा, पंच पल्लव (गूलर, गांव, आम, पाकर और बड़ के पत्ते), तेल, मौली, रूई, पांच यज्ञोपवीत (धागा), रोली, लाल कपड़ा, चीनी, शहद, नारियल और हल्दी की गांठ।

लक्ष्‍मी पूजन की विधि

धनतेरस के दिन माता लक्ष्‍मी और भगवान गणेश की नई मूर्ति खरीदकर दीपावली की रात उसका पूजन किया जाता है। दीवाली के दिन इस तरह करें महालक्ष्‍मी की पूजा:

मूर्ति स्‍थापना

 सबसे पहले एक चौकरी पर लाल वस्‍त्र बिछाकर उस पर मां लक्ष्‍मी और भगवान गणेश की प्रतिमा रखें। अब जलपात्र या लोटे से चौकी के ऊपर पानी छिड़कते हुए इस मंत्र का उच्‍चारण करें।

ॐ अपवित्र: पवित्रो वा सर्वावस्‍थां गतोपि वा । य: स्‍मरेत् पुण्‍डरीकाक्षं स: वाह्याभंतर: शुचि: ।।

धरती मां को प्रणाम: इसके बाद अपने ऊपर और अपने पूजा के आसन पर जल छिड़कते हुए दिए गए मंत्र का उच्‍चारण करें।