जयपुर। जवाहर कला केन्द्र में आयोजित दशहरा नाट्य उत्सव के तीसरे दिन मंच पर सीता हरण से लेकर लंका दहन तक के प्रसंग मंचित हुए। रावण का षड्यंत्र, जटायु का बलिदान, शबरी की श्रद्धा, राम सुग्रीव की मित्रता और समुद्र पार जाकर हनुमान द्वारा लंका दहन, प्रभावी संवादों के साथ ऐसे ही दृश्य मध्यवर्ती में सजे मंच पर देखने को मिले।
सीता की चेतावनी से गूंजा आकाश
‘राम से बैर लेने की सोचो भी मत, इसी में तुम्हारी भलाई है’, सीता की सुंदरता का बखान सुनकर अपने षड्यंत्र में मारीच को शामिल करने पहुंचे रावण को मारीच ने कुछ इस तरह चेताया। रावण ने एक ना सुनी और मारीच को स्वर्ण मृग बना भेज दिया सीता के समक्ष। ‘ओ दुष्ट खड़ा रह खबरदार, स्वामी अब आने वाले हैं, जो धनुष तोड़कर लाए हैं वो ही मेरे रखवाले हैं’ रावण को चेतावनी देते सीता के शब्दों ने नारी की गरीमा और शक्ति का बखान किया।
शबरी की श्रद्धा हुई स्वीकार
मार्ग में रावण का सामना जटायु से होता है। संगीत और नृत्य के संयोजन से रावण-जटायु युद्ध को आकर्षक तरीके से दर्शाया गया। सीता की खोज में निकले राम व लक्ष्मण जब जटायु के पास पहुंचते हैं तो वह दोनों का मार्ग प्रशस्त करता है। जटायु के बताए मार्ग पर निकले रघुवंशियों ने शबरी के चखे हुए बेर खाकर उसकी श्रद्धा को स्वीकार किया। ‘पृथ्वी पर कोई न ऊंचा है न कोई नीचा है, सब समान हैं’, इन संवादों के जरिए राम ने समाज को समानता का संदेश दिया।
हनुमान के शब्दों से बढ़ा सीता का विश्वास
उधर, हनुमान अपने प्रभु की आज्ञा से सीता को तलाशने निकलते हैं। लंका पहुंचकर हनुमान सीता को अपने प्रभु की दी गई निशानी दिखाते हैं। ‘कपि के बचन सप्रेम सुनि उपजा मन बिस्वास, जाना मन क्रम वचन यह कृपासिंधु कर दास’, के जरिए सीता के विश्वास को दर्शाया गया। संगीत और प्रकाश का आकर्षक प्रयोग कर हनुमान के अशोक वाटिका उजाड़ने और लंका दहन का जीवंत चित्रण किया गया।