गायत्री मंत्र
ॐ भूर्भुवः स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ॥
गायत्री मंत्र मुख्यतः वेदों की रचना है. ये यजुर्वेद और ऋग्वेद के दो भागों से मिलकर बना है। समस्त धर्म ग्रंथों में गायत्री की महिमा एक स्वर से कही गई। समस्त ऋषि-मुनि मुक्त कंठ से गायत्री का गुण-गान करते हैं। शास्त्रों में गायत्री की महिमा के पवित्र वर्णन मिलते हैं। गायत्री मंत्र तीनों देव, बृह्मा, विष्णु और महेश का सार है। गीता में भगवान् ने स्वयं कहा है ‘गायत्री छन्दसामहम्’ अर्थात् गायत्री मंत्र मैं स्वयं ही हूं।

गायत्री मंत्र को सभी मंत्रों में सबसे शक्तिशाली माना जाता है। इस मंत्र का जाप करने के कुछ नियम होते हैं, तभी इसका प्रभाव देखने को मिलता है।
गायत्री मंत्र नियम
गायत्री मंत्र जप किसी गुरु के मार्गदर्शन में करना चाहिए। गायत्री मंत्र जप करने वाले का खान-पान शुद्ध और पवित्र होना चाहिए। जिन लोगों का सात्विक खान-पान नहीं है, वह भी गायत्री मंत्र जप कर सकते हैं। कुश या चटाई का आसन पर बैठकर जाप करें। तुलसी या चन्दन की माला का प्रयोग करें। ब्रह्ममूहुर्त में यानी सुबह पूर्व दिशा की ओर मुख करके गायत्री मंत्र का जाप करें और शाम को पश्चिम दिशा में मुख कर जाप करें। इस मंत्र का मानसिक जप किसी भी समय किया जा सकता है।
गायत्री मंत्र : अर्थ सहित व्याख्या
ॐ भूर्भुवः स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ॥
ॐ : परब्रह्मा का अभिवाच्य शब्द
भूः :
भूलोक
भुवः : अंतरिक्ष लोक
स्वः : स्वर्गलोक
त : परमात्मा अथवा ब्रह्म
सवितुः : ईश्वर अथवा सृष्टि कर्ता
वरेण्यम : पूजनीय
भर्गः: अज्ञान तथा पाप निवारक
देवस्य : ज्ञान स्वरुप भगवान का
धीमहि : हम ध्यान करते है
धियो :
बुद्धि प्रज्ञा
योः :
जो
नः : हमें
प्रचोदयात् : प्रकाशित करें।
अर्थ: : हम ईश्वर की महिमा का ध्यान करते हैं, जिसने इस संसार को उत्पन्न किया है, जो पूजनीय है, जो ज्ञान का भंडार है, जो पापों तथा अज्ञान की दूर करने वाला हैं- वह हमें प्रकाश दिखाए और हमें सत्य पथ पर ले जाए।