घोसी (Ghosi) उप चुनाव में भाजपा की करारी हार संदेश है कि 2024 के लोक सभा चुनाव में परिवर्तन का। ओपी राजभर और दारा सिंह चौहान जैसे दल बदलू नेताओं के सिमटने का। बसपा सुप्रीमों मायावती को सबक लेने का। जी हां बहुजन समाज पार्टी के लिए खतरे की घंटी बज चुकी है। सुप्रीमों मायावती ने अगर घोसी उप चुनाव के नतीजों से सबक नही लिया तो हाथी चुनाव चिह्न इतिहास का हिस्सा बन जाएगा। अगर इसी तरह चुनावी नतीजे लोक सभा चुनाव मे आए तो चुनाव आयोग बसपा से हाथी चुनाव निशान भी वापस ले सकता है।
आपको बता दें कि, घोसी उप चुनाव में बसपा ने कंडीडेट नहीं उतारा था। अलबत्ता ऐलान किया था कि, वोटर वोट डालने के लिए घरों से न निकले। अगर निकले भी तो नोटा बटन ही दबाए। मगर नतीजा आया तो नोटा को वोट मिला सिर्फ 1725। अब सवाल है आखिर क्या हुआ बसपा के एलान का। बसपा के कैडर वोटरों ने भी हवा निकाल दी, बसपा के एलान की। आपको बता दें कि, देश में बसपा का सिर्फ एक विधायक है। बलिया की रसड़ा सीट से बसपा के एकलौते विधायक है, उमा शंकर सिंह। वहीं लोक सभा में 10 सांसद है, बहुजन समाजवादी पार्टी के। बसपा के 10 सांसद चुने गये थे बसपा गठबंधन की वजह से।
साल 2019 के लोक सभा चुनाव के बाद से बसपा एकला चलो की नीति पर है। लिहाजा चुनाव में वोट तो संतोष जनक मिल रहा है लेकिन रिजल्ट नही आ रहा है। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि, अगर 2024 में बसपा एकला चलो की नीति पर मैदान में उतरी तो रिजल्ट जीरो बटा सन्नाटा होगा। बसपा को उसकी शर्तों पर चुनाव लड़ाने के लिए कैंडिडेट नही मिलेंगे। लोक सभा चुनाव का रिजल्ट आने पर हाथी चुनाव निशान भी इतिहास बन जाएगा।
आपको बता दें कि, एक वक्त था जब उत्तर प्रदेश ही नहीं देश में बसपा सुप्रीमों मायावती की बड़ी हैसियत थी। बड़ी संख्या में नेताओं और करिबियों को विधान परिषद और राज्य सभा भेजती थी। लेकिन आज खुद मायावती न तो विधान परिषद जा सकती है और न ही राज्य सभा। यू कहें कि, बसपा की हैसियत राष्ट्रीय लोक दल और अपना दल से भी कम हो गयी है। 2024 में लोकसभा चुनाव होना है, लोक सभा चुनाव में बसपा की ताकत बढ़ेगी या पार्टी और सिमट जाएगी ये तो रिजल्ट आने के बाद पता चलेगा।