दिवाली पांच दिन का त्योहार होता है, चौथे दिन गोवर्धन की पूजा की जाती है। हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को गोवर्धन पूजन करने का विधान है। इस तिथि को अन्नकूट के नाम से जाना जाता है क्योंकि इस दिन घरों में अन्नकूट का भोग बनाया जाता है। गोवर्धन पूजन के दिन घरों में गोबर से गोवर्धन महाराज की प्रतिमा बनाई जाती है और पूरे परिवार के साथ शुभ मुहूर्त में पूजन किया जाता है।
ऐसा कहा जाता है कि, इस दिन भगवान कृष्ण ने देवराज इंद्र का घमंड चूर किया था और अपनी कनिष्ठा उंगली पर गोवर्धन पर्वत को उठाकर ब्रजवासियों की रक्षा की थी। बता दें कि गोवर्धन पूजा दिवाली के दूसरे दिन मनाया जाता है लेकिन इस बार अमावस्या तिथि दो दिन होने की वजह से गोवर्धन पूजन को लेकर बेहद कन्फ्यूजन की स्थिति बनी हुई है। ऐसे में हम आपको बताने जा रहे है गोवर्धन पूजा का शुभ मुहूर्त और पूजा विधि-
कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि की शुरुआत 13 नवंबर दिन सोमवार से दोपहर 2 बजकर 56 मिनट से हो रही है और तिथि का समापन 14 नवंबर दिन मंगलवार को दोपहर 2 बजकर 36 मिनट पर होगा। ऐसे में उदया तिथि को मानते हुए गोवर्धन पूजन 14 नवंबर यानी आज मनाया जा रहा है।
प्रतिपदा तिथि की शुरुआत- 13 नवंबर, दोपहर 2 बजकर 56 मिनट से
तिथि का समापन – 14 नवंबर, दोपहर 2 बजकर 36 मिनट पर
गोवर्धन पूजा का शुभ मुहूर्त
गोवर्धन पूजन का शुभ मुहूर्त 14 नवंबर दिन मंगलवार को शाम 5 बजकर 25 मिनट से रात 9 बजकर 38 मिनट तक होगा।
गोवर्धन पूजा का भोग
गोवर्धन पूजन के दिन भगवान कृष्ण के लिए 56 भोग बनाए जाते हैं। साथ ही अन्नकूट का भी भोग लगता है और प्रसाद भी वितरण किया जाता है।
गोवर्धन पूजन विधि
गोवर्धन पूजा करने के लिए घर के आंगन में गाय के गोबर से भगवान कृष्ण की प्रतिमा बनाई जाती है। इसके साथ ही गाय, बछड़े व ब्रज आदि की भी प्रतिमा बनाई जाती है। इसके बाद उसको फूलों से सजाया जाता है। फिर शुभ मुहूर्त में गोवर्धन महाराज को रोली, अक्षत, चंदन लगाएं। फिर दूध, पान, खील बताशे, अन्नकूट अर्पित किए जाते हैं और विधि विधान के साथ पूजा अर्चना की जाती है। इसके बाद पूरे परिवार के साथ पानी में दूध मिलाकर गोवर्धन महाराज की परिक्रमा की जाती है और फिर आरती की जाती है। इसके बाद गोवर्धन महाराज के जयाकरे लगाए जाते हैं और घर के बड़ों का आशीर्वाद लिया जाता है।
गोवर्धन महाराज आरती
श्री गोवर्धन महाराज, ओ महाराज, तेरे माथे मुकुट विराज रहेओ।
तोपे पान चढ़े तोपे फूल चढ़े, तोपे चढ़े दूध की धार।
तेरे माथे मुकुट विराज रहेओ।
तेरी सात कोस की परिकम्मा, और चकलेश्वर विश्राम
तेरे माथे मुकुट विराज रहेओ।
तेरे गले में कण्ठा साज रहेओ, ठोड़ी पे हीरा लाल।
तेरे माथे मुकुट विराज रहेओ।
तेरे कानन कुण्डल चमक रहेओ, तेरी झांकी बनी विशाल।
तेरे माथे मुकुट विराज रहेओ।
गिरिराज धरण प्रभु तेरी शरण। करो भक्त का बेड़ा पार
तेरे माथे मुकुट विराज रहेओ।