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गरीबी में जीने को मजबूर है इंदिरा गांधी की बेटी, क्या प्रियंका निभाएंगी दादी का अधूरा वादा?


पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 40 साल पहले कुशीनगर की अनाथ बेटी को गोद लिया था और उसे दिल्ली ले जाने का ऐलान किया था. लेकिन 40 साल बाद भी वह वादा अधूरा है

हाथरस में हुई घटना के बाद कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी और महासचिव प्रियंका गांधी परिवार को न्याय दिलाने से लेकर उनके साथ खड़े होने की बात कर रहे हैं. इतना ही नहीं दोनों ने परिवार से मुलाकात कर यथासंभव आर्थिक मदद भी की. लेकिन एक वादा प्रियंका और राहुल गांधी की दादी पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 40 साल पहले किया था. उन्होंने कुशीनगर की अनाथ बेटी को गोद लिया था और उसे दिल्ली ले जाने का ऐलान किया था. लेकिन 40 साल बाद भी वह वादा अधूरा है और आज वह बेटी गरीबी में जीवन काट रही है. क्या अब प्रियंका दादी की गोद ली हुई बेटी से किया वादा पूरा करेंगी.

बात 1980 की है. जनवरी का महीना था. देवरिया जिले के मौजूदा कप्तानगंज क्षेत्र के नारायणपुरा गांव में कुम्हार जाति की एक बुजुर्ग महिला बसकाली अपने एक पोता जयप्रकाश और एक पोती सोनकलिया के साथ रहती थी. बसकाली के पति, बेटा और बहु की मौत हो चुकी थी. बसकाली किसी तरह गरीबी में अपने पोते पोतियों को पाल रही थी, उस वक्त पोते जयप्रकाश की उम्र 8 साल थी और सोनकलिया 6 साल की थी. बसकाली 11 जनवरी 1980 को अपने गांव से बाहर निकल कर सड़क पार कर रही थी कि एक बस वाले ने उसे रौंद दिया, जिससे उसकी मौत हो गयी. इसके बाद बस चालक मौके से फरार हो गया. अब दोनों बच्चे अनाथ हो गये. उनके सिर से बुजुर्ग दादी का साया भी उठ गया. जिसके बाद गांववालों ने फैसला किया कि बस मालिक से कुछ मुआवजा दिलवाया जाए।

घटना के अगले दिन बस को गांव वालों ने रुकवा लिया और बस ड्राइवर से मालिक को बुलाने को कहा गया. सड़क जामकर गांववालों ने जमकर हंगामा भी किया. 14 जनवरी को बस मालिक गांववालों से न मिलकर थाने चला गया. वहां से पुलिस आयी और करीब 34 गांव वालों को उठा कर लेकर चली गयी. थाने में उनकी जमकर पिटाई हुई. इतने से भी पुलिस का गुस्सा कम नहीं हुआ, रात में कई थानों की फोर्स और पीएसी के जवान गांव में घुस आये और जो मिला उसे जमकर पीटा. गांव के कई लोगों को जेल में बंद कर दिया. पुलिस और पीएसी वालों पर रेप करने का आरोप भी लगा. जिसके बाद पूरा मामला राजनीतिक हो गया.

फिर इसके बाद शुरू हुआ राजनीतिक दलो के नेताओं का नारायणपुर गांव आने का सिलसिला. इसी बीच 14 जनवरी को चौधरी चरण सिंह के इस्तीफे के बाद इंदिरा गांधी फिर से देश की प्रधानमंत्री बन गयी. कांग्रेस को जनता पार्टी से अपनी खोई हुई जमीन वापस पाने का एक अच्छा मुद्दा हाथ लग गया. इंदिरा गांधी की केन्द्र की सरकार ने 17 फरवरी को बाबू बनारसी दास की सरकार को बर्खास्त कर दिया. नरायणपुर गांव में सियासत जोरों पर थी. संजय गांधी इस गांव में तीन बार आये. सभी राजनीतिक दलों के नेताओं ने यहां पर माथा टेका. खुद प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी भी नारायणपुर गांव पहुंची. और यहां पर घंटे भर रहने के बाद दुर्घटना में अनाथ हुए दोनों बच्चों को गोद लेने का ऐलान किया. और कहा कि अब इनके पालन पोषण की जिम्मेदारी मेरी. इन दो बच्चों को दिल्ली ले जाने का ऐलान कर दिया. पर जैसे ही वो गांव से निकलकर दिल्ली पहुंची वहां पर किये अपने वायदे को भूल गयीं.

वो बच्चे किस हालत में रह रहे होंगे. इस तरफ ध्यान ही नहीं दिया. गरीबी में किसी तरह से ये अपने फूफा के घर रहने लगे. जिन बच्चों को इन्दिरा गांधी ने गोद लिया था. वो बच्चे फाकाकसी करने को मजबूर थे. सोनकलिया का कहना है कि उन लोगों को इंदिरा जी भूल गयीं तभी तो बचपन में भीख मांग कर अपना गुजारा किया. दुर्भाग्य यहीं नहीं खत्म हुआ. बचपन में ही सोनकलिया का भाई जयप्रकाश गांव के तालाब में डूबकर मर गया. अब वो अनाथ अकेली ही रह गयी. सोनकलिया आज भी 40 साल बाद गरीबी में जीवन जीने को मजबूर है. एक टूटा सा मकान है जिसमें वो अपने चार बच्चों के साथ रहती है और उसी में अपनी भैंस और बकरी भी बांधती है.

गांववालों का साफ कहना है कि उस समय इंदिरा गांधी ने जो वायदा सोनकलिया के साथ किया और गांववालों के साथ किया था उसे पूरा नहीं किया. गांव के विकास का लालच देकर गांव का नाम संजय नगर कराने वाले कांग्रेसियों ने उस तरफ ध्यान ही नहीं दिया. संजय गांधी तीन बार गांव आये. कांग्रेस के कद्दावर नेता सीपीएन सिंह गांव में ही डेरा डाले हुए थे. जो वरिष्ठ कांग्रेसी नेता आरपीएन सिंह के पिता हैं. इसी कांड में पहली बार आरपीएन सिंह ने गांव में अपना भाषण दिया था. पर न तो गांव का विकास किया न ही पीड़ित परिवार के भरणपोषण की तरफ ध्यान दिया. सिर्फ अपनी सियासत चमकाई. सुनील शास्त्री, मोहनसिंह जैसे तमाम नेता यहां पर उस वक्त ढेरा डाले हुए थे.

नारायणपुर गांव में हिंदू और मुस्लिम की मिक्स आबादी है. दोनों समुदायों के लोग एक दूसरे पर जान छिड़कते हैं. एक दूसरे का दर्द अपना दर्द समझते हैं. तभी तो दो अनाथ बच्चों के लिए सभी सड़क पर आ गये और फिर उनपर सरकार का कहर टूटा. इससे निपटे तो नेताओं के झूठे आश्वासन ने तोड़ने की कोशिश की, पर ये गांव वाले टूटे नहीं. गांव का विकास तो हुआ नहीं. पूर्व पीएम इंदिरा गांधी की मुंहबोली बेटी भी मुफलसी में ही अपना जीवन आज भी काटने को मजबूर है. मजदूरी कर किसी तरह से परिवार का खर्च निकाल रही है.