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साइबर क्राइम के खिलाफ लड़ाई में कामाक्षी ने निभाई अहम भूमिका, एशिया बुक ऑफ रिकॉर्ड में दर्ज हुआ नाम..

उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद की बेटी कामाक्षी शर्मा का नाम साइबर क्राइम रोकने और इसके प्रति लोगों में जागरूकता लाने के लिए एशिया बुक ऑफ रिकॉर्ड में दर्ज किया गया है। उन्होंने पिछले साल साइबर क्राइम की रोकथाम के लिए जम्मू से लेकर कन्या कुमारी तक यात्रा की। 30 से ज्यादा शहरों में घूमकर साइबर क्राइम से बचने के तौर-तरीके बताए। वह 50 हजार पुलिस कर्मियों को भी प्रशिक्षण दे चुकी हैं।

जीटी रोड स्थित पंचवटी कॉलोनी की निवासी कामाक्षी शर्मा ने गाजियाबाद में 12वीं कक्षा तक पढ़ाई की है। उनके पिता रघु शर्मा दिल्ली की एक कंपनी में सुपरवाइजर हैं। कामाक्षी ने गढ़वाल विश्वविद्यालय से 2017 में कम्प्यूटर साइंस से बीटेक किया। वह महज 23 साल की उम्र में साइबर क्राइम की खासी जानकारी रखने की वजह से विशेषज्ञ बन गई हैं। वह साइबर क्राइम पर पिछले कई साल से काम कर रही हैं। उन्हें गृह मंत्रालय से नेशनल पुलिसिंग ग्रुप नाम का एक मिशन मिला। इसके तहत उन्होंने कई राज्यों के आईपीएस अधिकारियों को प्रशिक्षण दिया। इस दौरान पुलिस अधिकारियों को ऑनलाइन ठगी से बचने के लिए किस उपकरण का इस्तेमाल किया जाता है और बदमाशों को कैसे पकड़ें, इसकी जानकारी दी।

पिछले साल एक महीने की यात्रा कर रही पुलिस कर्मियों को साइबर क्राइमसे निपटने की हर बारीकी समझाई। उनका दावा है कि वह देश के 50 हजार पुलिस कर्मियों को प्रशिक्षण दे चुकी हैं। इसके अलावा विभिन्न शहरों में जाकर हजारों छात्रों को निशुल्क प्रशिक्षण दिया। पिछले साल कई जगह कार्यशालाएं की गईं। इन कार्यशालाओं में हजारों युवाओं को प्रशिक्षण दिया गया। उन्होंने बताया कि एशिया बुक ऑफ रिकॉर्ड में नाम दर्ज होने के बाद वह काफी खुश हैं। परिवार में भी खुशी का माहौल है। कामाक्षी एशिया बुक ऑफ रिकॉर्ड में नाम दर्ज कराने वाली सबसे कम उम्र की महिला हैं। कामाक्षी ने बताया कि बीटेक की पढ़ाई के दौरान उनकी दो सहेली साइबर क्राइम की शिकार हो गईं। उन्हें फर्जी प्रोफाइल बनाकर बदनाम किया गया। उसी वक्त उन्होंने साइबर क्राइम के खिलाफ अभियान चलाने की ठानी। उनका कहना है कि पिछल कुछ साल से साइबर क्राइम और ठगी के मामले बढ़ रहे हैं। इसकी मुख्य वजह है कि लोग इसके बारे में जानकारी नहीं रखते हैं।

कामाक्षी एक सामान्य परिवार से ताल्लुक रखती हैं, इसके बावजूद उन्होंने लाखों रुपये की नौकरी के ऑफर ठुकरा दिए। उनके पास एथिकल हैकिंग की मदद मांगने के लिए कई निजी कंपनियों के ऑफर आए थे। एथिकल हैकर का काम कंपनी के कम्प्यूटर सिस्टम की सुरक्षा जांचने का होता है। साथ ही कंपनी के डेटा चोरी होने से बचाने का काम होता है। इसके लिए कंपनी अच्छा खासा पैकेज देने को तैयार थीं, लेकिन उन्होंने साइबर क्राइम के प्रति लोगों को जागरूक करने की ठानी।