कोरोना के इस दौर में चुनाव हो रहे हैं और कई सारी पाबंदियां लगी हैं। हालांकि केस कम होने के साथ छूट भी दी जा रही है। राजनीतिक दल सोशल मीडिया का सहारा ले रहे हैं वहीं वोटर्स भी वोटिंग के बाद उंगली पर लगी स्याही के साथ सेल्फी पोस्ट कर रहे हैं। यूपी में कई चरणों का चुनाव बाकी है और पंजाब में भी कल वोटिंग है इस बीच मतदाता के मन में खासकर पहली बार वोट कर रहे युवा के मन में उत्सुकता रहती है कि क्या इस निशान को मिटाया जा सकता है। कब तक यह निशान रहेगा और कब से ऐसा शुरू है।
चुनावी स्याही का सफर कहां से शुरू हुआ और यह कहां बनती है।चुनावी स्याही के जरिए यह सुनिश्चित किया जाता है कि कोई भी मतदाता इलेक्शन में दो बार वोट न करे और इसलिए धोखाधड़ी और कई बार वोटिंग से से बचने में इस स्याही की महत्वपूर्ण भूमिका है। यह स्याही भारत में सिर्फ एक ही कंपनी की ओर से बनाई जाती है। स्याही सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम मैसूर पेंट्स एंड वार्निश लिमिटेड (MPVL)की ओर से किया जाता है।
साल 1937 में इस कंपनी की स्थापना हुई। मैसूर प्रांत के महाराज न लवाडी कृषणराजा वडयार ने इसकी शुरुआत की। एमवीपीएल तरक्की की राह पर तब आगे बढ़ी जब चुनाव आयोग ने केंद्रीय कानून मंत्रालय, राष्ट्रीय भौतिक प्रयोगशाला और राष्ट्रीय अनुसंधान विकास निगम (एनआरडीसी) के सहयोग से चुनावों के लिए इस स्याही की आपूर्ति के लिए कंपनी के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए।
शुरुआत में केवल संसदीय और विधानसभा चुनावों के लिए स्याही की आपूर्ति की लेकिन बाद के वर्षों में नगर निकायों और सहकारी समितियों को भी चुनावों के लिए स्याही प्रदान करना शुरू कर दिया।
एमपीवीएल के अनुसार उच्च गुणवत्ता वाली यह स्याही 40 सेकंड से भी कम समय में पूरी तरह से सूख जाती है।हालांकि, अगर स्याही एक सेकंड के लिए भी त्वचा पर रही है, तो यह अपना प्रभाव छोड़ देगी।एक बूंद की कीमत कितनी, इसे लाने का श्रेय किसको
इस स्याही का प्रयोग 1962 के चुनाव के साथ ही किया जा रहा है। इस स्याही को भारतीय चुनाव में शामिल कराने का श्रेय देश के पहले मुख्य चुनाव आयुक्त सुकुमार सेन को जाता है। अभी तक चुनाव आयोग इसके दूसरे विकल्प को नहीं तलाश पाया है।
60 साल से अधिक समय से चुनावों में इस स्याही का बखूबी इस्तेमाल हो रहा है। रही बात इस पर आने वाले खर्च की तो हर एक बोतल में 10 एमएल स्याही होती है और हर एक बोतल की कीमत 127 रुपये के करीब है। एक लीटर की कीमत 12 हजार 700 रुपये के करीब, वहीं एक बूंद के हिसाब से देखा जाए तो इस पर करीब 12 रुपये 70 पैसे खर्च होते हैं।