रोते, गाते, बैठकर , लेटकर किसी तरह से खुद बचाने का असफल प्रयास करने वाले जनाब लेखपाल साहब है। लेखपाल साहब को अपनी लेखपाली पर नाज था। लेखपाल साहब का रिकार्ड था वह अपनी कलम तब तक नहीं चलाते थे। जब तक उन्हें गांधी छाप नोटों वाला प्रसाद ना चढ़ाया जाए। गांधी छाप नोटों से आशिकी लेखपाल साहब को उस वक्त भारी पड़ती नजर आई। जब वह एंटी करप्शन के चक्रव्यूह में फंस गए।
लेखपाल का नाम है अविनाश ओझा है, ओझा जी राजधानी लखनऊ की सदर तहसील में तैनात हैं और सीएम योगी के कार्यालय से चंद किलोमीटर दूर ही रिश्वत का खेला करते थे। लेकिन एक पीड़ित से 10 हजार की रिश्वत मांगनी लेखपाल साहब को महंगी पड़ गई और सोमवार को लेखपाल साहब को रंगे हाथ एंटी करप्शन ब्यूरो ने गिरफ्तार कर लिया।
दरअसल अविनाश ओझा ने रायबरेली जनपद में तैनात थे। लेकिन राजधानी लखनऊ में रियल स्टेट के अरबों के कारोबार को देख उनसे रहा नहीं गया औऱ उन्होंने अपना ट्रांसफर लखनऊ करा लिया। खासकर उस तहसील में जिसके इलाके में जमीनों का कोरबार सबसे तेज है। ऐसे में लेखपाल साहब ने भी अपना सिस्टम सेट कर लिया। लेकिन सोमवार को उनका सिस्टम ही उनका दुश्मन बन गया और फिर क्या हुआ सबने देखा।
ब्यूरो रिपोर्ट nttv bharat