लोकसभा चुनाव से पहले समाजवादी पार्टी के सामने बड़ी चुनौती आ गई है. पुराने साथी साइकिल का साथ छोड़ कमल का सहारा ले रहे हैं. विधानसभा चुनाव में गठबंधन के साथी रहे अब बीजेपी को ताकत देने में जुटे हैं. ऐसे में सपा के सामने गठबंधन सहयोगियों को सहेजने की चुनौती है. समाजवादी पार्टी के विधायक दारा सिंह ने भी बीजेपी का दामन थाम लिया. जानकार बताते हैं कि विधानसभा चुनाव से पहले पिछड़ा, दलित और मुस्लिम का गठजोड़ बनाने के लिए सपा मुखिया ने हर कोशिश की. महान दल, सुभासपा और रालोद समेत बीजेपी सरकार के तीन मंत्री दारा सिंह चौहान, स्वामी प्रसाद मौर्य और धर्म सिंह सैनी सपा में आ गए थे.
लोकसभा चुनाव से पहले अखिलेश यादव के सामने चुनौती
सुभासपा के सिंबल से छह और रालोद के सिंबल से आठ सीटों पर सफलता भी मिली थी. गठबंधन के तहत दोनों पार्टियों को 18 और 33 सीटों पर चुनाव लड़ने का मौका मिला था. विधानसभा चुनाव के तत्काल बाद मई में राज्यसभा चुनाव हुए. राज्यसभा चुनाव में सहयोगी राजभर ने एक सीट मांगी थी. सपा ने सीट नहीं देने के लिए बात तक करना जरूरी नहीं समझा. मामला खराब होने के बाद ओपी राजभर छिटक कर चले गए. विधान परिषद में हालात और खराब हो गए.
ऐसे ही केशव देव मौर्य और अब दारा सिंह साथ छोड़कर चले गए हैं. सूत्र बताते हैं कि सपा के कुछ और लोग भी पाला बदलने की तैयारी में हैं. सपा के गठबंधन में अभी फिलहाल रालोद और अपना दल कमेरावादी ही बचे हुए हैं. दोनों पार्टियों के प्रमुख बेंगलूर की बैठक में भी गए हैं. बैठक में बसपा से आए राम अचल राजभर और लाल जी वर्मा भी गए हैं. बताया जा रहा है कि अखिलेश एक संदेश देना चाहते हैं. अभी भी उनकी पार्टी में पिछड़े को उतनी ही तवज्जो है.
गठबंधन के साथियों को सहेजने में क्या मिलेगी सफलता?
जानकार प्रसून पांडेय कहते हैं कि 2022 के विधानसभा चुनाव में सपा को भले जीत ना मिली हो लेकिन उसकी सीटे बढ़ी हैं. गैर यादव बिरदारी को भी जोड़ने में सफलता मिली. लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले सपा साथियों को सहेज नहीं पा रही है. गठबंधन की गांठ ढीली पड़ने लगी है. ओपी राजभर के बाद रालोद पर भी संशय है. वरिष्ठ विश्लेषक वीरेंद्र सिंह रावत कहते हैं कि लोकसभा चुनाव से पहले बहुत बड़ी चुनौती है.
गैर यादव बिरादरी जोड़ने के अभियान में दारा सिंह और ओपी राजभर ने ब्रेक लगा दिया है. जयंत चौधरी भले ही बेंगलूर बैठक में चले गए हों लेकिन अभी भी मोलभाव करेंगे. इसी कारण अखिलेश अपने पुराने फॉर्मूले यादव और मुस्लिम की ओर बढ़ रहे हैं. इसकी बानगी आम दावत में दिख चुकी है. कांग्रेस भी राष्ट्रीय चुनाव में अपने को मजबूत दिखाने का प्रयास करेगी. लोकसभा चुनाव अखिलेश मुलायम के बगैर लड़ रहे हैं. उनके सामने गठबंधन के साथियों संग समीकरण ठीक करने की चुनौती है.