गोरखपुर. के जेल बाईपास रोड की स्निग्धा चटर्जी ऐसी बीमारी से जूझ रही है, जिसमें हर पल जान का खतरा है लेकिन पल-पल मौत से लड़कर स्निग्धा तरक्की की राह बना रही हैं। ढाई माह की उम्र से मेजर थैलेसीमिया से पीड़ित स्निग्धा पूरे प्रदेश में एकमात्र ऐसी थैलेसीमिया मरीज हैं, जिन्होंने सहायक प्रोफेसर बनने की पात्रता हासिल कर ली है। नेट क्वालीफाई करने के बाद अब वह जेआरएफ के लिए प्रयासरत हैं।

एलआईसी में अभिकर्ता सनत चटर्जी की 23 वर्षीय पुत्री स्निग्धा को हर 15 दिन पर दो यूनिट ब्लड की जरूरत होती है। ब्लड ट्रांसफ्यूजन के लिए महीने में दो बार लखनऊ जाना पड़ता है। इसमें दो दिन की भी देरी हो जाए तो उसकी सांसें उखड़ने लगती हैं। इसके बावजूद स्निग्धा ने बीमारी को कभी हावी नहीं होने दिया और लगातार चुनौतियों का सामना करते आगे बढ़ती गईं। जहां एमकॉम अध्ययन के दौरान ही नेट क्वालीफाई कर लिया, वहीं अंतिम सेमेस्टर 75 फीसदी अंकों के साथ पास किया है।
स्निग्धा के पिता सनत चटर्जी बताते हैं कि उनकी बेटी जब ढाई महीने की हुई, तब जांच के दौरान पता चला कि वह थैलेसीमिया मेजर से ग्रसित है। उन्होंने उसका इलाज कराने की पूरी कोशिश की लेकिन पता चला कि यह बीमारी लाइलाज है और महीने में दो से तीन बार ब्लड ट्रांसफ्यूज कराना ही पड़ेगा। अगर ऐसा नहीं हुआ तो वह बच नहीं पाएगी।
नसें सूखने लगीं पर हार नहीं मानी
साल में 25 से 26 बार ट्रांसफ्यूजन से बेटी के हाथों की नसें सूखने लगीं लेकिन स्निग्धा ने हार नहीं मानी। दर्द से कराहने के बावजूद उसने कुछ बनने की ठानी। सांस फूलने के बाद भी वह रोज स्कूल जाती थी और अधिक से अधिक समय पढ़ाई पर ही देती थी। हाईस्कूल और इंटरमीडिएट की परीक्षा 80 फीसदी से अधिक अंकों के साथ पास की। बीकॉम प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण किया। स्निग्धा बताती हैं कि उनका प्रोफेसर बनने का सपना था और वह अब जेआरएफ के लिए ट्राई कर रही हैं।
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पीजीआई जाना मजबूरी
सनत चटर्जी का कहना है कि ब्लड चढ़ाते समय अक्सर स्निग्धा के शरीर में आयरन की अधिकता हो जाती है। ऐसे में एकमात्र पीजीआई ही है, जहां ब्लड से आयरन की मात्रा को कम किया जा सकता है। ऐसे में वहीं जाकर ब्लड चढ़वाना मजबूरी है।