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यूपी में फिल्म सिटी को लेकर एक्टिव हुए अधिकारी

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में नई फिल्म सिटी बनाने के एलान से उत्तर भारत के उन तमाम कलाकारों और तकनीशियनों के चेहरे पर मुस्कान ला दी है जो विषम परिस्थितियों का सामना करते हुए भी दशकों से फिल्म जगत को अपनी सेवाएं यहां दे रहे हैं।

मुंबई मुख्य रूप से हिंदी, भोजपुरी और मराठी सिनेमा का केंद्र रहा है। शहर को राजस्व का एक बड़ा हिस्सा फिल्मउद्योग से आता है लेकिन सबसे खराब परिस्थितियां इस शहर में इसी उद्योग के लिए हैं। हां, लोग ये जरूर कहते हैं कि उत्तर प्रदेश सरकार को उन लोगों से दूर रहना होगा जो पिछली कई सरकारों में हिंदी फिल्म उद्योग की नुमाइंदगी के तौर पर मलाई खाते रहे हैं। उत्तर प्रदेश में नई फिल्म सिटी की सफलता कैसे कदम चूम सकती है, उसे समझने के लिए हमने मुंबई में रविवार के दिन चहलकदमी की।


हिंदी फिल्म उद्योग के नाम पर दुनिया भर में मशहूर शहर मुंबई में मौजूद संजय गांधी नेशनल पार्क के एक हिस्से में यहां की फिल्म सिटी स्थित है। इसका संचालन महाराष्ट्र सरकार का संस्कृति विभाग करता है और इसके लिए यहां सरकार ने बाकायदा एक निगम की भी स्थापना कर रखी है। यहां काम करने की विशेषताओं में यहां जंगलों के बीच बनी खाली सड़कें, आसपास फैली हरियाली, छोटे छोटे पहाड़ और नदियां हैं। अमूमन इसका खाली इलाका बड़ी फिल्मों या धारावाहिकों के सेट लगाने में काम आता है। इनडोर शूटिंग करने के फ्लोर भी यहां मौजूद हैं। मुंबई फिल्म सिटी परिसर के पास में ही सुभाष घई का फिल्म व टीवी ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट भी है।

रामोजी फिल्म सिटी 1996 में हैदराबाद में अस्तित्व में आई। दुनिया का ये सबसे बड़ा मनोरंजन कॉम्प्लेक्स माना जाता है। आधा दर्जन के करीब होटल और दूसरी तरह की निवास की इसके भीतर ही सुविधाएं इसे मुंबई फिल्म सिटी से बेहतर बनाती हैं। इसका क्षेत्रफल करीब पौने दो हजार एकड़ है और यहां फिल्म निर्माण से जुड़ी हर सुविधा मौजूद है। मनोरंजन के भी तमाम साधन इसमें बनाए गए हैं। हैदराबाद में निजी क्षेत्र का देश का सबसे उन्नत फिल्म इंस्टीट्यूट अन्नपूर्णा इंटरनेशनल स्कूल ऑफ फिल्म एंड मीडिया है, जिसे नागार्जुन का परिवार चलाता है।

उत्तर प्रदेश की नई फिल्म सिटी
इन दोनों फिल्म सिटी की तुलना में उत्तर प्रदेश में फिल्म सिटी की कामयाबी इस बात पर निर्भर करती है कि इसे संचालित कौन करेगा? और, यहां सुविधाएं क्या क्या होंगी? नोएडा में एक फिल्म सिटी बनाने का ख्वाब पहले भी देखा जा चुका है लेकिन अब वह न्यूज चैनल सिटी बन चुका है। देश दुनिया से पढ़कर मुंबई फिल्म इंडस्ट्री में काम करने पहुंच रही युवा पीढ़ी को ये शहर पसंद नहीं आता। अंधेरी पश्चिम का, जहां अधिकतर फिल्म प्रोडक्शन कंपनियां स्थित हैं, आधारभूत ढांचा हिला हुआ है। नालों, झोपड़पट्टियों की गंदगी, सड़कों पर मौजूद जानलेवा गड्ढे और बारिश में होने वाला जलभराव मुंबई शहर के सारे आकर्षण छीन चुका है।


उत्तर प्रदेश सरकार की नई पहल के सिलसिले में मुंबई शहर के फिल्म निर्माताओं और कार्यकारी निर्माताओं से बात की तो अधिकतर ने इस एलान को बहुत ही सामयिक और साहसी कदम बताया। सूबे की शिवसेना-कांग्रेस-एनसीपी सरकार का हवाला देते हुए ये लोग खुलकर तो कुछ नहीं कहना चाहते हैं लेकिन ये मानते हैं कि मुंबई शहर का आधारभूत ढांचा इस शहर की जरूरतों का दबाव झेल पाने में विफल हो चुका है। सब शहर से बाहर जाना चाहते हैं, लेकिन सिनेमा जब तक नहीं जाएगा, लोग बाहर नहीं निकलेंगे। कभी मुख्य शहर से संचालित होने वाला सिनेमा पिछले दो दशक में टीवी के बढ़ते दबाव के चलते दादर से अंधेरी और अंधेरी से मीरा रोड पहुंच ही चुका है। अब बस इसे किसी कायदे की सुसंगठित और सुसज्जित जगह की तलाश है।


इंडियन फिल्म एंड टीवी प्रोड्यूसर्स काउंसिल के एक पदाधिकारी कहते हैं कि उत्तर प्रदेश में सरकारें बदलती रहती हैं लेकिन वहां सिनेमा के नाम पर मलाई खाने वालों के चेहरे नहीं बदलते। सरकार को पहले अपनी प्रशासनिक मशीनरी दुरुस्त करनी होगी और इसके लिए वहां के प्रशासन को एक दूरगामी योजना बनाकर सिनेमा के लिए समर्पित लोगों की टीम बनानी होगी। अभी फिल्म निर्माता पैसे लेने के लिए लखनऊ भागते हैं, उत्तर प्रदेश सरकार को ऐसे निर्माताओं के साथ संवाद बढ़ाना चाहिए जो साल में कम से कम चार-पांच फिल्में बनाते हैं और गोवा, हैदराबाद, कोलकाता, राजस्थान जैसी देसी जगहों पर ही अपनी फिल्में शूट करते हैं। असली रोजगार इन्हीं निर्माताओं के पास से आएगा। इसके अलावा देसी-विदेशी फिल्म कंपनियों को अपने कॉरपोरेट दफ्तर मुंबई से दिल्ली स्थानांतरित करने के लिए भी लुभावनी योजनाएं सरकार को बनानी चाहिए।