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PM मोदी का संबोधन, किसानों के लिए बनेगा नया कृषि कानून, जानें 10 बड़ी बातें…

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कृषि सुधार कानूनों को लेकर देश में जगह-जगह किसानों के आंदोलन के देखते हुए सोमवार को कहा कि, पिछले कुछ समय से एक अलग ही ‘ट्रेंड’ देखने को मिल रहा है जिसके तहत सरकार के फैसले पर भ्रम फैल रहा है. प्रधानमंत्री ने अपने संसदीय निर्वाचन क्षेत्र के खजूरी गांव में छह लेन मार्ग चौड़ीकरण के लोकार्पण अवसर पर अपने सम्बोधन में कहा, ‘‘सरकारें जब नीतियां बनाती हैं, तो उन्हें समर्थन भी मिलता है, तो कुछ सवाल भी स्वाभाविक है. यह लोकतंत्र का हिस्सा है और भारत में यह जीवन परंपरा रही है, लेकिन पिछले कुछ समय से एक अलग ही ट्रेंड देश में देखने को मिल रहा है. पहले सरकार का कोई फैसला अगर किसी को पसंद नहीं आता था तो उसका विरोध होता था लेकिन बीते कुछ समय से हमें नया ट्रेंड देखने को मिल रहा है अब विरोध का आधार फैसला नहीं बल्कि भ्रम फैलाकर आशंकाएं फैलाकर उस को आधार बनाया जा रहा है.’

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मोदी ने पिछली सरकारों पर प्रहार करते हुए कहा, ‘एमएसपी तो घोषित होता था लेकिन एमएसपी पर खरीद बहुत कम की जाती थी, घोषणाएं होती थी, खरीद नहीं होती थी. सालों तक एमएसपी को लेकर छल किया गया है. किसानों के नाम पर बड़े-बड़े कर्ज माफी के पैकेज घोषित किए जाते थे, लेकिन छोटे और सीमांत किसानों तक यह पहुंचते ही नहीं थे यानी कर्ज माफी को लेकर भी छल किया गया किसानों के नाम पर बड़ी-बड़ी योजनाएं घोषित होती थी लेकिन वह खुद मानते थे कि एक रुपए में से सिर्फ 15 पैसे ही किसान तक पहुंचते हैं.’ पढ़ें प्रधानमंत्री मोदी के संबोधन की 10 बड़ी बातें-

1- भारत के कृषि उत्पाद पूरी दुनिया में मशहूर हैं. क्या किसान की इस बड़े मार्केट और ज्यादा दाम तक पहुंच नहीं होनी चाहिए? अगर कोई पुराने सिस्टम से ही लेनदेन ही ठीक समझता है तो, उस पर भी कहां रोक लगाई गई है?
2-नए कृषि सुधारों से किसानों को नए विकल्प और नए कानूनी संरक्षण दिए गए हैं. पहले मंडी के बाहर हुए लेनदेन ही गैरकानूनी थे. अब छोटा किसान भी, मंडी से बाहर हुए हर सौदे को लेकर कानूनी कार्यवाही कर सकता है. किसान को अब नए विकल्प भी मिले हैं और धोखे से कानूनी संरक्षण भी मिला है.
3-सरकारें नीतियां बनाती हैं, कानून-कायदे बनाती हैं. नीतियों और कानूनों को समर्थन भी मिलता है तो कुछ सवाल भी स्वभाविक ही है. ये लोकतंत्र का हिस्सा है और भारत में ये जीवंत परंपरा रही है. लेकिन पिछले कुछ समय से एक अलग ही ट्रेंड देश में देखने को मिल रहा है. उन्होंने कहा कि पहले होता ये था कि सरकार का कोई फैसला अगर किसी को पसंद नहीं आता था तो उसका विरोध होता था. लेकिन बीते कुछ समय से हम देख रहे हैं कि अब विरोध का आधार फैसला नहीं बल्कि आशंकाओं को बनाया जा रहा है.

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4-अपप्रचार किया जाता है कि फैसला तो ठीक है लेकिन इससे आगे चलकर ऐसा हो सकता है. जो अभी हुआ ही नहीं, जो कभी होगा ही नहीं, उसको लेकर समाज में भ्रम फैलाया जाता है. कृषि सुधारों के मामले में भी यही हो रहा है. ये वही लोग हैं जिन्होंने दशकों तक किसानों के साथ लगातार छल किया है.
5-MSP तो घोषित होता था लेकिन MSP पर खरीद बहुत कम की जाती थी. सालों तक MSP को लेकर छल किया गया. किसानों के नाम पर बड़े-बड़े कर्जमाफी के पैकेज घोषित किए जाते थे. लेकिन छोटे और सीमांत किसानों तक ये पहुंचते ही नहीं थे. यानि कर्ज़माफी को लेकर भी छल किया गया.
6-जब इतिहास छल का रहा हो, तब 2 बातें स्वभाविक हैं. पहली ये कि किसान अगर सरकारों की बातों से कई बार आशंकित रहता है तो उसके पीछे दशकों का इतिहास है. दूसरी ये कि जिन्होंने वादे तोड़े, छल किया, उनके लिए ये झूठ फैलाना मजबूरी बन चुका है कि जो पहले होता था, वही अब भी होने वाला है.
7-जब इस सरकार का ट्रैक रिकॉर्ड देखेंगे तो सच अपने आप सामने आ जाएगा. हमने कहा था कि हम यूरिया की कालाबाज़ारी रोकेंगे और किसान को पर्याप्त यूरिया देंगे. बीते 6 साल में यूरिया की कमी नहीं होने दी. यहां तक कि लॉकडाउन तक में जब हर गतिविधि बंद थी, तब भी दिक्कत नहीं आने दी गई.
8-अगर मंडियों और MSP को ही हटाना था, तो इनको ताकत देने, इन पर इतना निवेश ही क्यों करते? हमारी सरकार तो मंडियों को आधुनिक बनाने के लिए करोड़ों रुपए खर्च कर रही है.
9-यही लोग हैं जो पीएम किसान सम्मान निधि को लेकर ये लोग सवाल उठाते थे. ये लोग अफवाह फैलाते थे कि चुनाव को देखते हुए ये पैसा दिया जा रहा है और चुनाव के बाद यही पैसा ब्याज सहित वापस देना पड़ेगा. एक राज्य में तो वहां की सरकार, अपने राजनीतिक स्वार्थ के चलते आज भी किसानों को इस योजना का लाभ नहीं लेने दे रही है.
10-दशकों का छलावा किसानों को आशंकित करता है. लेकिन अब छल से नहीं गंगाजल जैसी पवित्र नीयत के साथ काम किया जा रहा है. आशंकाओं के आधार पर भ्रम फैलाने वालों की सच्चाई लगातार देश के सामने आ रही है. जब एक विषय पर इनका झूठ किसान समझ जाते हैं, तो ये दूसरे विषय पर झूठ फैलाने लगते हैं. जिन किसान परिवारों की अभी भी कुछ चिंताएं हैं, कुछ सवाल हैं, तो उनका जवाब भी सरकार निरंतर दे रही है.