अकेले में अश्लील कंटेंट को देखना गैर-कानूनी है, अधिकार है या इसके लिए सजा होनी चाहिए, इसको लेकर पहले भी बहस होती रही है, लेकिन केरल हाईकोर्ट का नया फैसला चर्चा में है. कुछ समय पहले पुलिस ने एक शख्स को सड़क किनारे पॉर्न मूवी देखते हुए पकड़ा और IPC के सेक्शन 292 के तहत मामला दर्ज किया. यह मामला कोर्ट तक पहुंचा और सुनवाई शुरू हुई.
केरल हाईकोर्ट के जस्टिस पीवी कुन्हीकृष्णन ने उस परे लगे सभी चार्जेस खारिज कर दिए. ऐसे में सवाल उठा कि तब देश में अश्लील कंटेंट देखने पर सजा का प्रावधान है तो ऐसा क्यों किया गया? सोशल मीडिया पर इस पर बहस शुरू हुई. जानिए कब-कौनसा अश्लील कंटेंट देखने पर है सजा का प्रावधान.
अश्लील कंटेंट देखना, कितना गैर-कानूनी काम?
सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट अशीष पांडे कहते हैं, अकेले में अश्लील कंटेंट देखने को लेकर कई कानून हैं. सबसे जरूरी बात है कि आरोपी किस तरह का कंटेंट देख रहा है. अगर कोई वयस्क आरोपी अकेले में सामान्य पॉर्न कंटेंट देख रहा है, जिसे खासतौर पर उस टार्गेट वर्ग के लिए बनाया गया है तो इसमें किसी तरह की सजा का कोई प्रावधान नहीं है और न ही यह प्रतिबंधित है. भारतीय संविधान में प्राइवेसी से कुछ अधिकार दिए गए हैं जिस पर रोक नहीं लगाई जा सकती, जब तक ये गैर-कानूनी न हो.
इसी मामले पर जस्टिस पीवी कुन्हीकृष्णन ने भी टिप्पणी करते हुए कहा है कि ऐसे मामले को अपराध की श्रेणी में नहीं लाया जा सकता. यह नागरिक की निजी पसंद का मामला है. इसमें हस्तक्षेप करना उसकी प्राइवेसी के अधिकार में हस्तक्षेप करने जैसा है. कोर्ट ने कहा, सदियों से ऐसी चीजों को देखने की परंपरा रही है. डिजिटल युग में इन चीजों तक इंसानों की पहुंच और आसान हुई है.
तो फिर किस अश्लील कंटेंट पर मिलेगी सजा?
एडवोकेट अशीष पांडे इसी से जुड़ी दूसरी स्थिति को समझाते हैं. वह कहते हैं, कुछ खास तरह का अश्लील कंटेंट होता है जिसे आप अकेले में भी नहीं देख सकते. जैसे- अगर कोई इंसान अकेले में चाइल्ड पाॅर्नोग्राफी देख रहा है कि तो इसे क्राइम माना जाता है और आरोपी पर पॉक्सो एक्ट के तहत सजा होगी. वहीं, अगर किसी महिला के साथ कुछ गलत हुआ या रेप हुआ है और उसे अकेले में भी देखते हैं तो यह अपराध की श्रेणी में आता है.
क्या है कहता है IPC सेक्शन 292?
यह सेक्शन कहता है, अगर पॉर्नोग्राफी कंटेंट उसे बेचते हैं या उसे डिस्ट्रीब्यूट करते हैं तो यह अपराध की श्रेणी में आता है. जैसे- इसे सीडी के रूप में बेचते हैं या किसी को वॉट्सऐप पर शेयर करते हैं तो यह अपराध है. या इसे किसी को दिखाते हैं तो इसमें सजा हो सकती है.
IT एक्ट का सेक्शन 67 कहता है, इंटरनेट पर इसे तैयार करना या शेयर करना प्रतिबंधित है. नियम का उल्लंघन करने पर 3 साल की सजा हो सकती है. सेक्शन 67A और 67B चाइल्ड पॉर्नोग्राफी से जुड़ा है. जो बताता है कि अकेले में ऐसा कंटेंट देखना गैर-कानूनी है. इसके अलावा अगर आपके फोन से ऐसी तस्वीरें भी मिलती हैं तो यह अपराध की श्रेणी में आता है. ऐसे में यह तर्क नहीं दिया जा सकता है कि मैं उसे अकेले में देखता हूं या नहीं.
एडवोकेट आशीष पांडे कहते हैं, किसी भी तरह के अश्लील कंटेंट को तैयार करना प्रतिबंधित है. फिर चाहें वो चाइल्ड पॉर्नोग्राफी से जुड़ा हो या महिला के साथ हुई घटना को लेकर बनाया गया हो. किसी भी महिला पर अश्लील कंटेंट देखने के लिए दबाव डालना भी एक अपराध है. इसे पब्लिक लोकेशन पर ग्रुप के साथ देखना और सोशल मीडिया पर शेयर करना भी अपराध के दायरे में आता है.
जस्टिस ने दी पेरेंट्स को सलाह
कार्यवाही के दौरान जस्टिस पीवी कुन्हीकृष्णन ने पेरेंट्स को नसीहत भी दी. उन्होंने कहा, पेरेंट्स बच्चों को मोबाइल फोंस देकर खुश कर देते हैं. लेकिन उन्हें इस बात को लेकर जागरुक होने की जरूरत है कि इसके पीछे कितना खतरा है. बच्चों को अपनी उपस्थिति में ऐसी खबरें और वीडियो देखने दें जो उनके जरूरी हैं. जो जानकारी दे रहे हैं. 18 साल से कम के बच्चों के मामले में पेरेंट्स को अलर्ट रहने की जरूरत है. बच्चों को खुश करने के लिए पेरेंट्स को फोन नहीं देना चाहिए.
उन्होंने कहा, अगर बच्चे अश्लील कंटेंट को देखते हुए बड़े होंगे जो मोबाइल के जरिए उन तक आसानी से पहुंच रहा है तो इसके परिणाम दूरगामी होंगे. मैं यह बच्चों के माता-पिता की सूझबूझ पर छोड़ता हूं.