उत्तर प्रदेश में नवंबर के शुरुआती दिनों में होने वाले राज्यसभा चुनाव से पहले बहुजन समाज पार्टी को बड़ा झटका लगा है. बुधवार को बसपा की ओर से प्रत्याशी रामजी गौतम के दस प्रस्तावकों में से 5 ने अपना प्रस्ताव वापस ले लिया है. ऐसे में अब रामजी गौतम की उम्मीदवारी पर संकट खड़ा हो गया है.
इन पांच प्रस्तावकों ने पहले भी समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव से मुलाकात की थी, जिसके बाद अब बसपा में बगावत के सुर दिखाई देने लगे हैं. बीएसपी के पांच विधायक बुधवार सुबह अचानक विधानसभा में अपना प्रस्ताव वापस लेने पहुंचे, जिससे यूपी की राजनीति में सरगर्मी बढ़ गई.
बुधवार को अपना प्रस्ताव वापस लेने के बाद पांचों विधायक विधानसभा से सीधे अखिलेश यादव से मुलाकात करने पहुंचे. इन्हीं में से एक विधायक असलम ने कहा कि हमें नामांकन पर साइन की जानकारी नहीं है, हमें बिना बताए साइन कराए गए. हम उस उम्मीदवार का समर्थन नहीं करेंगे जो बीजेपी के समर्थन से बना हो.किन विधायकों ने की बगावत, क्या बोली पार्टी?
बहुजन समाज पार्टी के असलम चौधरी, असलम राईनी, मुज्तबा सिद्दिकी, हाकम लाल बिंद, गोविंद जाटव ने अपना प्रस्ताव वापस लिया. बता दें कि कल ही असलम चौधरी की पत्नी ने समाजवादी पार्टी की सदस्यता ली थी.
विधायकों की बगावत पर बसपा नेता उमा शंकर सिंह ने कहा कि नामांकन के वक्त इन सभी पांच विधायकों की सहमति थी और वहां पर मौजूद रहे थे. अब इन्होंने जो किया है वो गलत है, इसे स्वीकार नहीं किया जाना चाहिए. ये साजिश है ताकि एक दलित राज्यसभा ना पहुंचे. यूपी में दस राज्यसभा सीटों पर चुनाव होना है, जिसके लिए कुल 10 प्रत्याशी मैदान में हैं. भाजपा की ओर से आठ, समाजवादी पार्टी के एक, बहुजन समाज पार्टी के एक और एक निर्दलीय उम्मीदवार चुनावी मैदान में हैं. यूपी में नौ नवंबर को राज्यसभा चुनाव के लिए मतदान होगा, 11 नवंबर तक नतीजे आ सकते हैं. जबकि ये सीटें 25 नवंबर तक खाली होनी हैं.
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क्या है राज्यसभा चुनाव का गणित?
गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश विधानसभा में अभी 395 (कुल सदस्य संख्या-403) MLA हैं जबकि 8 सीटें खाली हैं. बीजेपी के पास फिलहाल 306 विधायक हैं. वहीं, सपा के पास 48, बसपा के पास 18, कांग्रेस के 7, अपना दल के पास 9 और ओम प्रकाश राजभर की पार्टी के चार विधायक हैं. जबकि 4 निर्दलीय और एक निषाद पार्टी से विधायक हैं.
मौजूदा गणित के अनुसार, बीजेपी अपनी आठ सीटों पर आसानी से जीत दर्ज कर सकती है जबकि समाजवादी पार्टी के पास भी जीतने का मौका है. लेकिन बसपा के प्रत्याशी और निर्दलीय उम्मीदवार के बीच मुकाबला हो सकता है और अब बसपा प्रत्याशी के प्रस्तावकों ने जो झटका दिया है, उससे मुश्किल अधिक बढ़ गई है.