जितना भी वक्त मिला फालतू बातों में लगा दिया..
अब हर वक्त जीने की कोशिश कर रहा हर मनुष्य…
जितना भी प्रेम मिला परिवार से उसे निभाया नहीं…
अब हर वक्त परिवार का साथ ढूंढ रहा हर मनुष्य…
हर वक्त खुद को दिखावे की जिंदगी में लगा दिया…
अब हर वक्त असलियत को खोजने में लगा रहा हर मनुष्य..
हर वक्त छोड़कर रिश्तो की डोर चले जिंदगी जीने आसमां पे…
लेकिन अब हर रिश्ते की डोर ढूंढ रहा ज़मीन पर हर मनुष्य…
चलते वक्त के साथ छोड़कर अहम रिश्तों का साथ…
अब एहसास कर रहा है अहमियत हर रिश्तो की हर मनुष्य…
इसलिए खामा खा खुद से अंदर ही अंदर तू युद्ध ना कर…
कुछ करना ही है तो चल दो चार कदम आगे और करता रहे तू अपने कर्म…
और जो सुकून छीन ले जिंदगी जीने का…
उसे तू पाने की कोशिश ना कर…
इसीलिए रास्ते की सुंदरता का लुफ्त उठा…
मंजिल पर जल्द पहुंचने की कोशिश ना कर…
आराम से दो वक्त निकाल जिंदगी जीने के लिए…
यूं बेवजह भागदौड़ मैं अपनी जिंदगी तू खत्म मत कर..
किरन मौर्या, नोएडा