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बसपा के दांव से भाजपा बेचैन, सपा-कांग्रेस के सामने दुविधा..

उत्तर प्रदेश में राज्यसभा की दस सीटों के होने वाले चुनाव में बहुजन समाज पार्टी ने भी अपना प्रत्याशी उतारने का फैसला कर लिया है। पार्टी के नेशनल को आर्डिनेटर रामजी गौतम को मैदान में उतारा जा रहा है। रामजी गौतम 26 को नामांकन करेंगे। इससे निर्विरोध निर्वाचन की संभावना खत्म होती दिख रही है। बसपा अध्यक्ष मायावती के इस दांव से एक तरफ भाजपा के नौ सदस्यों के जीतने की राह कठिन हो जाएगी। दूसरी तरफ समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के सामने दुविधा की स्थिति खड़ी हो सकती है।

विधायकों की संख्या के आधार पर होने वाले इस चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के आठ व समाजवादी पार्टी के एक सदस्य की जीत तय है। भारतीय जनता पार्टी का एक और सदस्य तब ही जीत सकता है जब विपक्ष साझा प्रत्याशी न खड़ा करे। न बहुजन समाज पार्टी और न ही कांग्रेस खुद के दम पर अपना प्रत्याशी जिता सकती है। विधानसभा में मौजूदा सदस्य संख्या के आधार पर जीत के लिए किसी भी प्रत्याशी को 36 वोटों की आवश्यकता होगी। भारतीय जनता पार्टी ने अभी अपने पत्ते नहीं खोले हैं, लेकिन उसके आठ उम्मीदवारों की जीत सुनिश्चित है।

समाजवादी पार्टी ने अपना एक उम्मीदवार प्रो. रामगोपाल यादव का नामांकन कराकर स्पष्ट कर दिया कि उसके पास दस वोट अतिरिक्त होने के बावजूद वह किसी और को खड़ाकर वोटों की जोर आजमाईश में उतरना नहीं चाहती है। ऐसी स्थिति में बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख मायावती पार्टी के नेशनल कोआर्डिनेटर रामजी गौतम को चुनाव लड़ाकर एक तीर से कई निशाना साधना चाह रही हैं। गुरुवार को पार्टी विधायकों की बैठक में नामांकन पत्र पर प्रस्तावकों के हस्ताक्षर भी करा लिए गए। बहुजन समाज पार्टी के विधायकों की संख्या वैसे तो 18 ही हैं, लेकिन इनमें भी मुख्तार अंसारी, अनिल सिंह सहित दो-तीन और विधायकों के वोट उसे मिलने की उम्मीद नहीं है। फिर भी मायावती प्रत्याशी उतारकर भाजपा के लिए सिरदर्द बन रही हैं। बसपा नेताओं का कहना है कि मायावती के इस फैसले से कांग्रेस, सपा व अन्य विपक्षी दलों द्वारा पार्टी को भाजपा की बी-टीम के रूप में प्रचार करने पर खुद-ब-खुद ब्रेक भी लग जाएगा।

दूसरी तरफ अगर बसपा प्रत्याशी को सपा व कांग्रेस समर्थन नहीं देंगी तो पार्टी को पलटवार करने का मौका मिलेगा। बसपा प्रत्याशी के हारने की स्थिति में पार्टी नेताओं द्वारा जनता के बीच यह सवाल उठाया ही जाएगा कि आखिर भाजपा का मददगार कौन है। वैसे सूत्रों का कहना है कि भाजपा को हराने के लिए सपा, कांग्रेस के साथ ही सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अलावा कई निर्दल का भी बसपा को समर्थन मिल सकता है। इतना ही नहीं बसपा की नजर भाजपा के असंतुष्टों पर भी है। सूत्रों का कहना है कि मायावती के इस दांव की काट के लिए भाजपा एक निर्दलीय के लिए रास्ता बना सकती है। ऐसा कर वह विपक्षी पार्टियों की एकजुटता को रोकने के साथ ही उनमें सेंध लगा सकती है।