ग्राम प्रधानों का कार्यकाल खत्म होने में एक माह से भी कम का समय रह गया है। लिहाज़ा प्रधानों का पूरा जोर रुका बजट खर्च करने और ज्यादा से ज्यादा काम कराने पर हैं ताकि आगे फिर से लोगों का भरोसा जीतकर प्रधान बन सके। एक अनुमान के मुताबिक, अपवाद को छोड़ दें तो ज्यादातर ग्राम पंचायतें इस साल का भी 50 से 80-90% तक बजट खर्च कर चुकी हैं।
दरअसल पंचायतराज विभाग के अनुसार, ग्राम पंचायतों को उसकी आबादी, क्षेत्रफल और अनुसूचित जाति की जनसंख्या आदि के हिसाब से बजट मिलता है, लेकिन एक अनुमान के अनुसार छोटी 1000-1500 की आबादी वाली ग्राम पंचायतों को सालाना 5-7 लाख का बजट मिलता है। जबकि बड़ी 10-10 हज़ार आबादी वाली पंचायतों में यह रकम 50-70 लाख व ज्यादा भी होती हैं। 15वें वित्त में क्षेत्र पंचायतों को फिर से बजट मिलने के चलते ग्राम पंचायतों के बजट में कमी आई हैं वरना 14वें वित्त में कई बड़ी पंचायतों का बजट एक-एक करोड़ को पार कर जा रहा था। खैर, तकनीकी दिक्कतों आदि को छोड़ दें तो ज्यादातर ग्राम पंचायते अपना इस साल का 80-90 % तक बजट खर्च कर चुकी हैं। बाकी शेष पैसे के भी जल्द खत्म करने पर जोर हैं। दरअसल, ग्राम प्रधानों का वर्तमान कार्यकाल खत्म होने में अब एक माह से भी कम का समय रह गया हैं। ऐसे में कुछ पंचायत जहां, सार्वजनिक शौचालयों और पंचायत भवनों आदि का निर्माण हो रहा हैं और अभी तक भुगतान नहीं हुआ हैं तो वहां जरूर अभी करीब आधा बजट खर्च हुए बिना पड़ा हैं।
लगभग पूरा बजट खर्च
ग्राम प्रधान संगठन के अध्यक्ष सतवीर यादव कहते हैं कि ज्यादातर पंचायतों द्वारा लगभग पूरा ही बजट खर्च कर लिया गया हैं। 13 दिसंबर को उन सभी का कार्यकाल खत्म हो रहा हैं। हालांकि चुनाव में देरी पर, प्रशासक नियुक्त किए जाने की बजाय प्रधानों की मांग हैं कि उन्हीं को कार्यवाहक प्रधान के तौर पर बनाये रखा जाए।
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जहां दिक्कत हैं वहीं बचा है बजट
ज़िला पंचायतराज अधिकारी राजेन्द्र प्रसाद के अनुसार, इस साल का अप्रैल के बाद का ज्यादा बजट उन्हीं पंचायतों में खर्च हुए बिना रह रहा हैं जहां या तो तकनीकी दिक्कत है या फिर पंचायत भवन या सार्वजनिक शौचालयों आदि का भुगतान अभी नहीं हो सका हैं। वरना तो सभी पंचायतों द्वारा बजट उपभोग कर लिया जा रहा हैं। बाकी जो रह गया हैं तो अभी समय हैं। इसमें खर्च हो जाएगा।