उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले का एक गांव मूलभूत सुविधाओं से वंचित है. एक हजार की आबादी वाले भरवलिया टिकुईया राजस्व गांव का नक्शा बस्ती जिले के नक्शे में भी दर्ज है, लेकिन हैरानी की बात यह है कि भरवलिया टिकुईया नाम के इस राजस्व गांव का लेखा-जोखा जिले के रिकॉर्ड में नहीं है. इस वजह से ये गांव विकास की दौड़ में पीछे रहा गया है. गांव में बसे सैकड़ों लोग एक तरफ तो बस्ती जिले में होने वाले निकाय चुनाव में मतदान करते हैं तो वहीं दूसरी तरफ जब लोकसभा और विधानसभा चुनाव होता है तो इन्हें वोटिंग करने का अधिकार पड़ोसी जिले संत कबीर नगर से मिलता है.
इस राजस्व गांव के आस-पास के दर्जनों गांव बस्ती जिले के रिकॉर्ड में तो दर्ज हैं, लेकिन जिओ टैगिंग नहीं होने की वजह से गांव का असल में कोई अस्तित्व ही नहीं है. हैरानी की बात ये भी है कि इस गांव में लगभग 100 से ऊपर घर जनपद के रिकॉर्ड में दर्ज हैं, लेकिन गांव में रहने वालों लोगों की जनसंख्या का आंकड़ा कहीं भी दर्ज नहीं है. ग्रामीणों की मांग है कि भरवलिया टिकुईया गांव को राजस्व गांव बस्ती में दर्ज किया जाए, ताकि इस गांव का भी विकास हो सके.
कागजों में संत कबीर नगर जिले में है भरवलिया टिकुईया गांव
पहले संत कबीर नगर जिला बस्ती जिले का एक हिस्सा हुआ करता था. 5 सितंबर 1997 को बस्ती जिले से कुछ हिस्सा अलग कर एक नया जिला बनाया गया. इस जिले का नाम संत कबीर नगर रखा गया. यह राजस्व गांव भरवलिया टिकुईया संत कबीर नगर जिले की सीमा से 4 से 5 किलोमीटर दूर है और इसके आसपास के सभी गांव बस्ती जिले के मैप में दर्ज हैं. 26 वर्ष बीत जाने के बाद भी कहा जाता है कि यह राजस्व गांव संत कबीर नगर में दर्ज है, लेकिन जब यहां के ग्रामीण वहां जाते हैं तो वहां से भी उनको निराशा ही हाथ लगती है.
बस्ती जिले में शामिल होने के लिए धरना-प्रदर्शन
अगर गांव में कोई घटना होती है तो इस गांव के लोग आज भी बस्ती जनपद के लालगंज थाने पर अपनी प्राथमिकी दर्ज कराते हैं. इतना ही नहीं घटना में सभी की सुनवाई बस्ती जिले के लालगंज थाने पर की जाती है. इन ग्रामीणों का जो आधार कार्ड और राशन कार्ड बनाया गया है, वह बस्ती जिले में बना हुआ है, जो कि चकिया ग्राम सभा के नाम से बना हुआ है. ग्रामीणों ने अपना नाम बस्ती में दर्ज कराने के लिए धरना-प्रदर्शन भी किया, लेकिन आज भी यहां की आबादी अधर में लटकी हुई है.