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कौन गिरा देता था बाबरी ढांचे की दीवारें, बाबर ने क्यों नहीं बनाई मीनारें

Rammandir Katha 18: विध्वंस किए गए मंदिर के मलबे से ही बाबरी ढांचे का निर्माण शुरू हो गया था। एक तरफ रक्तसंघर्ष, युद्ध तो दूसरी तरफ निर्माण भी जारी था। लेकिन यह क्या ? दिनभर मस्जिद का निर्माण किया जाता और रात में वह गिर जाती। जितनी दीवार दिन भर तैयार होती थी, शाम को वह अपने आप गिर पड़ती थी। मीर बांकी और मुगल सेना के लिए यह किसी हैरत से कम नहीं था। मीर बांकी ने निर्माण स्थल पर मुगल सैनिकों का कड़ा पहरा लगा दिया और वहां चारों तरफ आधे मील तक किसी भी व्यक्ति के प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया। इसके बावजूद दीवार का गिरना बंद नहीं हुआ, दोनों सिद्ध फकीरों की सिद्धाई हवा हो गई।

जहांपनाह आसमानी ताकतें दीवार गिरा देती हैं
हैरान और परेशान होकर मीर बांकी ने पूरी खबर दिल्ली में अपने बादशाह बाबर को भेजी कि मस्जिद निर्माण में कड़ा पहरा लगा देने के बाद भी दीवार गिर जाती है, यह किसी आसमानी ताकत का असर दिखाई देता है। बाबर को जब यह खबर मिली कि अयोध्या में मुगल सेना जो मस्जिद बनाती है, वह अपने आप गिर जाती है तो उसने मीर बांकी को संदेश भेजा कि –

यदि ऐसा है तो काम बंद कर दो और सेना लेकर वापस आ जाओ।
लेकिन फकीरों को यह बात गंवारा नहीं थी। जलालशाह और फजल अब्बास ने आपस में सलाह किया और बाबर को संदेश भेजवाया कि अगर इस पाक सरजमीं पर मस्जिद तामीर हो गई तो हिंदुस्तान में तुम्हारी जड़ें मजबूत हो जाएंगी। फकीरों को किसी कीमत पर निर्माण के काम को रोकना मंजूर नहीं था। फकीरों ने बाबर को संदेश भेजा कि काम बंद नहीं हो सकता आप खुद यहां तशरीफ लाइए।

हनुमान जी मस्जिद बनने नहीं देंगे
फकीरों से बाबर काफी प्रभावित था। उसने संदेश मिलते ही अयोध्या की तरफ रुख कर लिया। अयोध्या आकर उसने साधु, संत-महात्माओं से राय विमर्श किया कि आप लोग बताएं कैसे मस्जिद बन सकती है। बाबर ने अपनी मजबूरी बताई कि फकीर जलालशाह अपनी हठ नहीं छोड़ रहे हैं। महात्माओं ने कहा कि मस्जिद के नाम से इसे हनुमान जी बनने नहीं देंगे। इसलिए आपको इसमें कुछ परिवर्तन करना होगा।

सीतापाक स्थल लिख दो तो बन सकता है
संतों ने कहा कि अगर इसे मस्जिद का रुप न दिया जाए और सीता पाक स्थल लिखा जाए तो यह बन सकता है। इसके बाद बाबर ने हिंदू संतों की सारी बातें मान ली और इसमें बनाई जाने वाली मीनारों को गिराने का आदेश दे दिया। सदर दरवाजे में एक चंदन की लकड़ी लगा दी गई।

बीचों बीच दो गोलाकार चिंह लगाकर उसपर मुडिय़ा और फारसी भाषा में श्रीसीता पाक स्थान लिख दिया गया। उत्तर की ओर स्थित कौशल्या के छठी पूजन स्थान को जिसे तोड़ दिया गया था उसे फिर से बना दिया गया। चारों तरफ जो मंदिर की परिक्रमा बनी हुई थी उसे वैसे ही छोड़ दिया गया। इसके अलावा बाबर ने आदेश दिया कि इस परिक्रमा में हिंदू जब चाहे पूजा पाठ या भजन कर सकते हैं।

मुसलमानों के लिए जुमे की नमाज पढऩे के लिए सिर्फ दो घंटे का समय निर्धारित किया गया। इसप्रकार की कूटनीति करते हुए बाबर ने दुखी हिंदूओं के आंसू भी पोछ दिए और मंदिर को गिराकर ढांचा भी खड़ा कर दिया।

इतिहास का पीड़ादायक अध्याय
कहते हैं कि उस समय भारत वर्ष में केवल चार मंदिर सर्वोत्कृष्ट माने जाते थे। इन चार मंदिरों के टक्कर के मंदिर संसार भर में कहीं नहीं थे। इन चार मंदिरों में पहले नंबर पर अयोध्या में श्रीराम जन्म भूमि स्थित मंदिर, दूसरा अयोध्या का कही कनक भवन, तीसरा कश्मीर का सूर्य मंदिर और चौथा प्रभासपट्टम का श्रीसोमनाथ मंदिर हुआ करता था। दुर्भाग्य से वास्तुकला की दृष्टी से अभूतपूर्व इन मंदिरों का विध्वंस आक्रांताओं ने अपने जूनून में किया। जो बाद में इतिहास का पीड़ादायक अध्याय बन गया।

हांलाकि आजादी के समय ही प्रभासपट्टम के श्रीसोमनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार कर उसे भव्य स्वरुप दे दिया गया। जबकि प्रभास पट्टम के सोमनाथ मंदिर विध्वंस का मलबा सदियों तक वैसे ही समुद्र के किनारे पड़ा रहा। लेकिन सरदार बल्लभ भाई पटेल और प्रथम राष्ट्रपति महामहीम डॉ राजेंद्र प्रसाद के सत्प्रयासों से विदेशी आक्रांताओं की भूल का सुधार हुआ। लेकिन अयोध्या स्थित श्रीराम जन्मभूमि पर संघर्ष का सिलसिला इक्कीसवीं सदी के दूसरे दशक तक चलता रहा है। बाबर की उन भूलों ने जिसमें उसने मीनार नहीं बनाई और सीतापाक स्थल लिखा, वहीं मजबूत कारण बना जो बताता रहा कि यही श्रीराम की जन्मभूमि है।

नोट-ऐतिहासिक विवरण पुस्तक श्रीराम जन्मभूमि रोमांचकारी इतिहास लेखक स्वर्गीय पंडित रामगोपाल पाण्डेय शारद

 

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