यूं तो दिवाली का त्योहार पूरे देश में ही धूमधाम से मनाया जाता है, लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि इस देश में एक जगह ऐसी भी है जहां पर यह त्योहार दिवाली के दिन नहीं मनाया जाता. अगर किसी ने मनाया तो उसे अभिशाप मिलेगा. जिससे सभी के ऊपर दुखों का पहाड़ टूट पड़ेगा. जी हां हम बात कर रहे हैं छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले के सेमरा गांव की. यहां पर न सिर्फ दिवाली बल्कि कोई भी त्योहार उस दिन नहीं मनाया जाता है जिस दिन पूरा देश उसे मना रहा होता है.
दिवाली पर घर-घर रंगोली सजाना, अपने इष्ट की पूजा करना और पूजा के बाद व्यंजन पकाना और खाना. वहीं बच्चों के लिए तो इस त्योहार का मतलब पटाखे चलाना है. सेमरा गांव में भी यह सब होता है लेकिन यह सब दिवाली के दिन न होकर उससे एक हफ्ते पहले होता है. इस गांव में कई दशकों से यह परंपरा चली आ रही है और कोई भी इस परंपरा को तोड़ने की हिम्मत नहीं कर सकता. अगर किसी ने भूलकर भी ऐसा किया तो उसे अभिशाप मिलेगा.
सेमरा गांव में बताया जाता है कि दिवाली के अलावा होली, हरेली और पोला जैसे प्रमुख त्योहार भी एक हफ्ते पहले मनाए जाते हैं. दिवाली पर भी यहां एक हफ्ते पहले गोवर्धन पूजा, लक्ष्य पूजा की जाती है. वहीं दिवाली से पहले ही घर में मिट्टी के दिये लाकर जलाए जाते हैं. धूमधाम से पूजन किया जाता है. सभी घरों के आंगन में खूबसूरत रंगोली सजाई जाती हैं और बच्चे-बड़े सभी पटाखे चलाते हैं.
क्या है इस परंपरा का रहस्य
इस परंपरा के पीछे वैसे तो कोई ज्यादा खुलकर बात नहीं करता है लेकिन, यह गांववाले अक्सर बताते हैं कि उनके गांव में सिदार देव की पूजा की जाती है. वह पूरे गांव की रक्षा करते हैं और एक बार उन्होंने पूरे गांव को एक बड़ी विपत्ति से बचाया था. इसके बाद उन्होंने ही गांव में एक पुजारी को सपने में आकर आदेश दिया था कि गांव वाले अगर सबसे पहले उनकी पूजा करेंगे तो वह गांव पर किसी तरह की विपत्ति नहीं आने देंगे.
इसी आदेश के बाद गांव वालों ने इस परंपरा को शुरू किया और हर त्योहार यहां पर एक हफ्ते पहले ही मनाया जाने लगा. इसमें सिदार देव की पूजा जरूर की जाती है. गांववालों का कहना है कि अगर वह ऐसा नहीं करेंगे तो सिदार देव रुष्ट हो सकते हैं जिससे उनके गांव पर विपत्ति आ सकती है.