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MP का हिसाब क्या अमेठी-रायबरेली में चुकता करेंगे अखिलेश यादव?, पढ़े पूरी खबर

उत्तर प्रदेश में कभी कांग्रेस का गढ़ समझी जाने वाली अमेठी और रायबरेली सीटों पर बिना सपा के साथ क्या कांग्रेस 2024 में कोई करिश्मा दिखा पायेगी? 2019 में अमेठी कांग्रेस के हाथ से निकल चुकी है , जबकि रायबरेली में सोनिया गांधी की लंबी गैरहाजिरी और भाजपा की जबरदस्त सक्रियता के चलते 2024 की चुनौती कठिन बन चुकी है. उधर मध्यप्रदेश के कांग्रेस और सपा के घमासान की चपेट में उत्तर प्रदेश की राजनीति आ गई है.

विपक्ष के I.N.D.I.A.गठबंधन के आकार लेने के बाद माना जाने लगा था कि सपा अमेठी और रायबरेली से एक बार फिर दूर ही रहेगी. लेकिन मध्यप्रदेश से उठे बवंडर ने स्थितियां बदली हैं. सपा मुखिया अखिलेश यादव द्वारा अमेठी, रायबरेली के पार्टी नेताओं को 25 अक्टूबर को लखनऊ बुलाने की खबर है. जाहिर है कि इसने भाजपा विरोधी गठबंधन में सब कुछ ठीक न होने के संकेत दिए हैं.

गांधी परिवार अमेठी से उदासीन ; नेताओं को फिर भी उम्मीद

गांधी परिवार भले चुप्पी साधे हो लेकिन पिछले कुछ दिनों से लखनऊ से अमेठी तक के कांग्रेसी 2024 में अमेठी से एक बार फिर गांधी परिवार के किसी सदस्य की उम्मीदवारी की उम्मीद लगाए हुए हैं. उन्हें लगता है कि राहुल या फिर प्रियंका में से कोई पारिवारिक सीट की वापसी के लिए मैदान में उतरेगा. इस चर्चा को प्रदेश अध्यक्ष बनाए अजय राय के बयानों ने हवा दी. विपक्षी दलों के I.N.D.I.A. गठबंधन और मिलकर भाजपा को हराने के संकल्प ने हौसला दिया. उधर मुंशीगंज (अमेठी) स्थित संजय गांधी अस्पताल की बंदी ने स्थानीय कांग्रेसियों में जोश भरा और वे सपा के नेताओं – कार्यकर्ताओं के साथ सड़कों पर उतरे. कुल मिलाकर माहौल बना कि चुनाव में कांग्रेस अन्य विपक्षियों के साथ अमेठी को फिर से जीतने की तैयारी में है.

अमेठी -रायबरेली में भी चाहिए सपा का सहारा

2019 में अमेठी में हारने के चलते 2024 को लेकर वहां अगर-मगर है तो दूसरी ओर रायबरेली में 2019 की जीत के बाद भी सोनिया गांधी की अपने निर्वाचन क्षेत्र में लंबी गैरहाजिरी अगली उम्मीदवारी पर संशय पैदा किए हुए है. लोकसभा में उत्तर प्रदेश से कांग्रेस की इकलौती उपस्थिति रायबरेली से है. उत्तर प्रदेश के कांग्रेसी नेताओं के 80 सीटों पर तैयारी के दावे भले हों लेकिन जमीनी सच्चाई यही है कि अमेठी और रायबरेली तक में गांधी परिवार की मौजूदगी में भी उसे सपा के सहारे की जरूरत रहती है.

पूरे प्रदेश में कांग्रेस के खाते में विधानसभा की कुल जमा तीन सीटें हैं. गांधी परिवार का पर्याय समझी जाने वाली अमेठी और रायबरेली से विधानसभा में पार्टी शून्य पर है. दूसरी ओर सपा अमेठी की पांच में दो और रायबरेली की पांच में से चार सीटों पर काबिज है.

अस्पताल का सवाल;वरुण बोले लेकिन राहुल -प्रियंका रहे खामोश

बेशक एक दौर में अमेठी और रायबरेली पर गांधी परिवार का वर्चस्व रहा है लेकिन वह वक्त पीछे छूट चुका है. फिलहाल इन दोनो ही क्षेत्रों में कांग्रेस निस्तेज है और उसके कार्यकर्ता हताश – निराश हैं. इसकी इकलौती वजह सत्ता से दूरी नहीं है. बड़ी वजह है कि गांधी परिवार ने क्षेत्र के साथ ही वर्करों को भी अपने हाल पर छोड़ दिया है.

2019 की हार के बाद राहुल की अमेठी में उपस्थिति 2022 के विधानसभा चुनाव सहित दो -तीन मौकों पर मुमकिन हुई. वही हाल प्रियंका का रहा. सोनिया गांधी की क्षेत्र से दूरी का कारण उनकी बीमारी बताई जाती है.

दूसरी तरफ 2024 की चुनौती पास है लेकिन गढ़ कहे जाने वाले दोनो क्षेत्रों में पार्टी की तैयारी की बात दूर , उम्मीदवारी को लेकर सिर्फ अटकलें हैं. पार्टी का सारा जोश – खरोश सूबे और स्थानीय नेताओं के सरगर्म बयानों तक सिमटा हुआ है. गांधी परिवार की उदासीनता का आलम यह है कि पिछले दिनों एक मरीज की मौत के बाद, उनके पारिवारिक ट्रस्ट द्वारा अमेठी में संचालित संजय गांधी अस्पताल पर प्रशासन ने ताला लगवा दिया था.

यह मुद्दा मीडिया में सुर्खियों में छाया रहा. पार्टी के स्थानीय कार्यकर्ता सड़कों पर उतरे. प्रदेश के नेता आक्रोश जाहिर करते रहे. यहां तक कि परिवार के विपक्षी धड़े के भाजपा सांसद वरुण गांधी ने अस्पताल बंदी को गलत बताते हुए चिट्ठी लिख डाली. लेकिन राहुल -प्रियंका और सोनिया ने चुप्पी साधे ही रखना मुनासिब समझा. बाद में अदालती आदेश से अस्पताल चालू हो सका.

तो अब अमेठी -रायबरेली , कांग्रेस की है कमजोर कड़ी…!

मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव को लेकर सपा और कांग्रेस की रार क्या उत्तर प्रदेश में कुछ गुल खिलाएगी? फिलहाल दोनों खेमों के बयानों की तल्खी इसी ओर इशारा कर रही है. मार्च महीने में अपनी अमेठी यात्रा में अखिलेश यादव ने 2024 में अमेठी और रायबरेली से सपा की तैयारी के संकेत दिया था. वहां के हालात पर उन्होंने यह कहते हुए तंज किया था कि अब तक यहां से वी आई पी चुने जाते रहें हैं , अब बड़े दिल वाले चुने जाएंगे. सपा ने 1999 से अमेठी लोकसभा सीट गांधी परिवार के लिए छोड़ रखी है. रायबरेली में पार्टी आखिरी बार 2006 के उपचुनाव में मैदान में उतरी थी.

दोनों ही क्षेत्रों की विधानसभा सीटों पर सपा ने अपनी ताकत चुनाव दर चुनाव प्रमाणित की है. जाहिर है कि उसकी यह ताकत लोकसभा चुनाव के नतीजों का रुख बदल सकती है. I.N.D.I.A गठबंधन बनने के बाद मान लिया गया था कि सपा अमेठी और रायबरेली एक बार फिर गांधी परिवार के नाम पर छोड़ देगी. वहां सपा ने अपनी सक्रियता पर भी ब्रेक लगा दिया था. लेकिन बदली परिस्थितियों में दोनो पार्टियों में तल्खी बढ़ी है. मध्य प्रदेश की चोट का हिसाब उत्तर प्रदेश में किया जा सकता है. उत्तर प्रदेश विधानसभा के चुनाव दूर हैं. लेकिन लोकसभा चुनाव पास हैं.फिलहाल अमेठी -रायबरेली कांग्रेस की कमजोर लेकिन उत्तर प्रदेश में वजूद के लिए जरूरी कड़ी हैं. क्या अखिलेश ने उस पर प्रहार का मन बना लिया है.

 

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