Breaking News

यूक्रेन में तबाह हो गया दुनिया का सबसे बड़ा विमान,3 अरब डॉलर के खर्च से 5 साल में फिर होगा तैयार

दुनिया का सबसे लंबा कार्गो प्लेन एंटोनोव AN-225 यूक्रेन में रूसी हमले के दौरान नष्ट हो गया है। यह विमान यूक्रेन की राजधानी कीव के पास एक एयरफील्ड में पार्क किया गया था। यूक्रेनी अधिकारियों का कहना है कि वे इसकी मरम्मत कराएंगे।

म्रिया है विमान का नाम
इस विराट विमान का नाम ‘म्रिया’ है, जिसका यूक्रेनी भाषा में मतलब होता है- ‘सपना’। यूक्रेनी विदेश मंत्री दिमित्रो कुलेबा ने ट्विटर पर लिखा- ‘रूस ने भले ही हमारे म्रिया को नष्ट कर दिया हो, लेकिन वह कभी भी मजबूत, आजाद और डेमाक्रेटिक राष्ट्र के हमारे सपने को नहीं तोड़ पाएगा। हम जरूर जीतेंगे।’

एयरक्राफ्ट का निरीक्षण करेंगे एक्सपर्ट
एंटोनॉव कंपनी ने एक ट्वीट करके बताया कि वे तब तक एयरक्राफ्ट की टेक्निकल कंडीशन को वेरिफाई नहीं कर सकते, जब तक एक्सपर्ट्स उसका निरीक्षण नहीं कर लेते।

रूसी खर्च पर तैयार किया जाएगा दोबारा
यूक्रेन की स्टेट डिफेंस कंपनी यूक्रोबोरोनप्रोम ने रविवार को एक बयान जारी करके बताया कि एयरक्राफ्ट को नष्ट कर दिया गया है लेकिन उसे रूसी खर्च पर फिर से तैयार किया जाएगा। इसमें करीब 3 अरब डॉलर का खर्च आएगा। इस काम में 5 साल का समय लगेगा।

कंपनी ने आगे कहा कि हमारा काम यह सुनिश्चित करना है कि इसकी मरम्मत में आना वाला सारा खर्च रूसी फेडरेशन उठाए क्योंकि उसने यूक्रेन के एविएशन सेक्टर और एयर कार्गो सेक्टर को भारी नुकसान पहुंचाया है।

An-225 ‘म्रिया’ कार्गो एयरप्लेन की खूबियां

यह दुनिया में अपनी तरह का एकलौता एयरक्राफ्ट था।
इसकी लंबाई 84 मीटर यानी 276 फीट थी।
यह 250 टन कार्गो को 850 किमी/घंटा की रफ्तार से लेकर उड़ान भर सकता है।
सोवियत एयरोनॉटिकल प्रोग्राम के तहत बनाए गए इस विमान ने 1988 में पहली उड़ान भरी थी।
म्रिया ने 124 वर्ल्ड रिकॉर्ड और रफ्तार, ऊंचाई और वजन के अनुपात में ऊंचाई में 214 नेशनल रिकॉर्ड बनाए।
2010 में An-225 ने एयर ट्रांसपोर्टेशन के इतिहास में सबसे लंबा कार्गो आइटम लेकर उड़ान भरी।
स्पेशल टेस्टिंग के लिए 42.1 मीटर लंबी दो विंड टर्बाइन चीन से डेनमार्क तक डिलीवर की।
3 दशक पुराना है विमान का इतिहास
An-225 विमान की कहानी 1960 और 70 में शुरू हुई जब सोवियत संघ और अमेरिका के बीच स्पेस रेस जारी थी। 1970 के दशक के अंत तक बाइकोनूर कॉस्मोड्रोम से हेवी लोड को कजाखस्तान के रेगिस्तान तक लेकर जाने की जरूरत पैदा हुई।

उस समय कार्गो को ले जाने में सक्षम कोई विमान मौजूद नहीं था। तब एंटोनोव कंपनी को एक विमान बनाने का ऑर्डर दिया गया। यह विमान 1985 में बनकर तैयार हुआ। कंपनी ने दूसरे प्लेन पर भी काम शुरू किया था, लेकिन वह पूरा नहीं हो पाया।