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अयोध्या में नहीं बनेगी बाबर के नाम से मस्जिद

अयोध्या में बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद नई मस्जिद बनाने के लिए शासन ने फैजाबाद के सोहावल स्थित धन्नीपुर में जो जमीन दी थी, उस पर काम शुरू हो चुका है। पहले मस्जिद का नक्शा बनाया जाएगा, जिसका जिम्मा जामिया मिल्लिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी में आर्किटेक्चर डिपार्टमेंट में प्रफेसर डॉ. सैय्यद मोहम्मद अख्तर उठा रहे हैं। मस्जिद के नाम और डिजाइन पर उनसे राहुल पाण्डेय ने बात की। प्रस्तुत हैं प्रमुख अंश:
आपको फैजाबाद में बन रही मस्जिद की डिजाइन तैयार करने की जिम्मेदारी सौंपी गई है।

क्या फैजाबाद से आपका पहले से नाता रहा है?
जी हां, हमारे पुरखे फैजाबाद के ही रहने वाले थे। मेरी पैदाइश हालांकि लखनऊ की है। ग्रैजुएशन भी लखनऊ से ही किया, लेकिन जीवन और काम दिल्ली में चला तो कह सकते हैं कि मैं दिल्ली का ही हूं। फिलहाल जामिया मिल्लिया इस्लामिया सेंट्रल यूनिवर्सिटी के आर्किटेक्चर विभाग में डीन हूं।

जो नई बाबरी मस्जिद बन रही है, उसके नक्शे के बारे में बताइए।
देखिए, इस मस्जिद के साथ बाबरी शब्द यूज करना या न करना आप पर है। धन्नीपुर में जो पांच एकड़ जमीन मिली है, उस पर इंडो इस्लामिक कल्चरल फाउंडेशन काम कर रहा है। उसने हमें कहा कि आप इस पर एक कॉम्प्लेक्स बनाइए जो मानव सेवा का एक सेंटर होगा। अभी उसके तीन कंपोनेंट सोचे गए हैं, बाद में और बढ़ भी सकते हैं। पहली तो मस्जिद है ही, दूसरा अस्पताल है। अभी लोग इलाज के लिए फैजाबाद से गोरखपुर-लखनऊ भागते हैं। साथ ही एक आर्काइव भी बनेगा, जिसमें लाइब्रेरी, कीमती दस्तावेज, वस्तुएं और ऑडिटोरियम इत्यादि होंगे।

मस्जिद तो बननी थी, अस्पताल और आर्काइव का विचार कैसे आया?
इस पूरी कवायद का मिशन खिदमत-ए-खल्क है, यानी मानव सेवा। यह फिलॉसफी इस्लाम से ही निकली है। खिदमत-ए-खल्क के लिहाज से आज आदमी को हेल्थ और एजुकेशन चाहिए। एजुकेशन के लिए आर्काइव बना रहे हैं, जो अपने आप में एक स्कूल होगा। ये ट्रेडिशनल स्कूल जैसा नहीं है कि वहां से हाईस्कूल-इंटर या ग्रैजुएशन होगा। यहां आप भारत का सांस्कृतिक इतिहास और भारत की राष्ट्रीय ताकत के बारे में जानेंगे और उस पर गर्व करेंगे। वहां सम्मानित लोगों के लेक्चर्स भी होंगे। एक तरह से सेल्फ स्कूलिंग जैसा होगा। यह लोगों का इंटलेक्ट लेवल बढ़ाने के लिए है।

जो अस्पताल बन रहा है, उसके लिए जमीन काफी है या और चाहिए?
अभी सरकार ने जितनी जमीन हमें दी है, हम उसी पर काम कर रहे हैं, उसके स्पेस पर सवाल नहीं उठा रहे हैं। आगे अगर और जरूरत पड़ेगी तो उसके बारे में देखा जाएगा।
आर्किटेक्चर अपने आप में बहुत डायनमिक सब्जेक्ट है। आज मध्य युगीन डिजाइन दोहराना गलत है। आर्किटेक्चर आज के समय के हिसाब बनता है। उसे रिपीट करने की कोशिश नासमझी है। मध्य युग की चुनौतियां अलग थीं और आज की अलग हैं। आज का इश्यू एनर्जी है। जैसे कर्नाटक में जो समकालीन मस्जिद बनी है, वह सूर्य से एनर्जी की अपनी सारी जरूरतें पूरी करती है। हम कपड़े आज के हिसाब से पहनते हैं, कार आज के हिसाब से खरीदते हैं तो इसमें कोई पुरानी चीज क्यों? फिर इस्लाम भी तो बहुत डायनमिक रिलीजन है।

समकालीन मस्जिदें हमें कहां-कहां देखने को मिलती हैं?
ऐसी मस्जिदें आपको पूरे यूरोप में मिल जाएंगी, मिडल ईस्ट में मिलेंगी और भारत में भी मिल जाएंगी। कतर और दुबई में एकदम नए डिजाइन की कई मस्जिदें बनी हैं। डेनमार्क और जर्मनी में भी समकालीन मस्जिदें बनी हैं।

इसका नाम बाबरी मस्जिद ही होगा या कुछ और?
नाम तो फाउंडेशन का ही है। यह इंडो इस्लामिक कल्चरल सेंटर बनेगा। दरअसल मस्जिदों को नाम देने की कोई रवायत नहीं है। वो तो मीडिया ने उसे बाबरी बुलाया तो उसका नाम पड़ गया। वरना या तो.मस्जिद होती है, या फिर जामा मस्जिद होती है। मस्जिद किसी के नाम से बावस्ता नहीं होती। मस्जिद अपने आप में अपनी जगह से जानी जाती है।

नक्शा कब तक तैयार होगा?
काम चल रहा है, लेकिन कोरोना के चलते सब लोग अपनी-अपनी जगहों से कर रहे हैं, टीम एक साथ बैठ नहीं पा रही है। इसके चलते कुछ वक्त लग रहा है, फिर भी दो से तीन महीने में नक्शा तैयार हो जाना चाहिए।