इलाहाबाद हाई कोर्ट ने वकीलों/वादियों के लिए फैसला लिया है। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने पूरे उत्तर प्रदेश में, वकीलों/वादियों को अदालत परिसर में, हथियार ले जाने पर रोक लगा दी है। न्यायालय ने फैसला देते हुए कहा है कि कोर्ट परिसर के अंदर वकील समेत कोई भी व्यक्ति अदालत परिसर में हथियार नही रख सकता है। कोर्ट ने बताया है कि यह अधिकार सिर्फ सुरक्षाकर्मियों को ही है।
बता दें कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना है कि जब भी सार्वजनिक शांति या सार्वजनिक सुरक्षा को खतरा हो, तो शस्त्र अधिनियम, 1959 की धारा 17(3)(बी) के तहत लाइसेंसिंग प्राधिकारी के लिए लाइसेंस रद्द करना या निलंबित करना अनिवार्य है। हाईकोर्ट ने पूरे उत्तर प्रदेश में वकीलों/वादियों को अदालत परिसर में हथियार ले जाने पर भी रोक लगा दी है।
आग्नेयास्त्र ले जाना संविधान के तहत मौलिक अधिकार नहीं
न्यायालय ने कहा, “ड्यूटी पर तैनात सशस्त्र बलों के सदस्य के अलावा वकीलों या किसी भी वादी को हथियार ले जाने की अनुमति देना स्पष्ट रूप से अदालत परिसर में सार्वजनिक शांति या सार्वजनिक सुरक्षा के लिए खतरा होगा, जिसका न केवल जिला न्यायालयों में आने वाले वादियों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा, बल्कि इसका न्याय प्रशासन की विश्वसनीयता पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, जो भारत के संविधान की बुनियादी विशेषताओं में से एक है।” यह भी माना गया कि आग्नेयास्त्र ले जाना संविधान के तहत मौलिक अधिकार नहीं है।
अदालत ने उत्तर प्रदेश के सभी जिला न्यायाधीशों और न्यायिक अधिकारियों को निर्देश दिया कि वे अदालत परिसर के भीतर हथियार ले जाने वाले वादियों और वकीलों के खिलाफ शस्त्र अधिनियम के तहत मामले दर्ज करें।
इसके अतिरिक्त, अदालत ने उन्हें ऐसे हथियार लाइसेंस को रद्द करने की प्रक्रिया शुरू करने के लिए तुरंत जिला मजिस्ट्रेट / लाइसेंसिंग प्राधिकरण से संपर्क करने का आदेश दिया।