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भाजपा ने निकाला फूलनदेवी का तोड़, सपा में खलबली

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 के लिए भले ही अभी पौने दो साल का समय बचा हुए हो, लेकिन सियासी समीकरणों को साधने की कवायद शुरू हो गई है. समाजवादी पार्टी के मुखिया और राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव अति पिछड़ा समुदाय को साधने के लिए पूर्व सांसद फूलन देवी को महज याद ही करते रहे. दूसरी ओर बीजेपी ने जयप्रकाश निषाद को राज्यसभा भेजने का फैसला करके सूबे के मल्लाह समुदाय को साधने के लिए बड़ा दांव चल दिया है. ऐसे में देखना है कि यूपी का मल्लाह समुदाय किसकी राजनीतिक नैया पार लगाएगा?

दरअसल, अखिलेश यादव ने 25 जुलाई को पूर्व सांसद फूलन देवी की पुण्यतिथि पर सिर्फ श्रद्धांजलि ही अर्पित नहीं की बल्कि उनके जीवन पर आधारित एक वृत्तचित्र के प्रोमो को साझा कर अति पिछड़ा समुदाय को राजनीतिक संदेश देने की कवायद की थी. इस डॉक्यूमेंट्री के प्रोमो में फूलन देवी को ऐसे महिला के तौर पर दिखाया गया है जो अति पिछड़ी जाति (मल्लाह) में पैदा हुई थी और जिसे बिना किसी अपराध के मानसिक और शारीरिक पीड़ा झेलनी पड़ी.

अखिलेश ही नहीं बल्कि उनकी पार्टी सपा के कार्यकर्ताओं ने भी 25 जुलाई को प्रदेश के विभिन्न जिलों में फूलन देवी को श्रद्धांजलि अर्पित की और सामंतवादियों के खिलाफ उनके संघर्ष की सराहना की थी. सपा की इस कोशिश को फूलन देवी के बहाने सूबे के मल्लाह समुदाय को राजनीतिक संदेश देने के तौर पर देखा जा रहा है, क्योंकि मुलायम सिंह यादव ही पूर्व सांसद फूलन देवी को सियासत में लेकर आए थे. फूलन देवी को सपा ने 1996 में मिर्जापुर से समाजवादी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ाया और संसद भेजा था.

फूलन देवी मल्लाह समुदाय से आती थीं. इसीलिए मल्लाह समुदाय की उपजातियां काची, बिंद, मल्लाह और निषाद समुदाय के बीच काफी लोकप्रिय रहीं. फूलन देवी सासंद बनीं और यही वह दौर था जब मल्लाह समुदाय सपा का परंपरागत वोटर बन गया था, लेकिन बीजेपी इन्हीं अति पिछड़ी जातियों के वोट के सहारे 2017 में राज्य में 14 साल के सत्ता के वनवास को खत्म करने में कामयाब रही है.

अखिलेश अब एक बार फिर फूलनदेवी की पुण्यनिति पर उनको याद कर काची, बिंद, मल्लाह और निषाद समुदाय के साथ अति पिछड़ा वोटर को साधने की महज कवायद ही रहे, लेकिन उससे पहले बीजेपी ने बड़ा दांव चल दिया है. बीजेपी ने फूलन देवी के जातीय समुदाय से आने वाले जय प्रकाश निषाद को राज्यसभा की एक सीट पर होने वाले उपचुनाव के लिए अपना उम्मीदवार बनाकर राजनीतिक संदेश देने की कोशिश की है.

जयप्रकाश निषाद को सीएम योगी आदित्यनाथ ने बीजेपी जॉइन कराई थी और वह यूपी के कद्दावर राजनेताओं में से एक रहे हैं. बीजेपी के निषाद कैंडिडेट को राज्यसभा भेजने का फैसला पिछड़ी जातियों को रिझाने के फैसले के रूप में देखा जा रहा है. जयप्रकाश निषाद गोरखपुर क्षेत्र से बीजेपी के उपाध्यक्ष हैं. वह बसपा के टिकट पर 2012 में चौरी-चौरा सीट से विधायक रह चुके, लेकिन फरवरी 2018 में बीजेपी में शामिल हो गए थे. अब बीजेपी उन्हें राज्यसभा भेज रही है और उनका कार्यकाल पांच मई 2022 तक रहेगा. इस तरह से उनके राज्यसभा रहते हुए सूबे में विधानसभा चुनाव होंगे.

यूपी में तकरीबन 7 फीसदी आबादी मल्लाह, केवट और निषाद जातियों की है. यूपी की तकरीबन 20 लोकसभा सीटें और तकरीबन 60 के करीब विधानसभा सीटें ऐसी हैं जहां निषाद वोटरों की संख्या अच्छी खासी है. गोरखपुर, गाजीपुर, बलिया, संतकबीर नगर, मऊ, मिर्जापुर, भदोही, वाराणसी, इलाहाबाद ,फतेहपुर, सहारनपुर और हमीरपुर जिले में निषाद वोटरों की संख्या अधिक है. ऐसे में बीजेपी ने जयप्रकाश निषाद को राज्यसभा भेजने का फैसला कर मल्लाह समुदाय के दिल को जीतने की कोशिश की है. हालांकि, सीएम योगी ने 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले निषाद पार्टी को भी बीजेपी में विलय कराने का दांव चला था. इस तरह से बीजेपी ने पूर्वांचल के किलों को और भी मजबूत करने का दांव चला है.