बाग्लादेश ने अपने चिटागांग बंदरगाह (इसे चटगांव भी कहते हैं) का रास्ता भारत के लिए खोल दिया है। यह बंदरगाह सिर्फ दो देशों के बीच औद्योगिक या कूटनीतिक संबंधों को ही प्रगाढ़ नहीं करेगा, बल्कि भारत के सात पूर्वोत्तर राज्यों के साथ म्यांमार, भूटान, नेपाल जैसे एशियाई देशों से रिश्तों की दशा-दिशा बदलने वाला प्रोजेक्ट भी होगा। विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार वर्तमान में एक ट्रक को भारत से बांग्लादेश पहुंचने 138 घंटे लगते हैं और 55 हस्ताक्षर कराने पड़ते हैं। अब यह रास्ता सुगम हो जाएगा।भारत के लिए महत्वपूर्ण बंदरगाह खोलने की यह है वजह : जानकारों का मानना है कि चिटागांग बंदरगाह को भारत के लिए खोलना सिर्फ भारत के लिए ही फायदे का सौदा नहीं है, बल्कि बांग्लादेश के लिए भी वस्तुओं की आवाजाही के माध्यम से बेहतर कमाई का जरिया है। अन्य प्रमुख कारण इस प्रकार हैं:
1 म्यांमार से टक्कर: बांग्लादेश और म्यांमार के बीच एक तरह से क्षेत्रीय प्रतिस्पर्धा है। म्यांमार में राजनीतिक उथल-पुथल के साथ कई तरह के प्रतिबंध भी लगे हुए हैं। बावजूद इसके म्यांमार की अर्थव्यवस्था बढ़ रही है। खास तौर पर दवा के क्षेत्र में दोनों देशों के बीच स्पर्धा है। इस पर लगाम कसने के लिए बांग्लादेश ने भारत के लिए जलमार्ग का रास्ता खोला है।
2 भारत अपने पूर्वोत्तर राज्यों में बेहतर कनेक्टिविटी व औद्योगिक नेटवर्क विकसित करने की कोशिश करेगा। ऐसे में भारत के लिए म्यांमार एक मजबूत विकल्प बन सकता है। इसी कारण बांग्लादेश म्यांमार को भारत से व्यापारिक संबंध मजबूत करने का अवसर नहीं देना चाहता है।
3 भारत ने कालादान मल्टीमाडल ट्रांजिट ट्रांसपोर्ट प्रोजेक्ट (एमएमटीटीपी) के तहत म्यांमार के सितवे पोर्ट को विकसित किया है और उसके जरिए पूर्वोतर तक माल आसानी से भेज सकता है। इससे भारत को तो फायदा होगा ही, साथ ही म्यांमार की अर्थव्यवस्था भी विकसित होगी। यही वजह है कि यह प्रोजेक्ट पूरा होने से पहले बांग्लादेश, भारत के साथ अपना व्यापारिक रिश्ता और मजबूत करना चाहता है।
पोर्टो ग्रांडे डि बंगाल : 16 वीं सदी में पुर्तगाली साम्राज्य में इसे पोर्टो ग्रांडे डि बंगाल के नाम से जाना जाता था। वहीं, ईस्ट इंडिया कंपनी ने बंगाल के अंतिम स्वतंत्र नवाब को हराकर 1760 में इसपर नियंत्रण किया था।
ब्रिटिश राज में हुआ असम- बंगाल रेलवे का निर्माण : 19 वीं सदी में ब्रिटिश राज के तहत, आधुनिक चिटागांग बंदरगाह के विकास के लिए असम-बंगाल रेलवे का निर्माण किया गया था। द्वितीय विश्व युद्ध में बर्मा अभियान के दौरान यह मित्र देशों की सेना के लिए महत्वपूर्ण आधार बना।
उम्मीद: ताकि बांग्लादेश पहुंचे कंपनियां भारत दुनिया में मैन्युफैक्चरिंग हब बनता जा रहा है। बांग्लादेश में श्रमिक भारत की तुलना में और भी सस्ते हैं, ऐसे में बांग्लादेश को उम्मीद है कि यदि बेहतर कनेक्टिविटी हुई तो भारत में निवेश करने वाली कंपनियां आने वाले समय में बांग्लादेश में भी परियोजनाएं शुरू कर सकती हैं।
गहरे पानी का प्राकृतिक बंदरगाह : बंगाल की खाड़ी के पूर्वी तट और कर्णफुली नदी के मुहाने पर स्थित चिटागांग बांग्लादेश के दक्षिणी हिस्से में पड़ता है। यहां गहरे पानी का प्राकृतिक बंदरगाह है। यह बांग्लादेश ही नहीं बल्कि दक्षिण एशिया का वाणिज्य, उद्योग और जहाजरानी (शिपिंग) का एक प्रमुख केंद्र है। यह दुनिया के सबसे तेजी से विकसित होते महानगरों में से भी एक है। सदियों से इस प्राचीन प्राकृतिक बंदरगाह ने बंगाल और बंगाल की खाड़ी के प्रमुख व्यापारिक केंद्रों के लिए प्रवेश द्वार का कार्य किया है।
जलमार्ग के जरिये सार्क और आसियान देशों का गलियारा
1 भारत के सात उत्तर-पूर्वी राज्यों अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नगालैंड और त्रिपुरा के साथ हमारे पड़ोसी देशों की 5,182 किलोमीटर अंतरराष्ट्रीय सीमा लगती है।
2 भारत की तिब्बत के साथ 1,395 किलोमीटर, उत्तर में चीन, पूर्व में म्यांमार के साथ 1,640 किलोमीटर, दक्षिण-पश्चिम में बांग्लादेश के साथ 1,596 किलोमीटर, पश्चिम में नेपाल के साथ 97 किलोमीटर और भूटान के साथ 455 किलोमीटर की सीमा है।
3 सातों राज्य यानी सेवन सिस्टर्स स्टेट्स लगभग 2,62,230 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैले हुए हैं और यह भारत के कुल क्षेत्र का लगभग आठ प्रतिशत है। इनकी कुल आबादी लगभग 4.6 करोड़ है। जिसमें से अकेले असम में ही 68 प्रतिशत आबादी रहती है।
4 द सेवन सिस्टर्स स्वाभाविक रूप से दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संघ (सार्क) और दक्षिण पूर्व एशियाई राष्ट्र संघ (आसियान) सहित चीन के बीच का गलियारा हैं, हालांकि खराब बुनियादी ढांचे और कनेक्टिविटी की कमी की वजह से यह क्षेत्र अब तक पिछड़ा हुआ है।
बांग्लादेश के जहाजरानी राज्य मंत्री खालिद महमूद चौधरी ने बताया कि चटागांग बंदरगाह के जरिये भारत के लिए अपने उत्तर पूर्वी इलाकों के सातों राज्यों (सेवेन सिस्टर्स) तक पहुंचना बहुत आसान हो जाएगा। इसका ट्रायल पूरा हो गया है। चूंकि अब भारत से आने वाले माल नियमित रूप से भेजे जाएंगे। इसलिए यहां अलग से काउंटर बनाए जा रहे हैं। एक महीने के भीतर सारी प्रक्रिया पूरी हो जाएगी। उसके बाद नियमित आवाजाही शुरू हो जाएगी। भारत और बांग्लादेश के बीच हुई संधि के मुताबिक मोंगला बंदरगाह का काम भी तेजी से चल रहा है। वर्ष 2024-25 तक यह परियोजना भी पूरी हो जाएगी। उसके बाद भारत- बांग्लादेश सहित भूटान, म्यांमार, नेपाल जलमार्ग के बीच जलमार्ग का बेहतर नेटवर्क विकसित हो जाएगा।
बांग्लादेश के चिटागांग बंदरगाह के चेयरमैन एडमिरल एम शाहजहां ने बताया कि भारत के कोलकाता या हल्दिया बंदरगाह से आने वाला माल चिटागांग बंदरगाह के जरिये महज 48 घंटे में ही अगरतला (त्रिपुरा) पहुंच जाएगा। अभी सड़क मार्ग के जरिये परिवहन से बहुत औपचारिकताएं करनी पड़ती है। अब नया रास्ता खुलने से समय और श्रम दोनों बचेगा।