INDIA गठबंधन में शामिल कांग्रेस और आरएलडी जैसी पार्टियां जहां अभी तक बैठक भी नहीं कर पाई हैं, वहीं दूसरी ओर सपा ने अपनी सीट तक तय करनी शुरू कर दी है. ये गठबंधन धर्म के खिलाफ कहा जा सकता है लेकिन सपा बिना किसी दबाव के चुनावी तैयारी में बाकी सहयोगियों से काफी आगे निकल चुकी है. दबाव गठबंधन के अंदर से हो या बीजेपी जैसे विपक्षी पार्टी का, सपा अब इससे ऊपर उठकर लोकसभा चुनाव की तैयारी में लगी है. सूत्र बता रहे हैं कि पार्टी 60 सीटों पर तैयारी कर रही है लेकिन कोई राजनैतिक उठापटक होती है तो फिर पार्टी 80 सीटों पर भी लड़ने से गुरेज नहीं करेगी.
सपा ने फैसला लिया है कि परिवारवाद के आरोप को दरकिनार कर परिवार के लोगों को टिकट देगी. साथ ही दागी और मुख्तार परिवार जैसे बाहुबलियों को साथ लेने से भी नहीं हिचकेगी. सपा का लक्ष्य है कि ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतनी है, इसके लिए पार्टी ने बैक टू बेसिक का निर्णय लिया है. मतलब वो सारे मुद्दे जिनसे पार्टी की पहचान थी उनको फिर से पार्टी अपने घोषणापत्र में जगह देगी. पीडीए और जातीय जनगणना के जरिए जातीय समीकरण साधने और संविधान बचाने के मुद्दे के जरिए अयोध्या में होने जा रहे मंदिर लोकार्पण के माहौल को सीमित करने की कोशिश की रणनीति पर भी पार्टी काम कर रही है.
रोज़गार, महंगाई और साम्प्रदायिक सौहार्द जैसे मुद्दे भी पार्टी के लिए महत्वपूर्ण होंगे. इंडिया गठबंधन के बाकी सदस्यों के साथ पार्टी संतुलन बनाने की कोशिश में है लेकिन बसपा को गठबंधन में लाने को लेकर सपा ने चुप्पी साध रखी है. सपा ने अपने आक्रामक रवैये से ये संदेश दिया है कि लोकसभा का चुनाव पार्टी अपने तरीके से लड़ेगी और यूपी में इंडिया गठबंधन के बॉस अखिलेश यादव होंगे.
सपा की कोशिश, यूपी में हो मंडल बनाम कमंडल की लड़ाई
सपा मुलायम सिंह यादव के मंडल बनाम कमंडल के मॉडल पर चुनाव लड़ने की योजना बना रही है. लोकसभा चुनाव से पहले यूपी में एक बार फिर से बीजेपी अयोध्या में राम मंदिर के भव्य लोकार्पण के जरिए राममय माहौल बनाने की कोशिश करेगी. इसको ध्यान में रखकर सपा पीडीए समीकरण के जरिए लोगों तक पहुंचने के प्रयास में है. जातीय अस्मिता एवं जातीय जनगणना, पिछड़ों की एकजुटता, दलित हितों की चर्चा और अल्पसंख्यक समाज की बेहतरी के दावों के जरिए सपा फिर से यूपी में मंडल बनाम कमंडल का माहौल बना रही है. घोसी की जीत से पार्टी का मनोबल बढ़ा है और वो घोसी जैसी सफलता लोकसभा चुनाव में भी दोहराना चाहती है. पिछड़ों, दलितों और अल्पसंख्यकों के बीच समाजवादी पार्टी संविधान बचाने के मुद्दे को लेकर जाने की रणनीति बना रही है. पिछड़े वर्गों के ऐसा नेता जिनका जनाधार है, पार्टी उनको जोड़ने की रणनीति पर भी काम कर रही है. सपा संविधान बचाने के मुद्दे के जरिए राम मंदिर के प्रभाव को सीमित करने की योजना बना रही है.
चुनावी प्रबंधन पर सपा का फोकस
समाजवादी पार्टी 2022 के विधानसभा चुनाव के बाद से लगातार बेहतर प्रदर्शन कर रही है. तीन उपचुनाव जीतना इस बात की गवाही दे रहे हैं. इसके अभी भी चुनाव प्रबंधन के मामले में सपा बीजेपी से काफी पीछे है. घोसी में शिवपाल यादव के प्रबंधन ने पार्टी को घोसी में जीत दिलाई. इससे पार्टी का फोकस अब बेहतर चुनाव प्रबंधन पर है. चुनाव प्रबंधन को मजबूत बनाने के लिए पार्टी बूथ स्तर से तैयारी कर रही है. जमीनी कार्यकर्ताओं को तरजीह देने और जनाधार रखने वाले नेताओं को पार्टी में सम्मान देने की रणनीति पर सपा काम कर रही है.
सपा ‘अपनों’ को देगी तरजीह
सपा पर परिवारवाद का आरोप लगता रहा है. इस आरोप के ही कारण 2022 के विधानसभा चनाव में अखिलेश यादव ने परिवार से किसी को भी टिकट नहीं दिया था लेकिन लोकसभा चुनाव को लेकर सपा ने रणनीति बदल दी है. यादवलैंड की कई सीटों पर अखिलेश परिवार के लोगों को उतारने जा रहे हैं. जिन सीटों पर परिवार के लोगों के लड़ने की चर्चा है उनमें मैनपुरी से डिंपल यादव, फिरोजाबाद से अक्षय यादव, बदायूं से धर्मेंद्र यादव, आज़मगढ़ से शिवपाल यादव और खुद अखिलेश कन्नौज से चुनाव लड़ सकते हैं. परिवार के अलावा जिन सीटों पर सपा की तैयारी शुरू हो चुकी है उनमें कौशांबी से इंद्रजीत सरोज, गोंडा से राकेश वर्मा, बस्ती से राम प्रसाद चौधरी, श्रावस्ती से भीष्म शंकर तिवारी और गाजीपुर से ओमप्रकाश सिंह के नाम सामने आ रहे हैं. हालांकि इंडिया गठबंधन में अभी सीट शेयरिंग फॉर्मूले पर कोई सहमति नहीं बनी है, फिर भी ये वो सीटें हैं जिनको लेकर सपा की तैयारी शुरू हो चुकी है.