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जानें क्या इस्तेमाल है रैपिड टेस्ट का, जिसपर लगायी पी एम ने पाबंदी

देश में लगातार बढ़ रहे कोरोना वायरस के केस ने सरकार की नींद उड़ा दिया है दुनिया भर के कई लोगों ने भारत पर ये आरोप लगाया हैं कि, यहां टेस्टिंग की गति सुस्त है. आपको बता दें कि, कोरोना टेस्ट में तेज़ी लाने के लिए सरकार ने रैपिड टेस्ट किट का इस्तेमाल करने का फ़ैसला लिया था, लेकिन जांच नतीजों में भारी गड़बड़ी के बाद कई राज्यों ने अपने स्तर पर इसके इस्तेमाल पर पाबंदी लगा दी. अब स्वास्थ्य मंत्रालय और भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) ने फ़िलहाल इनके इस्तेमाल पर रोक लगा दी है. इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च ने बताया कि, यह किट सही से काम नहीं कर रही हैं और इसे सप्लायर्स को वापस कर देना चाहिए.

रैपिड टेस्ट क्या है ?

रैपिड टेस्टिंग कोरोना के संक्रमण की जांच करने वाला एक ऐसा टेस्ट है जो कम समय में ही टेस्ट नतीजे दे देता है. इसलिए इसका नाम रैपिड रखा गया है. आम तौर पर कोरोना की जांच के लिए जो आरटी-पीसीआर टेस्ट किए जाते हैं उसके नतीजे आने में 8 से 9 घंटों का वक़्त लगता है, लेकिन रैपिड टेस्टिंग किट इसी काम आधे घंटे से भी कम समय में कर देत है. कोरोना वायरस के बढ़ते मामलों में देखने के बाद चीन से भारी मात्रा में इन किटों का आयात किया था. लेकिन अब रैपिड एंटीबॉडी टेस्ट किट की एक्यूरेसी में गड़बड़ी देखि गई है और इसी लिए इसके इस्तेमाल पर रोक लगा दी गई है.

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राजस्थान सरकार का दावा-

आपको बता दें राजस्थान सरकार ने ये दावा किया था कि, इस टेस्ट किट से 95 फ़ीसदी रिजल्ट ग़लत आ रहे हैं. रैपिड टेस्ट किट के जरिए आम तौर पर सेरोलॉजिकल टेस्ट किया जाता है. इसके जरिए पीड़ित या संदिग्ध के खून में एंटीबॉडी की तलाश की जाती है. माना जाता है कि वायरस से संक्रमित होने के बाद खून में एंटीबॉडी विकसित होती है. इसी एंडीबॉडी का पता लगाकर कोरोना के टेस्ट रिजल्ट जारी किए जाते हैं.

आरटी-पीसीआर परीक्षण कैसे होता है?

रक्त में दो घटक होते हैं, रक्त कोशिकाएं और मैट्रिक्स जिसे प्लाज़्मा भी कहते है. प्लाज़्मा पूरे रक्त के घटकों को घटा देता है जिसके कारण थक्के बन जाते है, इसे सीरम कहते हैं. इसी सीरम का परीक्षण सेरोलॉजिकल टेस्ट में किया जाता है. दूसरी तरफ़, आरटी-पीसीआर परीक्षण रोगी के नाक या गले से वायरस को खोजता है. इसमें मुंह या नाक के ज़रिए मरीज़ों के भीतर एक नली घुसाई जाती है और वहां से सैंपल जमा कर इसका टेस्ट किया जाता है. सेरोलॉजिकल टेस्ट तेजी से होता है.

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इसमें 30 मिनट से कम समय लगता है, जबकि पीसीआर-आधारित परीक्षण में नौ घंटे लगते हैं. इस टेस्ट में इतना समय इसलिए लगता है क्योंकि इसमें आम तौर पर दो टेस्ट किए जाते हैं. पहले नाक या गले का परीक्षण कर ये पता लगाया जाता है कि क्या मरीज कोरोना वायरस से पीड़ित है. अगर इस बात की पुष्टि हो जाती है कि मरीज के भीतर कोरोना वायरस है तब दूसरा टेस्ट किया जाता है. इसमें उस कोरोना वायरस के परिवार का पता लगाया जाता है कि क्या ये नोवल कोरोना वायरस है या फिर कोई और है.