बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने चुनाव होने से पहले निशाना लगाया दलितों पे दलित कार्ड खेलने का. राज्य सरकार दलितों को लुभाने का हर संभव प्रयास कर रही है. इसी के तहत मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने शुक्रवार को घोषणा की कि अगर राज्य में किसी अनुसूचित जाति या जनजाति के शख्स की हत्या होती हैं तो उसके परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी दी जाएगी. नीतीश कुमार शुक्रवार को पटना में अनुसूचित जाति और जनजाति अधिनियम के तहत गठित राज्य स्तरीय सतर्कता और मॉनिटरिंग समिति की बैठक को संबोधित कर रहे थे.
इस बैठक में सभी दलों के दलित सांसद विधायक वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से नीतीश कुमार के समक्ष अपनी शिकायतें रखी. इस बैठक की दो सबसे अहम बातें रही जिसमें पहला उन्होंने तुरंत अनुसूचित जाति या जनजाति के परिवार के किसी सदस्य की हत्या होने पर उस पीड़ित परिवार के एक सदस्य को नौकरी देने के प्रावधान के लिए अधिकारियों को तुरंत नियम बनाने का आदेश दिया. साथ ही साथ राज्य के DGP से इन दोनों वर्गों के लंबित मामलों का निष्पादन अगले 15 दिनों में करने का आदेश दिया. मतलब 20 सितंबर तक सभी लंबित मामलों की जांच का कार्य पूरा कर रिपोर्ट देना होगा.
नीतीश कुमार ने इसके लिए उन्होंने राज्य के पुलिस महानिदेशक को थानावार समीक्षा करने का ख़ुद से निर्देश दिया साथ ही राज्य के मुख्य सचिव को दलितों से संबंधित जितनी भी योजनाएं चल रही है उनको अपने स्तर पर समीक्षा कर इनमें तेज़ी लाने का भी आदेश दिया. हालांकि इस बैठक में लोक जनशक्ति के राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग़ पासवान या राष्ट्रीय जनता दल में अब शामिल श्याम रजक जैसे नेता शामिल नहीं हुए.
इस बैठक में अब नीतीश कुमार की तारीफ के क़सीदे गढ़ने वाले जीतन राम मांझी ज़रूर उपस्थित रहे. नीतीश कुमार को इस बात का आभास हैं कि चिराग़ अगर JDU उम्मीदवारों के ख़िलाफ़ प्रत्याशी उतारने की अपनी ज़िद पर क़ायम रहे तो दलितों के कल्याण के लिए उनकी सरकार के काम-काज पर जमकर चर्चा होगी. लिहाजा वो अभी से ऐसे फैसले ले रहे हैं, जिससे चुनाव में उन्हें घेरने का मौक़ा ना मिले.