अपने बयानों की वजह से विवादों में रहने वालीं अभिनेत्री स्वरा भास्कर के खिलाफ अवमानना की कार्रवाई शुरू करने से पहले अटॉर्नी जनरल के. के. वेणुगोपाल की सहमति मांगी गई है। अयोध्या में रामजन्मभूमि- बाबरी मस्जिद विवाद मामले में उच्चतम न्यायालय के फैसले के खिलाफ स्वरा ने कथित तौर पर अपमानजनक और निंदनीय बयान दिए थे।
उच्चतम न्यायालय में लगाई गई याचिका में ये आरोप लगाया गया है कि स्वरा भास्कर ने ये बयान एक फरवरी 2020 को एक पैनल में चर्चा के दौरान दिया था। ये चर्चा ‘मुंबई कलेक्टिव’ की तरफ से आयोजित की गई थी। याचिका में दावा किया गया है कि यह बयान स्वभाव से अपमानजनक और निंदनीय है और इसका उद्देश्य अदालत को बदनाम करना है। ये संक्षिप्त प्रशंसा पाने के लिए प्रचार का एक सस्ता स्टंट है।
क्या था बयान..
याचिका के मुताबिक, स्वरा भास्कर ने कहा था, ‘अब हम ऐसी स्थिति में हैं जहां हमारी अदालतें सुनिश्चित नहीं हैं कि वे संविधान में विश्वास करती हैं या नहीं। हम एक देश में रह रहे हैं जहां हमारे देश के सर्वोच्च न्यायालय ने एक फैसले में कहा कि बाबरी मस्जिद का विध्वंस गैरकानूनी था और फिर उसी फैसले ने उन्हीं लोगों को पुरस्कृत किया जिन्होंने मस्जिद को गिराया था।’
क्या कहता है कानून..
अदालत की अवमानना कानून, 1971 की धारा 15 के तहत किसी व्यक्ति के खिलाफ अवमानना कार्रवाई शुरू करने के लिए या तो अटॉर्नी जनरल या सॉलिसिटर जनरल की सहमति जरूरी होती है।