मेहनत, हिम्मत और लगन से कल्पना साकार होती है। कानपुर में इसका एक उदाहरण हैं आईआईटी से जुड़े बारासिरोही में रह रहीं विजया रामचंद्रन यानी विजया दीदी। विजया रामचंद्रन पूर्व राष्ट्रपति रामास्वामी वेंकटरमण की बेटी हैं और पिछले पांच दशकों में 50 हजार से अधिक बच्चों को पढ़ा लिखा कर किसी मुकाम तक पहुंचा चुकी हैं। इनमें 60 फीसदी से ज्यादा बेटियां हैं। मजदूर महिलाओं, पुरुषों और बच्चों की मदद में कभी पीछे नहीं रहीं। इन्हें सरकारी मदद दिलाई। नहीं मिली तो अपने संसाधनों से हिम्मत बख्शी।
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विजया दीदी का आईआईटी से सीधा नाता है। 1965 में वह कैंपस में दाखिल हुईं। उनके पति प्रोफेसर आर रामचंद्रन यहां फिजिक्स के प्रोफेसर थे। रहम दिल दीदी उन लोगों में शामिल हैं जिन्होंने आईआईटी कैंपस में ”ऑपरच्युनिटी” स्कूल की स्थापना कराई ताकि यहां के वर्कर्स के बच्चे इसमें पढ़ सकें। विजया दीदी ने यहां से सेवा का जो क्रम शुरू किया वह 70 वर्ष से ज्यादा की उम्र में भी कायम है। पति चेन्नई शिफ्ट हो गए लेकिन उन्होंने आईआईटी के आसपास ईंट-भट्टों में काम करने वाले मजदूरों को ताकत देने और उनके बच्चों को पढ़ाने का जो संकल्प लिया और वह अब भी कायम है।
हर तरह से की मदद. :
विजया दीदी बताती हैं कि ईंट-भट्टा मजदूरों में सबसे अधिक निरीह महिलाएं होती हैं। जहां काम करती हैं वहां न रहने की जगह होती है और न पीने का पानी। 1986 में हमने अपने काम का विस्तार कर दिया। विशेषकर महिला मजदूरों की सरकारी या गैर सरकारी जो भी मदद मिल सकती थी, वह दिलाई। इनके स्वास्थ्य की चिंता की। इनके बच्चों के लिए ”अपना स्कूल” शुरू कर दिया। अपना स्कूल ने इन मजदूरों की बुझी किस्मत को रोशन कर दिया।
बेटियों ने छुआ आसमान :
दीदी बताती हैं कि क्या कोई सोच सकता है कि इन मजदूरों की बेटियां डिग्री कॉलेजों, पॉलीटेक्निक या ऐसे ही संस्थानों में पढ़ सकेंगी। मेरे पास ऐसी बेटियों की संख्या इतनी है कि मैं इनका कोई रिकॉर्ड नहीं रख सकती। सिर्फ बेटियां ही नहीं बेटे भी इतने ऊंचे ओहदों पर पहुंच गए हैं जिसकी कल्पना नहीं की जा सकती। जो बेटियां 10वीं, 12वीं पढ़ गईं और उनकी शादियां हो गईं तो वे इतनी जागरूक हो गईं कि उनकी अगली पीढ़ी खुद स्कूल जाने लगी।
अपना घर का रोल भी खूब :
विजया दीदी कहती हैं कि ”अपना स्कूल” के साथ एक ”अपना घर” भी बनाया। यह मजदूर तो पलायन कर जाते थे लेकिन इनके बेटे-बेटियां यहीं रह जाते थे ताकि उनकी शिक्षा में किसी तरह का व्यवधान न हो। यही नहीं जो मजदूर बिहार पलायन कर जाते थे उनके लिए हनुमानगढ़ी, मेहता गांव में पढ़ने की व्यवस्था की ताकि पढ़ाई न रुके।
बेटियों से दिखता है बदलाव :
दीदी कहती हैं कि जैसे ईंट-भट्टा मजदूरों का कोई घर नहीं है, वैसे मेरा भी कोई घर नहीं है। बच्चों को सरकारी स्कूल में पढ़ाया। दोनों ही प्रोफेसर हैं। बेटी शांति निकेतन में और बेटा विदेश में है। दोनों के अंदर मदद का जज्बा बहुत है। विजया दीदी कहती हैं कि जो बच्चे पढ़ लिख कर कुछ बन गए, वे भी मेरी मदद करते हैं। बेटियों की शिक्षा बहुत जरूरी है। वे शिक्षित होंगी तो समाज में परिवर्तन स्वयं दिखेगा।
आर. वेंकटरमण अथवा रामास्वामी वेंकटरमण का जन्म 4 दिसंबर, 1910 को मद्रास में हुआ था। वह भारत के आठवें राष्ट्रपति थे। इसके पूर्व उपराष्ट्रपति पद भी इनके ही पास था। वेंकटरमण 77 वर्ष की उम्र में राष्ट्रपति बने। इससे पूर्व उपराष्ट्रपति से राष्ट्रपति बनने वाले डॉ. राधाकृष्णन, डॉ. ज़ाकिर हुसैन और वीवी गिरि ही थे। इनका क्रम चौथा रहा। उन्होंने 25 जुलाई, 1987 को राष्ट्रपति पद की शपथ ग्रहण की। यह एक संयोग था कि 35 वर्ष पूर्व जब देश के प्रथम राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद ने शपथ ग्रहण की थी, तब वेंकटरमण भी राष्ट्रपति भवन के उसी कक्ष में मौजूद थे। उस समय किसने सोचा था कि 35 वर्ष बाद इस इतिहास को दोहराने वाला व्यक्ति भी उस घड़ी वहीं मौजूद है।