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पंचायत चुनाव: पहले पहचानते तक न थे अब राग अलापते फिर रहे, ‘हम साथ-साथ हैं’..

पंचायत चुनाव की अभी घोषणा भी नहीं हुई है लेकिन वोटरों को लुभाने के तरह-तरह के हथकंडे अपनाएं जाने शुरू हो गए हैं। दावेदार सुख-दुख के बहाने ग्रामीणों को साधने में जुट गए हैं। कोई तेरहवीं के खर्च में हाथ बंटा रहा है तो कोई बेटे-बेटियों की शादी में सहयोग कर वोटरों को साध रहा है।

सर्वाधिक जोर गांव के अनुसूचित जाति के टोलों और गरीब तबके को साधने पर है। जिस परिवार में जितने वोट, मदद का आश्वासन भी उसी मुताबिक दिया जा रहा है। 15 दिनों के भीतर गोरखपुर जिले के पाली ब्लॉक के नेवास, गोविंदपुर, हड़हा और डुमरी गांव के कुछ घरों में अंतिम संस्कार के बाद पड़ी तेरहवीं में प्रधानी पद के कई दावेदार मदद को आगे आए। किसी ने दही पहुंचाई तो किसी ने आलू-प्याज और पनीर का पूरा खर्च उठाया। एक ने हलुवाई का पूरा भुगतान अपने पास से किया। जंगल कौड़िया गांव में तो तीन दावेदारों ने एक ओबीसी परिवार के घर में पड़े तेरहवीं के दौरान 50 किलो चूरा, 20 किलो दही और सब्जी पहुंचाई।

केस एक

जंगल कौड़िया ब्लॉक के भुइधरपुर ग्राम पंचायत के अनुसूचित जाति के एक परिवार में आठ दिसंबर को बिटिया की शादी है। रिश्ता तय हुआ तो पिता समेत पूरा परिवार चिंतित था कि कैसे सब कुछ संपन्न होगा। मगर अब गांव के ही कई लोग इस आश्वासन के साथ उनके घर पर दस्तक दे रहे हैं कि शादी में कोई कमी नहीं होने देंगे। ये लोग प्रधानी का चुनाव लड़ने की तैयारी में जुटे हैं। इनमें से कई रोजाना एक चक्कर उनके घर पर आकर हालचाल पूछ जा रहे हैं। किसी ने शादी में अलमीरा देने का वादा किया है तो किसी ने 10-20 हजार रुपये कैश। एक ने भरोसा दिलाया है कि शादी में पनीर का पूरा खर्च वह उठाएंगे। वर्तमान प्रधान ने राशन देने का वादा किया है।

केस दो

जंगल कौड़िया ब्लॉक के ही राजाबारी गांव में पिछड़ी जाति के एक व्यक्ति की लड़की की शादी की तिथि दो दिसंबर को तय होने के साथ ही उनके घर प्रधानी पद के दावेदारों का जमावड़ा लगने लगा है। हर कोई लड़की के पिता और भाई से यह पूछ रहा है कि दूसरा दावेदार क्या दे रहा है। एक ने बक्सा देने का आश्वासन दिया है तो दूसरे ने तत्काल टीवी देने की घोषणा कर दी। इसी तरह कोई सोफा दे रहा है तो कोई ड्रेसिंग टेबल। एक ने दूल्हा और दुल्हन को हाथ की घड़ी देने का भरोसा दिया है।