कृषि सुधारों से जुड़े नए कानूनों के खिलाफ युवा कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने वाराणसी में बीएचयू गेट और लंका पर प्रदर्शन किया। हाथों में तख्तियां लिए पहुंचे कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने बिल और केंद्र सरकार के खिलाफ जमकर नारेबाजी की।
कांग्रेसियों ने सरकार पर इन बिलों को संसद में जबरन, अलोकतांत्रिक और असंसदीय ढंग से पास कराने का आरोप लगाया। वक्ताओं ने कहा कि यह कानून कांट्रैक्ट फार्मिंग को बढ़ावा देने वाला है। सरकार की इस नीति से अन्नदाताओं की परेशानी बढ़ेगी। अन्नदाताओं ने ही कोविड-19 और आर्थिक मंदी के बुरे दौर में देश को सम्भाले रखा। किसान (बंदोबस्ती और सुरक्षा) समझौता और कृषि सेवा कानून का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि इससे किसान अपने ही खेत में सिर्फ मजदूर बनकर रह जाएगा। केंद्र सरकार पश्चिमी देशों के खेती का मॉडल हमारे किसानों पर थोपना चाहती है। कांट्रैक्ट फार्मिंग में कंपनियां किसानों का शोषण करती हैं। उनके उत्पाद को खराब बताकर रिजेक्ट कर देती हैं। दूसरी ओर व्यापारियों को डर है कि जब बड़े मार्केट लीडर उपज खेतों से ही खरीद लेंगे तो आढ़तियों को कौन पूछेगा। मंडी में कौन जाएगा ? ये कानून किसानों के साथ-साथ छोटे व्यापारियों के हितों का भी विरोधी है।
कांग्रेसियों ने आरोप लगाया कि भाजपा के नजदीकी कुछ बड़े व्यापारी घरानों को फायदा पहुंचाने के लिए यह कानून लाया गया है। कृषि उपज वाणिज्य, व्यापार-संवर्धन एवं सुविधा कानून का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि इसके लागू होने के बाद किसानों के उत्पाद की खरीद मंडी में नहीं हो पाएगी। ऐसे में सरकार यह भी नहीं देख पाएगी कि किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) मिल रहा है या नहीं। न्यूनतम समर्थन मूल्य के अभाव में औने-पौने दाम में बड़ी कम्पनियां उत्पाद खरीदेंगी। यह एक नई तरह की साहूकारी जमींदारी प्रथा होगी। किसान संगठन देश भर में कह रहे हैं कि MSP किसानों का कानूनी अधिकार रहे। ताकि तय रेट से कम पर खरीद करने वाले जेल में डाले जा सकें। इस कानून से किसानों में एक डर दिख रहा है कि किसान और कंपनी के बीच विवाद होने की स्थिति में कोर्ट का दरवाजा नहीं खटखटाया जा सकेगा। एसडीएम और डीएम ही समाधान करेंगे जो राज्य सरकार के अधीन काम करते हैं। दूसरी ओर व्यापारियों का कहना है कि सरकार के नए कानून में साफ लिखा है कि मंडी के अंदर फसल आने पर मार्केट फीस लगेगी। मंडी के बाहर अनाज बिकने पर मार्केट फीस नहीं लगेगी। ऐसे में मंडियां तो धीरे-धीरे खत्म हो जाएंगी।
कांग्रेसियों ने तीसरे कानून का उल्लेख करते हुए कहा कि इसने भाजपा सरकार का चाल,चरित्र और चेहरा साफ कर दिया है। 1955 से पहले व्यापारी किसानों से उनकी उपज को औने-पौने दाम में खरीदकर पहले उसका भंडारण कर लेते थे। बाद में उसकी कमी बताकर कालाबाजारी करते थे। उसे रोकने के लिए ही कांग्रेस सरकार ने एसेंशियल कमोडिटी एक्ट बनाया था। जिसके तहत व्यापारियों द्वारा कृषि उत्पादों के एक लिमिट से अधिक भंडारण पर रोक थी। इस कानून में संशोधन करके मोदी सरकार अब कालाबाजारी को बढ़ावा देने जा रही है। व्यापारी अवैध तरीके से सब्जी,अनाज आदि का भंडारण करके जनता को मंहगे दामों में सामान बेचेंगे। कुल मिलाकर यह कानून किसान- व्यापारी से लेकर पहले से आर्थिक मंदी की मार झेल रहे आम आदमी की पीठ पर एक और चाबुक की तरह पड़ने वाला है। इस बिल को राज्यसभा में जिस अलोकतांत्रिक और तानाशाही तरीके से पास करवाया गया वह घोर निंदनीय है।
प्रदर्शन में मुख्य रूप से शिवपुर अध्यक्ष विजय उपाध्याय,रोहनिया अध्यक्ष अरुणेश सिंह,महानगर सचिव प्रभात वर्मा, बीएचयू के एनएसयूआई अध्यक्ष अभिषेक त्रिपाठी,धीरज शोनकर,राजीव आर्या, अर्जुन पांडेय,शलमान बच्ची, अंशुमान पांडेय,धीरज शुक्ला और नागेंद्र पाठक शामिल रहे।