तीन सालों में एक बार लगने वाले पुरुषोत्तम मास में पड़ने वाली एकादशी को पद्मिनी एकादशी कहते हैं। पुरुषोत्तम मास भगवान विष्णु की आराधना का माह माना जाता है। जो तीन साल में एक बार पड़ने वाली इस एकादशी का महत्व और भी बढ़ जाता है। इसे कमला एकादशी भी कहते हैं. यानी यह एकादशी हर साल नहीं आती। बल्कि यह अधिकमास के साथ ही आती है। यानी जिस साल अधिकमास लगता है, पद्मिनी एकादशी भी उसी साल आती है।
यही वजह है कि इस एकादशी को ज्येष्ठ अधिकमास एकादशी भी कहा जाता है. कमला या पद्मिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा तो होती है, साथ में भगवान शंकर और पार्वती पूजा भी होती है।
इस साल पद्मिनी एकादशी पर खास संयोग बन रहा है, इसलिए इस बार यदि आप पद्मिनी एकादशी करते हैं तो अपार लाभ प्राप्त होता है। धन और स्वास्थ्य का आर्शीवाद मिलता है और शत्रुओं का नाश होता है। भगवान विष्णु ने पद्मिनी को पुत्र का वरदान दिया था। ऐसे में जिन्हें कोई संतान नहीं है, वह यदि पद्मिनी एकादशी व्रत रखें तो उन्हे संतान सुख की प्राप्ति जरूर होती है।
ऐसी मान्यता है कि, पद्मिनी एकादशी का व्रत करने वाले श्रद्धालुओं को सालभर की सभी एकादशी व्रतों के बराबर फल मिल जाता है साथ ही व्रती को विष्णु लोक की प्राप्ति होती है। श्रद्धालु इस व्रत को 27 सितंबर रविवार को रखेंगे।
सुबह ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नान आदि कर सूर्यदेव को अर्घ्य दें। साफ पीले रंग का वस्त्र धारण करें और भगवान विष्णु की पूजा शुरू कर दें। सबसे पहले पूजा स्थान में भगवान की तस्वीर स्थापित करें, फिर हाथ में जल लेकर व्रत का संकल्प लें। धूप-दीप जलाएं और विधिवत विष्णुजी की पूजा करें। रात को सोएं नहीं, बल्कि भजन-कीर्तन करें। द्वादशी तिथि के दिन व्रत का पूरे विधि-विधान से पारण करें।
पद्मिनी एकादशी मुहूर्त
एकादशी तिथि प्रारंभ: 27 सितंबर, 06:02 मिनट पर
एकादशी तिथि समाप्त: 28 सितंबर, 07.50 मिनट पर
पद्मिनी एकादशी पारण मुहूर्त: 06:10:41 से 08:26:09 तक