मेरठ के बाजार में धड़ल्ले से एनसीईआरटी के नाम पर नकली पुस्तकों का कारोबार हो रहा है। गंभीरता से जांच हो तो विक्रेताओं से लेकर प्रकाशकों तक नकली पुस्तकों का मोटा खेल मिलेगा। इस खेल में प्रकाशक, विक्रेता, स्कूल से लेकर सरकारी तंत्र शामिल है, जो एनसीईआरटी के नाम पर नकली पुस्तकों को छापकर बेचने में माहिर हैं।
नकली पुस्तकों के खेल में पुलिस, एलआईयू, शिक्षा विभाग, प्रशासन और उद्योग विभाग की भूमिका संदिग्ध है। इन सरकारी विभागों द्वारा कभी भी प्रकाशकों और विक्रेताओं के लाइसेंस की जांच नहीं की जाती है। प्रकाशकों को एनसीईआरटी की किताबें प्रकाशित करने की अनुमति मिली है या नहीं यह भी जांचा नहीं जाता। न ही उन पर एक्शन लिया जाता है। मेरठ प्रकाशन का हब है इसलिए यहां धड़ल्ले से नकली किताबों का धंधा हो रहा है। जानकारों के अनुसार पूरे पश्चिमी उत्तर प्रदेश में नकली किताबों का कारोबार हो रहा है और पुलिस, शिक्षा विभाग खामोश है।
एनसीईआरटी की किताबों में वाटरमार्क होता है, जो किताब के सही होने का प्रमाण है। पुस्तकें खरीदते वक्त इसे अवश्य देखें। लगातार आठ पन्नों की जांच करें। अगर वाटरमार्क नहीं हैं तो पुस्तक नकली है। एनसीईआरटी की किताबें की कमी के कारण नकली किताबों का खेल चल रहा है। किताबों में असली, नकली का अंतर नहीं हो पाता।
एनसीईआरटी के नाम पर नकली किताबों के खेल में स्कूल और प्रकाशकों की मिलीभगत है। स्थानीय विक्रेता स्कूलों से कमीशन तय कर निजी स्तर पर प्रकाशकों से ये किताबें छपवाते हैं। स्कूल इन किताबों को लगाते हैं। एनसीईआरटी की किताबों में 20 फीसदी मुनाफा होता है। नकली किताबों में 30-35 प्रतिशत मुनाफा होता है।
नकली पुस्तकों का मेरठ बुक विक्रेता संघ ने विरोध किया है। अध्यक्ष आशीष धस्माना ने बताया कि नकली पुस्तकें छापना, बेचना अपराध है। ऐसे गुनहगारों पर कार्रवाई होनी चाहिए। जांच में हम सहयोग देंगे। महामंत्री संजय अग्रवाल ने कहा कि संघ ऐसे प्रकाशकों और विक्रेताओं के साथ काम नहीं करेगा।
35 करोड़ रुपये कीमत की एनसीईआरटी की फर्जी पुस्तकें पकड़ी हैं। पुलिस गोदाम के अलावा प्रिंटिंग प्रेस में पहुंची तो वहां पर आरोपियों ने पहले ही सुबूत मिटाने के लिए दस्तावेजों में आग लगा दी।