50 हजार का इनामी हिस्ट्रीशीटर सुरेन्द्र कालिया कोलकाता में दो सितम्बर को ही नाटकीय तरीके से अवैध असलहे के साथ गिरफ्तार होकर जेल पहुंच गया था। उसे मध्य प्रदेश और बिहार में ढूंढ़ रही लखनऊ पुलिस व एसटीएफ को इस बारे में 12 सितम्बर यानी 10 दिन बाद जानकारी मिली। वह भी तब जब उसने कोलकाता में जेल अफसरों के सामने कहा कि वह यूपी का वान्टेड अपराधी सुरेन्द्र कालिया है।
यह भी सामने आया है कि सुरेन्द्र को मध्य प्रदेश से कोलकाता तक पहुंचाने और अवैध असलहा उपलब्ध कराने में मुख्तार के एक गुर्गे ने मदद की। मुख्तार गिरोह की वजह से उसका हर नेटवर्क पुलिस पर भारी पड़ता रहा।
पुलिस सूत्रों के मुताबिक कोलकाता में एंटी राउडी स्क्वाड (एआरएस) के अफसरों ने सुरेन्द्र को दो सितम्बर को वहां के करवा इलाके से पकड़ा था। उसने नाम सुरेन्द्र कुमार बताया था। कोलकाता पुलिस जान ही नहीं सकी थी कि वह लखनऊ का वान्टेड अपराधी सुरेन्द्र कालिया है। सुरेन्द्र ने खुद को मध्य प्रदेश का निवासी बताया था। पर, बाद में उसने कुबूला कि वह मूल रूप से यूपी का रहने वाला है।
सूत्र बताते हैं कि जेल में दो बंदियों को शक हुआ कि वह लखनऊ का अपराधी है और नाम कुछ और है। बंदियों ने बंदी रक्षकों को बताया, फिर यह बात जेलर तक पहुंची। जेलर ने सुरेन्द्र से पूछताछ की, तो उसने बिना ना नुकुर कुबूल लिया। बोला-मैं लखनऊ का अपराधी हूं। मुझ पर 50 हजार रुपये इनाम है। 11 सितम्बर की रात को यह खुलासा होने पर कोलकाता के ज्वाइंट पुलिस कमिश्नर (अपराध) मुरलीधर शर्मा ने लखनऊ डीसीपी सोमेन वर्मा को इस बारे में जानकारी दी।
एसटीएफ के एक अधिकारी कहते है कि सुरेन्द्र कालिया 13 जुलाई को खुद पर फायरिंग होने का ड्रॉमा करने के बाद मुख्तार गिरोह के सम्पर्क में बना रहा। लखनऊ में शह देने वाले आका के जरिये ही सुरेन्द्र ने टेंडर हासिल करना शुरू किया। इन आका ने ही उसे मुख्तार से जोड़ा।
मुख्तार के इशारे पर ही गुर्गे सुरेन्द्र की फरारी के दौरान मदद करते रहे। मध्य प्रदेश में पुलिस के पहुंचने से पहले उसे भगाने में भी मुख्तार के गुर्गों का ही हाथ था। पूर्व सांसद धनंजय सिंह को फंसाने और गनर लेने की इस साजिश में शामिल उसके चार साथी यशवेन्द्र सिंह, सचिन शुक्ला, आशीष द्विवेदी और सुल्तान 10 अगस्त को गिरफ्तार कर लिये गए थे।