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क्या है कृषि विधेयक बिल, आखिर किसान क्यों कर रहे है विरोध

एक ओर देश में कोरोना वायरस का प्रकोप का तेज चल रहा है। दूसरी ओर देश में राजनीतिक उथल-पुथल भी जारी है। वही भारत में कृषि सुधार की मांग सालों से की जा रही थी। वही वर्तमान की मोदी सरकार ने किसान, कृषि के सुधार हेतु संसद में तीन विधेयकों को पारित किया है। संसद में बोलते हुए भाजपा राज्यसभा सांसद भूपिंदर यादव ने कहा कि “ये तीनों विधेयक कृषि क्षेत्र के सुधार हेतु ऐतिहासिक क़दम है। हालांकि, संसद में पास होने से पहले ही इन तीनों विधेयकों का विरोध विभिन्न किसान संगठनो के द्वारा किया गया जो अभी भी जारी है।

मोदी सरकार अपने इन कृषि संबंधी बिलों को लोकसभा में पास करवाकर भी घिरी नज़र आ रही है। एक ओर अपनी ही सहयोगी और केंद्रीय मंत्री हरसिमरत कौर बादल का इस्तीफा तो वहीं कई किसान नेताओं द्वारा भी इस बिल का जबरदस्त विरोध करना। अब सरकार के लिए सिरदर्द बनता जा रहा है। किसान नेताओं का बिल के विरोध में कहना है कि ये बिल उन अन्नदाताओं की परेशानी बढ़ाएंगे जिन्होंने अर्थव्यवस्था को संभाले रखा है। कांट्रैक्ट फार्मिंग में कोई भी विवाद होने पर उसका फैसला सुलह बोर्ड में होगा।

इन विरोधों का केंद्र मुख्यत: पंजाब, हरियाणा एवं पश्चिमी उत्तरप्रदेश हैं। इस विधेयकों को लेकर विभिन्न किसान संगठनों के मन में कुछ प्रश्न है जैसे कि न्यूनतम समर्थन मूल्य, मंडियो के ख़त्म होने का भय। वहीं, खेती का उद्योगपतियों के हाथों में जाने और कृषि में उनकी दख़ल को लेकर भी डर है।

किसानों के मुद्दे और विरोध

हिंदकिसान के मुख्य संपादक और कृषि मामलों के जानकार हरवीर सिंह कहते हैं कि कुछ जगहों पर विरोध प्रदर्शन तेज़ होने की वजह का नाता वहां की राजनीति और किसान संगठनों से तो है ही साथ ही अनाज ख़रीद की सरकारी व्यवस्था से भी है।

मध्यप्रदेश में आंदोलन नहीं होगा ऐसी बात नहीं है। वहां कभी किसानों के मज़बूत संगठन नहीं रहे हैं। लेकिन वहां भी मंडियों में इसका विरोध हुआ है और मंडी कर्मचारियों ने हड़ताल की है।”

“महाराष्ट्र में किसान बड़ा वोटबैंक है लेकिन यहां गन्ना किसान अधिक हैं और गन्ने की ख़रीद के लिए फेयर एंड रीमुनरेटिव सिस्टम (एफ़आरपी) मौजूद है और उसका मूल्य तय करने के लिए शुगरकेन कंट्रोल ऑर्डर अभी भी है

उत्तर प्रदेश में भी काफी ज़मीन हॉर्टिकल्चर के लिए इस्तेमाल होने लगी है जिसका एमएसपी से कोई लेना-देना नहीं है।”

“ऐसे में जहां किसानों पर इन बिल का सीधा असर पड़ रहा है वहां किसान सड़क पर आ गए हैं लेकिन जहां ये सीधे तौर पर किसानों को प्रभावित नहीं कर रहे वहां विरोध उतना अधिक नहीं दिख रहा।

वो तीन कृषि विधेयक जिनका हो रहा है विरोध?

पहला बिल एक ऐसा इकोसिस्टम बनाने के लिए है जहां किसानों और व्यापारियों को मंडी से बाहर फ़सल बेचने की आज़ादी होगी।

दूसरा बिल कृषि क़रारों पर राष्ट्रीय फ्रेमवर्क के लिए है। ये कृषि उत्‍पादों की बिक्री, फ़ार्म सेवाओं, कृषि बिज़नेस फ़र्मों, प्रोसेसर्स, थोक विक्रेताओं, बड़े खुदरा विक्रेताओं और निर्यातकों के साथ किसानों को जुड़ने के लिए सशक्‍त करता है।

तीसरे में अनाज, दलहन, तिलहन, खाद्य तेल, प्‍याज़ आलू को आवश्‍यक वस्‍तुओं की सूची से हटाने का प्रावधान है।

माना जा रहा है कि इस विधेयक के प्रावधानों से किसानों को सही मूल्य मिल सकेगा क्योंकि बाज़ार में स्पर्धा बढ़ेगी।

भारतीय किसान यूनियन के महा सचिव धर्मेंद्र मलिक कहते हैं कि इससे सरकार के हाथ में खाद्यान नियंत्रण नहीं रहेगा, सबसे बड़ा खतरा यही है। वे कहते हैं, “सरकार ने आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955 में बदलाव करके निजी हाथों में खाद्यान्न जमा होने की इजाजत दे दी है। अब सरकार का इस पर कोई नियंत्रण नहीं होगा। कोरोना संकट के बीच यह नियंत्रण सरकार के हाथ में इसलिए लोगों को कम से कम अनाज को लेकर दिक्कतों का सामना नहीं करना पड़ा। इससे धीरे-धीरे कृषि से जुड़ी पूरी ग्रामीण अर्थव्यवस्था चौपट हो जायेगी। निजी व्यापारी सप्लाई चेन को अपने हिसाब से तय करते हैं और मार्केट को चलाते हैं, जिसका सीधा असर ग्राहकों पर पड़ेगा।