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क्या है चरणामृत का अहम ‘अर्थ’, कैसे हुई थी चरणामृत की उत्पत्ति?

किसी भी मंदिर में जाइए या पूजा का आयोजन कीजिए तो प्रसाद के रूप में सबसे पहले चरणामृत मिलता है। चरणामृत को धार्मिक दृष्टि से काफी पवित्र माना जाता है। श्रद्धालु बड़ी श्रद्धा से चरणामृत को सिर से लगाकर ग्रहण करते हैं। क्योंकि इसे भगवान के चरणों का प्रसाद यानी चरणों का अमृत माना जाता है। लेकिन चरणामृत केवल धार्मिक दृष्टि से ही नहीं बल्कि वैज्ञानिक दृष्टि से भी काफी फायदेमंद माना गया है। आइए चरणामृत के बारे में और भी रोचक और काम की बातें जानें।

चरणामृत के बारे में तो हम सभी जानते हैं कि यह किसी भी पूजा का महत्‍वपूर्ण प्रसाद होता है। इसके बिना भगवान का भोग पूर्ण नहीं माना जाता है। यही नहीं कई सारे ऐसे मंदिर हैं जहां का चरणामृत पीने से लोगों की गंभीर से गंभीर बीमारियां दूर हो गईं।

हमारे धर्म शास्‍त्रों में भी इसकी महिमा का बखान मिलता है। लेकिन क्‍या आपने सोचा है कि ऐसा क्‍या होता है चरणामृत में जिससे बड़ी से बड़ी परेशानियों से निजात मिल जाती है। या फिर ये सवाल मन में आता हो कि चरणामृत की शुरुआत कैसे हुई होगी?

शास्त्रों में कहा गया है- अकालमृत्युहरणं सर्वव्याधिविनाशनम्। विष्णो पादोदकं पीत्वा पुनर्जन्म न विद्यते।। अर्थात : भगवान विष्णु के चरणों का अमृतरूपी जल सभी तरह के पापों का नाश करने वाला है। यह औषधि के समान है। जो चरणामृत का सेवन करता है उसका पुनर्जन्म नहीं होता है

कैसे बनता चरणामृत – तांबे के बर्तन में चरणामृतरूपी जल रखने से उसमें तांबे के औषधीय गुण आ जाते हैं। चरणामृत में तुलसी पत्ता, तिल और दूसरे औषधीय तत्व मिले होते हैं। मंदिर या घर में हमेशा तांबे के लोटे में तुलसी मिला जल रखा ही रहता है।

चरणामृत लेने के नियम – चरणामृत ग्रहण करने के बाद बहुत से लोग सिर पर हाथ फेरते हैं, लेकिन शास्त्रीय मत है कि ऐसा नहीं करना चाहिए। इससे नकारात्मक प्रभाव बढ़ता है। चरणामृत हमेशा दाएं हाथ से लेना चाहिए और श्रद्घाभक्तिपूर्वक मन को शांत रखकर ग्रहण करना चाहिए। इससे चरणामृत अधिक लाभप्रद होता है।

चरणामृत का लाभ – आयुर्वेद की दृष्टि से चरणामृत स्वास्थ्य के लिए बहुत ही अच्छा माना गया है। आयुर्वेद के अनुसार तांबे में अनेक रोगों को नष्ट करने की क्षमता होती है। यह पौरूष शक्ति को बढ़ाने में भी गुणकारी माना जाता है। तुलसी के रस से कई रोग दूर हो जाते हैं और इसका जल मस्तिष्क को शांति और निश्चिंतता प्रदान करता हैं। स्वास्थ्य लाभ के साथ ही साथ चरणामृत बुद्घि, स्मरण शक्ति को बढ़ाने भी कारगर होता है।

यह है चरणामृत उत्पमत्ति की कथा

चरणामृत के बारे में कथा मिलती है कि जब भगवान विष्णु  ने वामन अवतार धारण किया और राजा बलि से दान में तीन पग भूमि में तीनों लोक मांग लिए। तब ब्रह्मा जी ने प्रभु के चरण धोकर जल को वापस अपने कमंडल में रख लिया। इसे चरणामृत की संज्ञा दी गई। यही जल फिर गंगा बनकर पृथ्वी  पर मनुष्यइ कल्या ण के लिए अवतरित हुआ। रामायण के केवट प्रसंग में भी चरणामृत का महत्वय बताया गया है। जब केवट प्रभु श्रीराम के चरणों को धोकर उसी जल से अपने परिवार, अपने गांव और अपने पितरों को भव पार करवा देता है। यही वजह है कि युगों बाद भी यह परंपरा आज भी कायम है और लोगों को सदैव ही चरणामृत का अमृतमयी लाभ मिलता आ रहा है।

चरणामृत का मतलब होता है भगवान के चरणों का अमृत, जिसे कि हम पूजा के भोग लगाते समय पाते हैं।

पंचामृत का मतलब होता है पांच अमृत यानि पांच पवित्र वस्तुओं से मिलकर बना अमृत, जो कि पंच मेवा से ( पांच तरह के मेवा) से मिलकर बनता है।

चरणामृत का सेवन करने से इंसान में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।

मान्यता है कि चरणामृत का सेवन करने से भगवान का आशीष सीधे तौर पर भक्त को मिल जाता है और उसके सारे कष्टों का निपटारा हो जाता है।

चरणामृत हमेशा दाएं हाथ से लेना चाहिए ताकि वो आपको स्थिर कर सके।

चरणामृत से हेल्थ को फायदा मिलता है, इसके पंच मेवा, दूध, दही, तुलसी, घी, शहद, शकरऔर गंगा जल इंसान को शारीरिक और मानसिक सुख देते हैं।

चरणामृत के दूध से मतलब इंसान को हमेशा विचारों से शुद्द होना चाहिए तो दही का मतलब सदगुण से होता है ,घी से मतलब स्नेह और शहद-शक्कर का मतलब मीठापन और शक्ति से होता है।

अगर उपरोक्त चीजें इंसान के अंदर है तो उसे कभी भी किसी भी रिलेशन में कोई तकलीफ नहीं होती है।